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________________ 'कांठा' का भौगोलिक और सांस्कृतिक परिवेश डॉ० देव कोठारी ( उपनिदेशक, साहित्य संस्थान, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर) वर्तमान राजस्थान विभिन्न भौगोलिक इकाइयों के समूह का एकीकृत नाम है। मारवाड़, मेवाड़, ढूंढाढ़, मेवात, हाड़ौती, वागड़ आदि ऐसे ही क्षेत्रीय नाम हैं । भाषा, भूगोल व सांस्कृतिक विशेषताओं की दृष्टि से ये विभिन्न भूभाग अपनी अलग पहचान आज भी रखते हैं । इन भू-भागों के और भी क्षेत्रीय उपविभाग परम्परा से विद्यमान हैं । इसी क्रम में मारवाड़ भी विभिन्न छोटे-छोटे उपविभागों में विभक्त था । गोड़वाड़, कांठा, माड़ आदि ऐसे ही उपविभाग हैं । इस निबन्ध में अध्ययन की सीमा कांठा क्षेत्र तक ही सीमित है । कांठा की सीमा मारवाड़ या जोधपुर राज्य के दक्षिण-पूर्व में तत्कालीन सोजत परगने में स्थित ३०० वर्गमील का क्षेत्र कांठा के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यह पाली जिले का एक समृद्धिशाली क्षेत्र है। इस क्षेत्र की सीमा-रेखा उत्तर में पाली जिले का कंटालिया गाँव है । दक्षिण में खिमाड़ी, धनला गाँव तथा गोड़वाड़ का क्षेत्र है । पूर्व में सारण, सिरियारी और पश्चिम में जारण गाधागा व मारवाड़ जंक्शन (खारची) है। इस प्रकार यह मारवाड़ (जोधपुर) राज्य के दक्षिण-पूर्व में जहाँ मेवाड़ राज्य की सीमा मिलती है, उस सीमा रेखा पर अरावली पर्वतमाला की तलहटी में बसा हुआ है । इस पर्वतमाला से निकलने वाली नदी कांठा क्षेत्र के ठीक मध्य में होकर बहती है। इस प्रकार पाली जिले की खारची तहसील का अधिकांश भाग कांठा क्षेत्र में सम्मिलित है । (देखें, पाली जिला एवं खारची तहसील का मानचित्र पृष्ठ १५२ पर)। कांठा का नामकरण कांठा शब्द संस्कृत के 'उपकण्ठ' शब्द से बना है । उपकण्ठ का अर्थ पास, निकट, समीप, नजदीक आदि है । उपकण्ठ में 'उप' शब्द का लोप होकर 'कण्ठ' के 'कं' तथा 'ठ' दोनों अक्षरों में 'आ' का आगम होने से कं + आकां तथा ठ + आ = ठा अर्थात् कांठा शब्द बना है और अर्थ में परिवर्तन नहीं हुआ है। इस प्रकार उपकण्ठ व कांठा दोनों शब्दों का अर्थ पास, समीप, निकट, नजदीक, किनारा, तट आदि ही है । मारवाड़ी या राजस्थानी में यह शब्द कांठे, कांठी ओर कांठैलिये रूपों में मिलता है। कांठे व कांठी दोनों का अर्थ पास, नजदीक, समीप आदि सन्दर्भ में मिलता है। उदाहरणार्थ, इन्दरसिंघ राठौड़ से सम्बन्धित गीत में कां शब्द इस प्रकार आया है भाखर कांठे बाघ भड़ाला, डाकर सुण मेवास डरे । इसी तरह इसी अर्थ में कांठे शब्द का प्रयोग कविराजा बांकीदास ने इस प्रकार किया है सुतौ थाहर नींद सुख, सादुलो बलवंत । वन कांठे मारग वह, पग पग हौल पड़ंत ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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