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________________ आदर्श निकेतन छात्रावास, राणावास प्रारम्भ में एक ही भोजनशाला की व्यवस्था थी लेकिन छात्रों की संख्या वृद्धि के कारण बैठने की जगह कम पड़ने लगी । संख्या वृद्धि की बात ध्यान में रखते हुए व भोजन व्यवस्था को और सुन्दर बनाने के लिए एक की जगह तीन भोजनशालाएँ बनाने का निर्णय लिया गया जो सन् १६७६ से प्रारम्भ है । कक्षा १०-११ के लिए एक भोजनजाला कक्षा के लिए दूसरी भोजनशाला, कक्षा १-७ के लिए तीसरी भोजनशाला । कक्षा १ से ७ तक की भोजनशाला का निर्माण श्री गोकुलचन्द रामलालजी संचेती जैन तेरापंथ छात्रावास में किया गया है। २४५ प्रत्येक भोजनशाला में चार-चार रसोईदार व इन तीनों रसोड़ों में एक मुख्य रसोईदार नियुक्त किया गया है । भोजन करने के स्थान की स्वच्छता का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है। वहां बैठने के लिए चटाइयाँ बिछा दी जाती हैं। भोजन स्थान को प्रतिदिन धोया जाता है। कभी-कभी सोड़े से भी साफ किया जाता है । विद्यार्थी भोजन के समय भोजन की घंटी लगते ही भोजनशाला के बाहर कतारबद्ध खड़े हो जाते हैं। फिर अधीक्षक महोदय की देखरेख में विद्यार्थी भोजन स्थान पर शान्ति के साथ बैठ जाते हैं। भोजन परोसने का काम स्वयं विद्यार्थी ही करते हैं, जिनको क्रमशः बारी दे दी जाती है । भोजनशाला में कोई विद्यार्थी चूँ की आवाज तक नहीं करता है । ऐसे संस्कार उनमें डाले जाते हैं। सभी विद्यार्थियों के बैठने पर भोजन परोसा जाता है । सभी विद्यार्थियों को पूरी भोजन सामग्री मिलने पर भोजन के समय वोली जाने वाली प्रार्थना एक साथ बोली जाती है। प्रार्थना की पंक्ति इस प्रकार है 'वन्दे वीरम्' 'वन्दे मातरम्' 'अपि जय भिक्षु देपेय' 'तेरापंथ पथाधिप जैन जगत आदेय' 'अयि जय भिक्षु दैपेय' आधे मिनट के ध्यान के बाद भोजन प्रारम्भ किया जाता है। इशारे पर ही परोसकारी दी जाती है। इस तरह बड़े सुन्दर ढंग से भोजनशाला में शान्त वातावरण बना रहता है। भोजनशाला में आधे से अधिक विद्यार्थियों के भोजन कर लेने के बाद बारी समाप्त करने का आदेश मिलता है । उस समय भोजन परोसने वाले 'महावीर स्वामी की जय बोलते हैं। इसका अर्थ है कि जो विद्यार्थी जीमने बाकी है वे अब आखिरी बार में जितना भोजन चाहें उतना प्राप्त कर लें ताकि कार्य समय पर निपट सके। इसके बाद परोसने वाले जीमने के लिए बैठते हैं । उनकी परोसकारी भी विद्यार्थी ही करते हैं, जो जीम चुके हैं । प्रतिदिन भोजनशाला में इसी तरह व्यवस्था बनी रहती है | इस प्रकार की व्यवस्था से भोजन में शान्ति बनाये रखने का संस्कार बालकों में स्वतः ही आ जाता है। इसके अलावा भोजन परोसने की कला का भी प्रशिक्षण सरलता से प्राप्त हो जाता है । यद्यपि छात्रावास में जूठन डालने का प्रचलन बिल्कुल नहीं है, मगर कारण विशेष से किसी विद्यार्थी के साथ ऐसा बन जाता है तो जूठे के लिए भोजनशाला के बाहर उसकी कुण्डी बनी हुई है, जिसमें यह जूठन डाल दिया जाता है । यह जठन बगीचे के लिए जो बैल हैं उनके काम आ जाता है । Jain Education International छात्रावास में अध्ययन समय सारिणी के अनुसार छात्रावास में छात्रों का विद्यालय समयोपरान्त सवा चार घण्टे अध्ययन के लिए मिलते हैं । नियमित रूप से सवा चार घण्टों के अलावा अध्ययन करने पर किसी भी विद्यार्थी को असफलता नहीं मिलती । प्रतिदिन सायं के बाद विशेषकर पदणित के लिए कोचिंग कक्षाओं की व्यवस्था की जाती है, जिनमें प्रायः विद्यालय के अध्यापक ही उन्हें उपरोक्त विषयों का अध्ययन कराते हैं और खास तौर से कमजोर विद्यार्थियों को कम रुपयों में अध्ययन की सुन्दर व्यवस्था का लाभ मिल जाता है। अपने आवासीय कमरों में एकदम जान्त वातावरण में होता है। पूर्ण प्रात: और सायं का अध्ययन व गृहकार्य शान्ति बनी रहे इसके लिए प्रत्येक सदन में एक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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