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________________ शिक्षण में सृजनात्मकता ३६ ...........................................0000000000000000000000000 अनुसंधानों ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि ये दोनों भिन्न वस्तुएँ हैं । जो कार्य सृजनशील व्यक्ति आसानी से कर पाता है शायद मेधावी व्यक्ति के लिए उन्हें कर पाना सम्भव न हो। इसी प्रकार एक उच्च सृजनशील व्यक्ति की तुलना बीस कम सृजनशील व्यक्तियों से नहीं की जा सकती। फागन ने इस सम्बन्ध में अपने शोधकार्य द्वारा मेधा और सृजनशीलता के सम्बन्ध में बहुत निम्न सहसम्बन्ध की सृष्टि की है। सामान्य जीवन में भी हम देखते हैं कि सृजनशील व्यक्तियों की शैक्षिक अपलब्धियाँ नगण्य प्रकार की होती हैं। सृजनात्मकता के घटक जे० पी० गिलफोर्ड ने अपने स्ट्रक्चर आफ इन्टेलेक्ट में सृजनात्मक चिन्तन के अन्तर्गत प्रवाहिता, अनाग्रह, मौलिकता, विस्तार एवं संवेद्यता को सम्मिलित किया है।' प्रवाहिता जैसा कि प्रवाहिता शब्द से ध्वनित होता है, यह वह विशिष्ट योग्यता है जो चिन्तन के निर्बाध प्रवाह को इंगित करती है। गिलफोर्ड ने अपने अध्ययन में इसके चार प्रकारों का वर्णन भी किया है। वे हैं१. शाब्दिक प्रवाहिता ३. वैचारिक प्रवाहिता और २. अभिव्यक्तिपरक प्रवाहिता ४. साहचर्यात्मक प्रवाहिता। अनाग्रह शार्टर आक्सफार्ड इंगलिश डिक्शनरी के अनुसार अनाग्रह का शाब्दिक अर्थ है "अनाग्रही होने की क्षमता अर्थात अनुकूलन की क्षमता, कठोरता एवं कट्टरता से मुक्त होना तथा त्वरित एवं वैविध्यपूर्ण क्रियान्वयन ।" गिलफोर्ड के अनुसार अनाग्रह के भी दो प्रकार हैं १. स्वतःस्फूर्त अनाग्रह और २. अनुकूल अनाग्रह। मौलिकता मौलिकता से हमारा अभिप्राय सामान्यत: उस अभिव्यक्ति से है जो सामान्य से अथवा लीक से हटकर अपनी अलग पहचान देती है। संवेद्यता इसके अन्तर्गत व्यावहारिक समस्याओं को पहचानने की योग्यता, कमियाँ या बुराइयाँ आदि समझते हुए सुधार के उपाय सुझा सकने की क्षमता सम्मिलित है। विस्तार वस्तुओं को व्याख्यायित, परिभाषित, पुनर्परिभाषित करने की क्षमता विस्तार के अन्तर्गत आती है। सृजनात्मकता के सम्बन्ध में कुछ निष्कर्ष सृजनात्मकता के सम्बन्ध में अब तक हुए चिन्तन-मनन, शोध, अनुसंन्धानों आदि के परिणामों को ध्यान में रखते हुए हम निम्नांकित निष्कर्षों पर पहुँचते हैं - १. प्रत्येक व्यक्ति में सृजनात्मकता होती है। २. प्रत्येक व्यक्ति में सृजनात्मकता की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। ३. सृजनात्मकता के विभिन्न घटकों का विकास प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न होता है। ४. सृजनात्मकता का शिक्षण सम्भव है। ५. सृजनात्मकता का मापन सम्भव है। ६. उपयुक्त पर्यावरण प्रदानकर सृजनात्मकता को बढ़ाया जा सकता है। - 1 Taylor C. W. : Creativity - Progress and Potential, McGraw Hill Book Co. New York 1964. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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