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________________ ५२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड देकर निर्मित किया है, इस तरह की क्रूर पेक्षा एक ऐसे चरित्र का द्योतक है जो अपने अन्दर खतरनाक मनोवृत्तियाँ छिपाये हुए है। बिना कारणों के समझे शक्ति द्वारा दमन करने से किसी घटना को कुछ काल के लिए ही दबाया जा सकता है परन्तु अनुकूल अवसर प्राप्त होने पर उसके और भी विस्फोटित होने की सम्भावना होती है। हमें उपचारात्मक कार्यक्रमों को प्रारम्भ करने से पूर्व इन घटनाओं के कारणों को पूर्णतया समझना आवश्यक है तथा अध्ययन एवं शोध द्वारा ही इन कारणों को समझा जा सकता है। छात्र असन्तोष के कारण वर्तमान शिक्षा पद्धति प्रस्तावित उद्देश्यों को न पूरा करती है और न छात्रों को ऐसा आवश्यक व्यावसायिक कौशल ही देती है कि वे शिक्षा प्राप्त करने के बाद किसी कार्य को पकड़ सकें । फलतः शिक्षा प्राप्त करने के नाद छात्र अपनी समस्याओं को हल करने में अपने को समर्थ नहीं पाते । वर्तमान शिक्षा का उद्देश्य तो परीक्षा पास करा देना ही हो गया है। राजस्थान के भूतपूर्व शिक्षामन्त्री श्री शिवचरण माथुर का विचार है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली केवल विद्यार्थियों को नौकरी करने की ही प्रेरणा देती है। शिक्षार्थी मानव न बनकर सरकारी मशीन के पुर्जे के रूप में ढलकर आता है। विद्याथियों के निर्माण पर अधिक बल दिया जाना चाहिये। क्योंकि समाज भी तो व्यक्तियों से ही बनता है। श्री गुरुदत्त के विचार से डिग्री, डिप्लोमा तथा प्रमाण पत्रों को देने की प्रथा समाप्त कर देनी चाहिये तथा शिक्षा क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप को सर्वथा हटा देना चाहिये । वर्तमान में पढ़ाने की जो पद्धति है, वह बहुत दूषित है। विषय के अध्यापक न होने के कारण छात्र रुचि लेकर नहीं पढ़ते जिससे परिणाम अच्छा नहीं रहता है अत: इसमें सुधार आवश्यक है। वर्तमान शिक्षा पद्धति छात्र के जीवन में कोई एक उद्देश्य भरने में सफल नहीं होती कि वे अपने भविष्य को सुनियोजित कर सके । हमारे देश में बेरोजगारी बहुत बढ़ गई है। अतः रोजगार प्राप्ति की ओर व्यावसायिक शिक्षा को अधिक बढ़ावा देना चाहिये। हमारी आर्थिक कठिनाइयाँ इतनी विषम हो चुकी हैं कि समझ में नहीं आता कि भविष्य में हमारी आर्थिक स्थिति का क्या स्वरूप होगा। हमारे अधिकांश छात्र ऐसे परिवारों से आते हैं जो आर्थिक दृष्टि से बड़े ही संकीर्ण होते हैं। ऐसे परिवार अपने बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दे पाते । समस्या का एक पक्ष गत कुछ वर्षों में विद्यार्थियों की संख्या में भारी वृद्धि एवं समाजशास्त्रीय और संविधान में हो रहे भारी परिवर्तनों का है। संख्याओं में वृद्धि के कारण अध्यापक और विद्यार्थी के तीच व्यक्तिगत सम्पर्क बनाये रखना अति कठिन हो गया है। जिसके कारण अध्यापक और विद्यार्थी के बीच आवश्यक व्यवहार विनिमय में तीव्र गति से कमी हुई है। हमारे कालेज, विश्वविद्यालयों तथा स्कूलों में पढ़ाने की विधियाँ गड़बड़ हो चली हैं। इसमें विद्यार्थी में अग्रिम जानकारी हेतु कोई जिज्ञासा उत्पन्न नहीं होती और न वैज्ञानिक पद्धति ही होती है। फल यह होता है कि कक्षा में उनका मन नहीं लगता और न अधिकांश अध्यापकों के प्रति उनमें सम्मान की भावना उत्पन्न होती है। हमारे स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों में आज बहुत से ऐसे अध्यापक हैं जो योग्य नहीं है। ऐसे व्यक्ति अध्यापक हो गये हैं जिन्हें अपने अध्यापन में तनिक भी रुचि नहीं है। किसी भी विद्या-केन्द्र का कार्य विद्यार्थियों को केवल परीक्षा पास करने के लिए ही तैयार करना नहीं है वस्तुत: शिक्षा का उद्देश्य तो सम्पूर्ण व्यक्तित्व का सामंजस्यपूर्ण विकास है। आज परीक्षा प्रणाली ऐसी ही है जो अध्यापन प्रक्रिया परोक्ष पर आधारित हो गई है। शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य परीक्षा पास करना ही रह गया है। उपयुक्त कार्यक्रमों को प्रारम्भ करने में सरकार विविध शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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