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________________ श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ, राणावास का इतिहास १७७ __रामसिंह का गुड़ा में विद्यालय की स्थापना राणावास से ६ मील दूर गाँव रामसिंह का गुड़ा है। दहाँ तेरापंथी समाज के लगभग ६० परिवार निवास करते है जो कि समृद्धिशाली एवं उदार हैं । उन्होंने अपने यहाँ विद्यालय स्थापित करने की योजना बनाई, जिसके सूत्रधार श्री पारसमलजी डोसी हैं । समाज के सभी व्यक्तियों ने अपनी ओर से धनराशि प्रदानकर एक लाख रुपया एकत्रित किया और भवन निर्माण किया । भवन निर्माण हेतु २० बीघा भूमि राज्य सरकार से गाँव के पास नदी के किनारे आवंटित की गई। इसके लिये श्री चाँदमलजी सिंघवी का विशेष प्रयत्न रहा और संघ के नाम से रजिस्ट्रेशन कराया गया जिसमें तत्कालीन विकास अधिकारी श्री शेरनाथजी तहसीलदार का सहयोग सराहनीय रहा है। भवन का शिलान्यास सरपंच श्री हाथीसिंहजी राठौड़ ने किया । श्री पारसमलजी डोसी, श्री मुल्तानमलजी गुगलिया एवं योगेश्वर श्री प्रेमनाथजी की देखरेख में यह भवन ४ वर्ष में निर्मित हुआ। इस भवन में एक बड़ा हाल, १० कमरे (बड़े), ४ छोरे कमरे, सबके आगे बरामदा, मुख्य द्वार के दोनों ओर दो निवासगृह बनाये गये । भवन के आगे और पीछे खेल के मैदान हैं। पूर्वी भाग में एक कुआ भी खुदवाया गया है। वहाँ के निवासी निजी तौर पर विद्यालय चलाने की असमर्थता अनुभव कर रहे थे इसलिये उन्होंने इस भवन और भूमि को संघ को अर्पण कर उ० प्राथमिक विद्यालय का संचालन करने की प्रार्थना की। साथ ही मासिक खर्च के लिये ५१०००) इकावन हजार रुपयों की धनराशि संग्रह करके देने का वचन दिया ताकि इस पूजी के ब्याज से मासिक खर्च चल सके । संघ ने काफी विचार-विमर्श के पश्चात् इसे स्वीकार किया। सन् १९७० ई० में यहाँ श्री सुमति शिक्षा सदन, राणावास की एक शाखा के रूप में एक साथ कक्षा ६, ७ एवं ८ प्रारम्भ कर दी गई और प्रधानाध्यापक पद पर श्री विजयसिंह पंवार (स०अ० श्री सु०शि०स०) को स्थानातरीत किया। उनके ६ वर्ष के कार्यकाल में छात्रों की वृद्धि एवं चतुर्मुखी विकास हुआ । भवन का विधिवत् उद्घाटन दानवीर सेठ श्री पूनमचन्दजी कोठारी, निवासी राजनान्दगांव के कर-कमलों द्वारा दि० १० फरवरी १९७१ ई० की सानन्द सन्पन्न हुआ। दो वर्ष का समय व्यतीत हो जाने पर भी वहाँ के निवासियों ने उक्त धनराशि जमा नहीं कराई जिससे खर्चा चलाना मुश्किल हो गया। इस पर संघ के मन्त्री महोदय के सुझाव एवं अनुरोध पर श्री रूपचन्दजी सिरेमलजी डोसी ने अपनी ओर से ५११५१) रु० की धनराशि देना स्वीकार किया और विद्यालय पर श्री पी० एच० रूपचन्द डोसी जैन माध्यमिक विद्यालय का नामांकन कराया, जो संघ की बैठक में स्वीकार किया गया। सन् १९७५ ई० में इसमें कक्षा ९ व १० का शिक्षण भी प्राइवेट (स्वयंपाठी) के रूप देना प्रारम्भ कर दिया गया है। महाविद्यालय का प्रारम्भ सन् १९७१ ई० में छात्रावास के ३६० छात्र कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा के नेतृत्व में आचार्य श्री तुलसी के दर्शनार्थ और चातुर्मास की विनती के लिये लाडनू गये और ६ दिवस ठहरकर सेवा का लाभ प्राप्त किया। आचार्यदेव ने श्री सुराणाजी को छात्रों में उच्चतम शिक्षा प्रदान कर आदर्श व चरित्रवान नागरिक बनाने की अमूल्य प्ररणाएँ दी जिससे उनके हृदय में ये विचाररूपी तरंगें सहस्रगुनी उद्वेलित होकर लहराने लगीं । फलतः उन्होंने अपने ये विचार मानव हितकारी संघ के सदस्यों के सम्मुख प्रस्तुत किये। सबने विचारों का समर्थन करते हुए उच्च माध्यमिक विद्यालय से बढ़ाकर महाविद्यालय स्तर की शिक्षा प्रारम्भ करने की स्वीकृति दी। इस विशालतम योजना को कार्यान्वित करने के लिये श्री सुराणा साहब तन, मन और धन से संलग्न हो गये और महाविद्यालय के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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