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________________ २४० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : द्वितीय खण्ड इस भवन में चार सदन हैं१. महावीर सदन २. अणुव्रत सदन ३. तुलसी सदन ४. भिक्षु सदन इन सदनों का नामकरण श्री मूलसिंहजी चुण्डावत के प्रयास से सन् १९६५ में किया गया था। इस अवधि में श्री चूण्डावतजी यहाँ मुख्य अधीक्षक थे। छात्रावास के उद्देश्य . छात्रावास का मुख्य उद्देश्य छात्रों में नैतिक शिक्षा देने का है जिससे छात्र राष्ट्र के सुन्दर नागरिक बने । देश के कर्णधार बनें । यद्यपि छात्रावास तेरापंथ समाज द्वारा संचालित किया जा रहा है फिर भी यहाँ किसी प्रकार की संकीर्णता नहीं है। यहाँ केवल जैनों को ही नहीं अपितु राजपूत, ब्राह्मण, चौधरी, पुरोहित, घांची, सिन्धी, पंजाबी आदि जातियों के छात्रों को भी प्रवेश दिया जाता है। छात्रावास की उत्तम व्यवस्था, सुन्दर देख-रेख शुद्ध खान-पान व सुन्दर परीक्षाफल से छात्रों की संख्या में दिनप्रतिदिन वृद्धि होने लगी। छात्रावास का विशाल भवन अब कम पड़ने लग गया। श्री केसरीमलजी सुराणा के सम्मुख यह एक और प्रश्न उभरकर आया है । सन् १६७१ में कक्षा ७ के लिए बाजार में एक मकान श्री चुन्नीलालजी तातेड़ का किराये पर लेना पड़ा। स्थिति को देखकर श्री सुराणाजी ने भोजनशाला के पास ही बगीचे की जमीन में एक नये भवन का निर्माण कराया जो दो-मंजिला। इसका निर्माण १९७१ में हुआ। इसमें दो बड़े हाल हैं जो छोटी कक्षाओं की देखरेख के लिए श्रेष्ठ है। इसके बगल में औषधालय के लिए दो कमरे बनाये गये जो बाद में चलकर केन्द्रीय कार्यालय के रूप में बदल दिये गये । कुछ समय बाद इसी भवन के नीचे के हाल को संस्था के केन्द्रीय कार्यालय के रूप में परिणत कर दिया गया है जो वर्तमान में विद्यमान है। ऊपर की मंजिल में कक्षा १ से ५ तक के लिए छात्रावास बना हुआ है जिसका नाम 'जय-सदन' दिया गया है। जय-सदन में एक बड़ा हाल व चार कमरे हैं । इसमें करीब पचास अलमारे लगे हुए हैं। छात्रों की लगातार वृद्धि में से ये दोनों भवन अपर्याप्त रहने लगे । अतः छात्रावास के तीसरे भवन का निर्माण सन् १९७६ में किया गया। तीसरा भवन जहाँ पर बना उस स्थान पर कई वर्षों तक गौशाला रही थी। इस गौशाला में अच्छी नस्ल की सुन्दर दुधारु गायें बालकों के दुग्ध के लिए रखी गई थीं। मगर कई वर्षों तक लगातार अकाल पड़ने से चारे का अभाव होने लगा और मजबूर होकर गौशाला को बन्द करना पड़ा। इसी स्थान पर एक नया भवन बनाया गया। इस भवन के लिए २११५१) रुपये जोजावर निवासी श्रीमान् गोकुलचन्दजी संचेती ने दिये अत: इस छात्रावास का नाम श्री गोकुलचन्दजी रामलालजी संचेती जैन तेरापंथ छात्रावास रखा गया। इस छात्रावास में भी दो सदन हैं । नीचे के सदन का नामकरण ग्रन्थनायक के नाम से केसरी सदन रखा गया व ऊपर के सदन का नाम युवाचार्य महाप्रज्ञ के नाम से महाप्रज्ञ सदन' रखा गया। इस भवन में दस कमरे हैं व साइड में दो छोटे-छोटे कमरे अधीक्षकों (गृहपतियों) के लिए हैं। छात्रावास में प्रवेश-सीमा अध्ययनशील छात्रों को इस छात्रावास में कक्षा एक से ग्यारह तक के छात्रों को प्रवेश दिया जाता है। छात्रावास के मुख्य भवन में २५० विद्यार्थियों के निवास की सुविधा है। प्रत्येक कमरे में आठ-आठ आलमारियाँ व दो बड़े कमरों में अठारह-अठारह आलमारी हैं। ऊपर के हाल में विद्यार्थियों का निवास है। जय सदन आदर्श निकेतन की दूसरी शाखा का नाम जय सदन है, जिसमें कक्षा १ से ५ तक की कक्षाओं के छात्र निवास करते हैं। यहाँ पिचहत्तर विद्यार्थियों के निवास की व्यवस्था है। छोटे- छात्रों के लिए यह भवन अत्यधिक उत्तम है। एक ही नजर में सभी विद्यार्थियों की देख-रेख सहज ही हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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