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________________ २३६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : द्वितीय खण्ड प्रवृत्ति के नाम से रत्न के रूप में सम्बोधन प्रदान किया जाता है यथा-फुटबाल रत्न, हाकी रत्न, बालीबाल रत्न, बेडमिन्टन रत्न, संगीत रत्न, भाषण रत्न, अध्ययन रत्न, स्काउट रत्न आदि । उत्सव समारोह-शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित स्वतन्त्रता दिवस, शिक्षक दिवस, गणतन्त्र दिवस, गांधी जयंती, बाल-दिवस, हिन्दी-दिवस, जन्माष्टमी, संवत्सरी, रामनवमी, महावीर जयन्ती आदि के उत्सव प्रतिवर्ष समारोहपूर्वक मनाये जाते हैं । इनमें प्रतिष्ठित नागरिकों के विचार, विद्वान मुनिजनों के प्रवचनों का लाभ छात्रों को प्रदान किया जाता है । इन अवसरों पर आयोजित प्रतियोगिताओं में सफल छात्रों को उचित पुरस्कार भी दिये जाते हैं। पन्द्रह अगस्त और गणतन्त्र दिवस को राणावास गाँव व स्टेशन पर सामूहिक पद संचलन तथा व्यायाम आदि का प्रदर्शन भी किया जाता है। इस अवसर पर सुराणा फण्ड की ओर से सभी छात्रों को मिष्ठान वितरण भी किया जाता है। विद्यालय का वार्षिक उत्सव प्रतिवर्ष विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसी प्रकार आचार्य तुलसी जन्मोत्सव, पाटोत्सव, आचार्य भिक्षु चरमोत्सव आदि भी आयोजित किये जाते हैं। आर्थिक सहायता-सहयोग–विद्यालयों के छात्रों व अध्यापकों की यह प्रवृत्ति प्रारम्भ से ही रही है कि जबजब भी देश पर संकट आया अथवा देश के किसी प्रदेश में प्राकृतिक विपदा उपस्थित हुई, यहाँ के छात्रों व अध्यापकों ने अपनी ओर से तथा समाज से चन्दा आदि एकत्रित कर वहाँ भेजा है। चीन के आक्रमण के समय सन् १९६२ में, बंगला देश के शरणार्थियों को १९७१ में, बिहार बाढ़ पीड़ित सहायता कोष १९७६-७७ में तथा आन्ध्र प्रदेश बाढ़ पीड़ित सहायता कोष १९७८-७९ में इस प्रकार की आर्थिक सहायता आर्थिक रूप में व वस्तु रूप में भेजी गई। इसी तरह समय-समय पर रेडक्रास सोसायटी, राजस्थान शिक्षक कल्याण कोष, निर्धन छात्र कोष आदि में भी आर्थिक सहायता दी जाती है। विद्यालय में आगन्तुक अतिथियों द्वारा भी विद्यालय की प्रगति व व्यवस्था से प्रसन्न होकर समय-समय पर आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता है, जिसका उपयोग निर्धन छात्रों को सहायता देने, पुस्तकालय, वाचनालय तथा अन्य विकासमान प्रवृत्तियों में किया जाता है। विशिष्ट अतिथियों का पदार्पण--विद्यालय में समय-समय पर विशिष्ट अतिथियों का पदार्पण होता रहता है। भारत की अतिथि-परम्परा के अनुरूप उनका आदर-सम्मान व सत्कार किया जाता है तथा यथासम्भव समारोह, गोष्ठी आदि का आयोजन कर उनके अनुभवों से छात्रों को परिचित कराया जाता है। उनके विशेष प्रवचन आयोजित किये जाते हैं। __ छात्रों में नैतिक व आध्यात्मिक जागरण-सुमति शिक्षा सदन अपने नाम के अनुरूप छात्रों में नैतिक व आध्यात्मिक सुमति विकसित करने का वर्षभर प्रयास करता रहता है। उत्सव, समारोह, गोष्ठी, प्रवचन आदि के माध्यम से छात्रों में इस तरह के विचारों के अंकुर प्रस्फुटित किये जाते हैं। चरित्र विकास की भावना अनुशासन और बड़ों के प्रति आदर व श्रद्धा इस विद्यालय के छात्रों में कूट-कूट कर भरी जाती है। यही कारण है कि राणावास जैसे छोटे से गाँव में हजारों की संख्या में बाहर से आकर छात्र अध्ययन करते हैं किन्तु यहाँ पर जैसी शान्ति, अध्ययन के प्रति लगन और संयमित जीवन छात्रों में पाया जाता है, वह सम्पूर्ण देश के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण है, अनुकरणीय एवं दिग् सूचक है। युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के योग्य शिष्यों के चातुर्मास के दौरान छात्रों को जीवन निर्माण का पर्याप्त अवसर व सान्निध्य मिलता है। सचमुच में यह विद्यालय नैतिक व आध्यात्मिक जीवन की प्रेरणादायी प्रयोगशाला है। __विद्यालय शिक्षकों का सम्मान-छात्रों के जीवन निर्माण में इस विद्यालय के शिक्षकों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। विद्यालय में ऐसे शिक्षकों की ही नियुक्ति की जाती है जो अपनी जीविकोपार्जन के साथ-साथ छात्रों के जीवन निर्माण में भी समर्पण भाव रखते हैं। यही कारण है कि यहाँ के शिक्षकों की श्रम एवं कर्तव्यनिष्ठा को सरकार ने भी समय-समय पर अनुभव कर मान्यता प्रदान की है, ऐसे शिक्षकों का सम्मान किया है, उन्हें सम्मान-पत्र, प्रशंसा व सराहना पत्र एवं पुरस्कार प्रदान किये हैं, विवरण इस प्रकार है ०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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