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________________ कांठा के तेरापंथी तीर्थ (३) आपको बोधि प्राप्त हुई और उसके बाद आप आचार्य रुघनाथजी से मिले और अपने मतभेदों के बारे में विचारविमर्श हुआ लेकिन जब समझौते की कोई स्थिति नहीं देखी तो इसी बगड़ी से आपने अभिनिष्क्रमण वि० सं० १५१७ की चैत्र शुक्ला नवमी को किया और सर्वप्रथम अपने शिष्यों के साथ ठाकुर जैतसिंहजी की छतरी में आकर ठहरे। बगड़ी से आचार्य भिक्ष के अभिनिष्क्रमण के बाद उसे 'सुधरी' नाम से भी पुकारा जाता है। क्योंकि यहाँ से आचार्य भिक्षु ने अभिनिष्क्रमण कर जैनधर्म में सुधार का शंख फूंका था। इस कारण इसे बगड़ी नहीं सुधरी कहा जाने लगा । बगड़ी कांठा क्षेत्र का एक अच्छा करना है। वहाँ पर जैनियों के घरों की काफी संख्या है। माध्यमिक विद्यालय, कन्या विद्यालय आदि बने हुए हैं। पारसनाथ का जैन मन्दिर है। मोतीलालजी रांका ने एक अतिथि भवन भी बना रखा है। निर्वाण स्थली - सिरियारी OOOO Jain Education International १६१ निर्वाण स्थली - सिरियारी [] श्री समुद्रलाल संचेती ( प्रधानाध्यापक - श्री सुमति शिक्षा सदन, प्राथमिकशाला, राणावास ) सिरियारी नवकोटी मारवाड़ एवं वीरभूमि मेवाड़ के सन्धिस्थल में अरावली पहाड़ की तलहटी और कांठा क्षेत्र में बसा हुआ गाँव है । यह नगर चारों ओर पर्वतों से परिवेष्ठित है । उत्तर की ओर सिरियारी की नदी बहती है। इसी नदी के तट पर तथा पर्वतों की तलहटी में एक प्राचीन बावड़ी है। पहले कभी तिरियारी गाँव चारों ओर चार दरवाजों से घिरा था । उत्तर में सोजत का दरवाजा, पूर्व में देवगढ़, पश्चिम में पाली तथा दक्षिण में बाली का दरवाजा था । अब इनके अवशेष मात्र ही विद्यमान हैं । यह भूमि बहुत प्राचीन है सिरियारी के बारे में जो लोक-कथाएँ प्रचलित हैं, उनके अनुसार इस सिरियारी का इतिहास पौराणिक काल की सीमा तक चला जाता है। जनश्रुति के अनुसार यहाँ कभी हिरण्यकश्यप का राज्य था । उसका पुत्र प्रहलाद परम भगवद् भक्त था। इसी गाँव में एक कुम्हार की लड़की भी थी। उसका नाम सिरिया ( श्रेया ) था । भक्त प्रहलाद को भगवान पर विश्वास इसी सिरिया नाम की कुम्हारी ने कराया था । उक्त कुम्हारी का पिता यहाँ मिट्टी के मटके पका रहा था, किन्तु एक मटके में बिल्ली के बच्चे रह गये । सिरिया को जब इसका पता चला तो वह बहुत चिन्तित हुई, किन्तु नेवों में आग धधक रही थी। उस आग में बिल्ली के बच्चों वाला मटका ढूँढ़ना असम्भव था । भगवान को याद करने के अलावा और कोई चारा नहीं था । सिरिया इन बच्चों की जान बचाने के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगी। सिरिया सती-साध्वी एवं सन्त नारी के रूप में उस समय तक प्रख्यात हो चुकी थी । आखिर भगवान ने सिरिया की प्रार्थना सुन ली । नेवे जब पक गये और पके हुए बर्तन निकाले तो बिल्ली के बच्चों वाला मटका कच्चा ही था । बच्चे जीवित थे। इस घटना को प्रहलाद ने अपनी आँखों से देखा । तब से प्रहलाद के हृदय में भगवान के प्रति विश्वास और बढ़ गया। इसके बाद की घटनाएँ सुख्यात हैं किन्तु सिरिया नाम की इस कुम्हारी ने ईश्वरभक्ति नहीं छोड़ी। उसने वहीं एक मन्दिर बनवाया। गाँव में ही उसका वह मन्दिर परिवर्तित रूप में आज भी विद्यमान है। इसी सिरियादेवी के नाम से इस गांव का नाम सिरियारी पड़ा । सिरियारी गाँव में सिरियादेवी के पिता द्वारा नेवे पकाना, बिल्ली के बच्चों का जीवित निकलना और प्रहलाद को बोध होना, इस For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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