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________________ संघ की विशाल ऐतिहासिक यात्रा २६३ । रही थी। बसें दिन को १२ बजे श्रीनगर के बाहर क्रिकेट स्टेडियम पर रुकी, जब कि कार २ बजे पहुँच पाई । गन्तव्य स्थान पर पहुँचकर आवास की चिन्ता में लग गये। प्रो० तेला साहब ने कालेज, स्कूल, यूथ होस्टल व स्काउट कैम्प आदि को देखा। जम्मू श्रीनगर घाटी-इस घाटी की लम्बाई २६४ कि. मी० है, जो विश्व की सबसे लम्बी घाटी मानी जाती है। सड़क का रास्ता विकट है, उतार-चढ़ाव, घुमाव आदि बहुत हैं । जगह-जगह सावधानी के लिए पहाड़ी घाटियों पर वाक्य लिखे हुए हैं “यदि आपने शादी कर ली है, तो घर पर प्रतीक्षा कर रहे हैं।" "गति सीमा धीमी रखें, जीवन बहुत कीमती है।" "थोड़ी देरी में जीवन की सुरक्षा है।" आदि-आदि । घाटी में पहाड़ियों पर ऊँचे बिखरे हुए घर दिखाई देते हैं। उनका जीवन निर्वाह फलों के पौधों से होता है। पहाड़ी नदी कल-कल करती हुई मीलों तक देखी गई। पुलिया बनाकर सड़कों का घुमाव कम किया गया है । लम्बेलम्बे सनोवर, देवदार आदि दरख्तों से पहाड़ ढके पड़े हैं। घाटी में उधमपुर के पास मिलिटरी छावनी है। श्रीनगर तक मिलिटरी गाड़ियाँ काफी संख्या में आती-जाती मिलीं । सेवों से भरे ट्रक अनगिनत चलते हुए देखे गये । मिनी बसें, जो दिन को ही यात्रियों को लेकर जाती है, वे भी खूब मिलीं। एक बस में ३६ सीट होती हैं और एक टिकिट रु० १७-५० का होता है। बारह घण्टे में जम्मू श्रीनगर को जोड़ती है। रेल मार्ग सम्भव नहीं दिखाई देता है। रास्ते में पतनी, जो काफी ऊँची है, देखने योग्य है। उससे कुछ दूर मनोरम झील है। सम्पूर्ण घाटी में २०० कि०मी० तक प्रकृति का सुन्दर दृश्य बिखरा पड़ा है, वर्णनातीत है। बनिहाल के पास जवाहर सुरंग २३ किलो मीटर लम्बी है, आने-जाने के रास्ते अलग-अलग साथ में ही हैं। सुरंग में पानी बंद-बूंद टपकता रहता है। बसों को पार करने में ६ मिनिट लगते हैं । इसे बने हुए दस वर्ष हुए हैं और इसके बनने से ३५ किमी की दूरी की बचत हुई है। काश्मीर की घाटी श्रीनगर से ७० कि०मी० पहले से प्रारम्भ होती है। मैदानी भाग है, उसमें सेवों के बगीचे खूब हैं । निवासी अधिकांश मुसलमान हैं। भारतीय सभ्यता उनमें दृष्टिगोचर होती है। श्रीनगर-यहाँ पर आवास व्यवस्था श्रीनगर के मशहूर लाल चौक की सनातनधर्म धर्मशाला में की। उसमें ६ लेटरिन और ६०० उनमें जाने वाले, स्नानघर नाम मात्र के, फिर भी छात्रों ने बड़े ही अनुशासित जीवन का परिचय दिया। यह राणावास छात्रावास के कठिन अनुशासित जीवन-चर्या का परिचायक है। जिस किसी समय भी रात्रि आदि के भोजन की व्यवस्था बन पाती, खा लेते और जब चलने को कह देते, चल देते । मुख्य गृहपति श्री मूलसिंह जी का कमांड उनके सहयोगियों के साथ प्रशंसनीय रहा। सीटियों के इशारे पर सारा कार्य चलता था। श्री जै० ते० महाविद्यालय के विद्यार्थी वर्ग की अनुशासनप्रियता आज के वातावरण को देखते हुए सराहना का विषय रही । प्राचार्य प्रो० एस० सी० तेला एवं महाविद्यालय छात्रावास अधीक्षक प्रो० पी० एम० जैन का नेतृत्व श्लाघनीय रहा । इस दृष्टि से राणावास का संयमित जीवन एक आदर्श है। २१ अक्टूबर-श्री नगर के मुख्य स्थान __ आज का दिन श्रीनगर के प्रसिद्ध स्थान देखने के लिए निश्चित रखा गया। डल झील जो श्रीनगर से सटी हुई है, उसके किनारे चारों ओर विश्वविख्यात स्थान हैं, उनको देखने के लिए प्रतिवर्ष पर्यटक लोग लाखों की संख्या में आते हैं। राजभवन भी इसी झील के किनारे पर खड़ा है। शाही चश्मा-पानी अनवरत आता रहता है। पानी को रोगनाशक मानते हैं । एक बगीचा है। निशात बाग-शाहजहाँ ने बनवाया । बड़े-बड़े दरख्त व फूलों से बगीचा ढका हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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