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________________ इम्तिहान पर क्षण भर ४५ का रौरव अभियान अपने चरम पर था जहाँ । मेरठ में स्थिति और भी विचित्र थी। बाँटने से पहले ही इन्वीजीलेटर्स के हाथों से जुझारू छात्रों ने कापियाँ झड़प ली थीं । तत्पश्चात् तो छात्रेच्छा बलीयसी । मजाल थी कोई उनसे कुछ कह ढे । घर ले जाना था कुछ घर ले गये । नहीं तो पूर्वायोजित महायकों के दिमाग का आसरा तो कहीं जाने से रहा । कुजियों-किताबों का निर्बाध प्रयोग तो खैर एक मामूली बात थी। कहीं-कहीं तो प्राध्यापकों ने भी खुले मन से मदद देने में आत्मकल्याण माना । हाँ, बेचारे ईमानदार प्राध्यापक भय और उद्विग्नता की मनःस्थिति से परीक्षा भवन में हो रहा यह अनियन्त्रित उत्पात देख रहे थे। वाइस चांसलर इन सब स्थितियों से एकदम अनभिज्ञ रहे हों, यह बात भी नहीं थी। पर वह निर्लिप्त और निर्विकार बने रहने में ही अपना भला देखते थे। वे जानते थे कि परीक्षाएँ स्थगित करना उनके हित में नहीं है। पर भाग्य ने अधिक दूर तक उनका साथ देने से इन्कार कर दिया । समाचार-पत्रों ने बड़ी बेरहमी से यह सब-कुछ प्रकाशित कर दिया। परिणाम यह हुआ कि लगभग २३ केन्द्रों की परीक्षाएँ बिल्कुल रद्द कर देनी पड़ी। परीक्षाएँ रद्द कर देने का यह निर्णय छात्रों के हलक के नीचे आसानी से उतर जाने वाला हो, यह बात नहीं थी। विरोध की लपटों ने मेरठ कालेज को ही स्वाहा करके दम लिया। एक पोस्ट आफिस भी अग्नि की भेंट हो गया। बेचारा वृद्ध पोस्टमास्टर बड़ी मुश्किल से जान बचा पाया। लड़कों का यह हाल था तो लड़कियां कैसे पीछे रहतीं । सामूहिक नकल के इस पवित्र अनुष्ठान में वे भी कूद पड़ी। उनकी शिकायत वाजिब थी कि यह सिर्फ लड़कों का ही मूल-अधिकार तो नहीं है न? और पिछली बार परीक्षाएँ जब पुन: आरम्भ हुई तो उपद्रव और हिंसा अपने चरम पर थी। नकल का यह अनपेक्षित माहौल मेरठ विश्वविद्यालय की निजी विशेषता है, यह कहना अन्य विश्वविद्यालयों के प्रति अन्याय हो गया। बिहार के अधिकांश विश्वविद्यालयों में कमोबेश इन्हीं दृश्यों की पुनरावृत्ति हुई है, और आरा का तो नारा ही था—'चोरी से सरकार बनाई, - चोरी से हम पास करेंगे।' दूसरी आजादी के आगमन के साथ लोगों ने एक सन्तोष की सांस ली थी चलो अब सब कुछ ठीक-ठाक हो जायगा, पर प्रत्याशा पूरी नहीं हो पाई। यह एक ऐसा गम्भीर प्रश्न है कि राष्ट्र के अग्रणी विचारक भी चिन्ता किये बिना नहीं रह सके हैं । स्वयं जयप्रकाश बाबू की चिन्ता भी उनके वक्तव्यों से स्पष्ट झलकती थी। शिक्षा पद्धति में पूरी तरह से परिवर्तन पर जोर देते हुए तथा तत्सम्बन्धी दुरवस्था पर दुःख व्यक्त करते हुए वे कहते थे---'शायद छात्र-समाज यह भूल गया है कि १९७४ में स्वयं उनके द्वारा नीत आन्दोलन का यह एक मुख्य मुद्दा था।' इम्तिहान में बड़े पैमाने पर गलत तरीके इस्तेमाल करने के प्रश्न पर भी वे गम्भीर चिन्ता प्रकट करते हैं। अब तो दूसरी आजादी वाली सरकार भी हवा हो गई। वर्तमान सरकार से लोगों को बहुत अपेक्षाएँ थीं, किन्तु—? प्रश्न है आखिर इम्तिहान का उद्देश्य क्या है ? याददाश्त, अभिव्यक्ति और यदाकदा निर्णय । बस यही तो न ? पर आजकल के इम्तिहान तो छात्र की याददाश्त को ही सर्वाधिक अहमियत देते नजर आते हैं। इस बात को बिल्कुल नजरन्दाज कर दिया जाता है कि निर्णय भी उसका एक आवश्यक और महत्त्वपूर्ण पक्ष है। मजेदार बात तो यह है कि कहीं परीक्षार्थी अपनी राय व्यक्त करने का प्रयास करता है तो परीक्षक उसे गम्भीरता से नहीं लेता । विश्वविद्यालय मात्र परीक्षा केन्द्र बनकर रह गये हैं । परीक्षाएँ आयोजित करना, कापियाँ अँचवाने की व्यवस्था करना और जैसे-तैसे परिणाम प्रकाशित करवा देना । बस ये ही ध्येय रह गये हैं। यह नहीं कि इम्तिहान के तौर-तरीकों में सुधार के प्रश्न को लेकर सोच-विचार हुआ ही नहीं है । समयसमय पर समितियाँ बनी हैं, गाते-ब-गाते गोष्ठियां हुई हैं, नाना प्रकार के नूतन तरीकों की तलाश की गई है। जैसे यह कि 'आजैक्टिव टैस्ट' का तरीका अपनाया जाय ताकि नकल की नारकीयता से मुक्त हुआ जा सके, पर यह भी कोई निरापद तरीका है, कहा नहीं जा सकता। 'ऑपन बुक एक्जामिनेशन' की पद्धति पर भी विचार किया गया। पर इससे क्या परख करना चाहते हैं ? याददाश्त और निर्णय इन दो बातों का तो ऐसी पद्धति में कोई ही काम नहीं रह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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