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________________ • २०६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराना अभिनन्दन ग्रन्थ : द्वितीय खण्ड ................-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.. है। प्रथम तीन सर्वश्रेष्ठ रचनाओं के रचनाकारों को पुरस्कृत किया जाता है। इसी प्रकार अंग्रेजी भाषा में रचित प्रथम तीन सर्वश्रेष्ठ रचनाओं को भी पुरस्कृत किया जाता है। महाविद्यालय के छात्रों द्वारा बाहर प्रतिनिधित्व-इस महाविद्यालय के छात्र केवल स्थानीय प्रतियोगिताओं में ही भाग नहीं लेते, वरन् अन्य महाविद्यालयों द्वारा आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिताओं, निबन्ध एवं कहानी प्रतियोगिताओं आदि में भी भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं द्वारा आयोजित विभिन्न शैक्षिक प्रतियोगिताओं में भी यहाँ के विद्यार्थी भाग लेते हैं। इस प्रकार बाहर जाकर ये विद्यार्थी इस महाविद्यालय को विशिष्ट गौरव एवं लोकप्रियता प्रदान करते हैं तथा सराहनीय स्थान प्राप्त करते हैं । सत्र १९७८-७६ में एस०पी०यू० महाविद्यालय, फालना द्वारा आयोजित श्री छोटूलाल सुराणा अखिल भारतीय हिन्दी वाद-विवाद प्रतियोगिता में इस महाविद्यालय के छात्र-दल ने प्रथम स्थान प्राप्त कर चल वैजयन्ती से पुरस्कृत हुए। इसके अतिरिक्त अनेक विद्यार्थियों ने निबन्ध एवं कहानी प्रतियोगिताओं में द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त किये । सत्र १९७६-८० में श्री भैरूसिंह कुंपावत ने श्री प्राज्ञ महाविद्यालय, विजयनगर द्वारा आयोजित निबन्ध प्रतियोगिता तथा पत्रिका 'प्रतियोगिता' दर्पण द्वारा आयोजित अ० भा० निबन्ध प्रतियोगिता दोनों में द्वितीय स्थान प्राप्त किये । इसी प्रकार श्री महेन्द्र भाटोतरा ने विजय नगर महाविद्यालय की निबन्ध प्रतियोगिताओं में तृतीय स्थान प्राप्त किया । सत्र १९८०-८१ में राजकीय महाविद्यालय जालोर द्वारा आयोजित अखिल राजस्थान अन्तर्महाविद्यालय हिन्दी वाद-विवाद प्रतियोगिता में इस महाविद्यालय के श्री घेवरचन्द एवं श्री शैतानसिंह ने महाविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया एवं प्रथम स्थान प्राप्त कर चल वैजयन्ती से विभूषित हुए। इसी प्रकार श्री दयानन्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अजमेर द्वारा आयोजित अखिल राजस्थान अन्तमहाविद्यालय निबन्ध प्रतियोगिता में श्री गोकुलसिंह राजपुरोहित ने प्रथम स्थान, श्रीमती गोमतीदेवी महाविद्यालय बड़ागांव एवं राजकीय महाविद्यालय, जालोर द्वारा आयोजित अखिल राजस्थान अन्तर्महाविद्यालय निबन्ध प्रतियोगिताओं में श्री शांतिलाल कोठारी एवं श्री गोकुलसिंह राजपुरोहित ने क्रमश: प्रथम एवं द्वितीय स्थान प्राप्त किया। पुस्तकालय-शिक्षण-संस्थानों में पुस्तकालय का महत्त्व निर्विवाद है। इस महाविद्यालय में पुस्तकालय की व्यवस्था उत्तम है। पुस्तकालय सामान्यत: प्रातः १० बजे से सायं ५ बजे तक कार्य करता है। न्यूज पेपर स्टैण्ड, काउण्टर, मैगजीन रैक आदि से सुसज्जित पुस्तकालय कक्ष में ३० प्रतिशत विद्यार्थी एक साथ बैठकर अध्ययन कर सकते हैं। पुस्तकालय में कुल पुस्तकों की संख्या ४८६१ है, जिनकी विषयानुसार स्थिति इस प्रकार हैहिन्दी ६२८ लेखा एवं सांख्यिकी ४८६ धार्मिक पुस्तकें अंग्रेजी ३६० व्यावसायिक प्रशासन २३६ सन्दर्भ व अन्य इतिहास ३५० लागत एवं परिमाणात्मक अर्थशास्त्र ६१० विधियाँ ८५ राजनीतिशास्त्र ३४० ८०० ६०० अब तक महाविद्यालय पुस्तकों के क्रय में लगभग एक लाख रुपये व्यय कुर चुका है। पुस्तकालय के सुचारु संचालन हेतु उसे निम्न अनुभागों में बाँटा गया है-आगम-निर्गम अनुभाग, संदर्भ-सेवा अनुभाग, तकनीकी सेवा अनुभाग, धामिक कक्ष, बुक बैंक आदि। पुस्तकालय से प्रत्येक विद्यार्थी को तीन पुस्तकें १५ दिन के लिए अवदान की जाती है। लगभग ७० पुस्तकों का प्रतिदिन आदान-प्रदान होता है। निर्धन छात्रों की सहायतार्थ पुस्तकालय में बुक बैंक की भी व्यवस्था है। इस अनुभाग में ५१२ पुस्तकें हैं। Jain Education International ional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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