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________________ संघ की विशाल ऐतिहासिक यात्रा २६५ . दुर्घटना-राम वन के समीप, खूनी नाले के पास अकस्मात एक बस का ब्रेक फेल हो गया । यह बस सबसे पीछे थी। मुख्य गृहपति भी उसमें थे। ड्राइवर तत्काल 'सावधान' शब्द जोर से चिल्लाया। उसी क्षण बचने का दूसरा विकल्प नहीं देख, बस सीधी पहाड़ी से टकरा दी। सम्भवतः छात्रों ने हाथ अन्दर कर लिये हों। उसी क्षण अन्दर बैठे हुए सब यात्रियों के जीवन-मरण का प्रश्न था, हृदय कम्पित हुआ ही होगा। ईश्वर की कृपा से ड्राइवर की सूझ-बूझ ने मौत से रक्षा की, अन्यथा ४५० फीट गहरी घाटी में गिरने के अलावा दूसरा मार्ग नहीं था। बस उलट गई। ड्राइवर सिर पर हाथ रखकर एक तरफ बैठ गया। मुख्य गृहपति तथा अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों ने बाहर निकल बच्चों को काँच की खिड़की से एक-एक को बाहर निकाला । देखा कि किसी के खास चोट नहीं आई। दो तीन के हाथ आदि में थोड़ी चोट लगी, जिसका उपचार आगे उधमपुर नगर अस्पताल में करवा लिया गया। इसी खूनी नाले के बारे में कहा जाता है कि गत १२ वर्ष में सैकड़ों दुर्घटनाएँ घटित हुई हैं। इन बारह वर्षों में यह दूसरी घटना है, जिसमें किसी को चोट नहीं आई, हताहत का तो प्रश्न ही नहीं था। इसके पीछे धर्म संघ का पुण्य प्रताप व काका साहब के त्याग व तपस्या का सुप्रतिफल रहा। घोर संकट टला अन्यथा इतिहास कोई दूसरा होता, कल्पनातीत है। कहा जाता है कि विस्मय से भयभीत हो खूनी नाले के वहाँ देवी का एक मन्दिर बनवा दिया गया । कुछ ही समय में सारा सामान उस बस से उतरवा लिया। बस का अगला हिस्सा क्षतिग्रस्त होने से बस वहीं रही । वहाँ से कब आई और कैसे आई पता नहीं। बसें पुराने माडल की थीं। जो रास्ते के लिए उपयुक्त भी नहीं थी। वैसे ये बसे जम्मू तक के लिए ही की गई थीं। अवसर की बात थी। काश्मीर के लिए जम्मू से दस हजार रु० अलावा दिये गये । जम्मू तक के लिए ३७,५०० रुपये तय किये गये थे। उसी समय मिलिटरी की गाड़ियों का काफिला जम्मू की तरफ जा रहा था। मुख्य गृहपति जी कुशल हैं। उन्होंने उन गाड़ियों के सहयोग से बस के छात्रों तथा सामान को उधमपुर तक पहुँवा दिया, जहाँ ब्रिगेड हेडक्वाटर्स हैं । इस घटनाक्रम की अवधि में हमारी कार नारवोटा चौकी तक पहुँची। वहाँ पर हमको रोक कर कहा गया कि हमारी एक बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई है और हमारी कार को वापस लौटने के लिए कहा। उसी समय एक कार निकली उसके सिक्ख ड्राइवर से सूचना प्राप्त की, वह कार सर्वप्रथम दुर्घटना के बाद उधर से गुजरी थी। ड्राइवर ने कहा, बस उलट गई, किन्तु किसी को कोई चोट नहीं आई, सब ओ० के ० हैं । तब हमारे होश ठिकाने आये। कार उधमपुर तक लौटी । मुख्य गृहपति जी बस के यात्रियों व सामान को लेकर सड़क के किनारे पर खड़े थे। चारों बसें पीछे थीं । रात्रि को उधमपुर की जैन धर्मशाला में रुके । रात्रि के ११ बजे दूसरी बसें भी आ गईं। देश के इस उत्तरी भाग में धर्मशालाओं की सुविधा मिल जाया करती है । दिनांक २३ अक्टूबर-अमृतसर को प्रातः ६ बजे सबने एक साथ यात्रा प्रारम्भ की। दूसरी बस व ट्रक की व्यवस्था उधमपुर में नहीं हो सकी। मैदानी भाग भी आ गया । अत: पाच बसों के यात्री उनका सारा सामान चारों बसों में कर दिया गया । काका साहेब के आदेश में दृढ़ता पाई जाती है, वही हुआ। जम्मू के पास नहर बह रही थी। उसके किनारे सबने ठण्डी पूड़ियाँ, अचार से सफरी खाना खाया, बड़े मजे से, क्योंकि किसी जगह खाना बनाने व खिलाने में आधा दिन का समय लगता था । कार जम्मू से आगे हो गई और हम सूर्यास्त तक अमृतसर पहुँच गये। जम्मू में तेल (Oil) लेने के लिए बसों को रुकना पड़ा और बसें रात्रि को ११ बजे अमृतसर पहुँची। जैन भवन में हमने उनके खाने का प्रबन्ध किया। खाना-खिलाना रात्रि के २ बजे तक चलता रहा, तृप्ति अनुभव की । अमृतसर के श्री हेमराजजी, रामलालजी सुराणा तथा युवक कार्यकर्ताओं ने बड़े प्रेम से जिमाया। रात्रि विश्राम वहीं रहा । जलियाँ वाले बाग को रात्रि में देरी होने के कारण भीतर से नहीं देख सके, किन्तु अमृतसर के प्रसिद्ध गुरुद्वारे (स्वर्ण मन्दिर) को देखा, जिससे सब बड़े प्रभावित हुए। जलियाँवाला बाग-उसमें जाने के लिए एक संकड़ा रास्ता, भीतर चौक, अब ट्रस्ट ने पार्क बना दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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