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________________ . -. -. -. -. -. -. RSSSSSSSSSSSSESकर्तव्य-बोधERRIES RSS निज आत्मा का हित सधे, हो न किसी को कष्ट । कार्य वही कर्तव्य है, जिससे दुगुण नष्ट ॥१॥ अन्त भले का है भला, करो भला दिन-रात। अन्त बुरे का है बुरा, देखो हाथों-हाथ ॥२॥ जीवन में यदि हो गया, एक बार दुष्कर्म । मन को वश करके करो, फिर न कभी वह कर्म ॥३॥ मानव का कर्तव्य है, करना क्षमा-प्रदान । पनपाता जो शत्रुता, वह दानव पहचान ॥४॥ सबके प्रति सम-भावना, गुणि-जन से अनुराग। पीड़ित जीवों पर दया, हितकर भोग विराग ॥५॥ मानव का कर्तव्य है, करना निज-उत्थान । चले पतन के पंथ पर, पशु-सम वह पहचान ॥६॥ जन-रंजन के हेतु जो, तजता धर्माचार । स्तुत्य न होता वह कभी, ज्यों वेश्या-शृगार ॥७॥ सदाचार से पुरुष को, मिलता है सम्मान । राजपुरोहित की कथा, सूनलो देकर ध्यान ॥८॥ अहित न अरि का भी करें, देखे अपने दोष । "मुनि गणेश" ईर्ष्या तजे, करे न निन्दा-रोष ॥६॥ RDERSERDESSESENDENCESCERESERDERDESEBEDESESEXDESESEDEDESSESDESESENSEISED. 88999ESESERESENSERESERREDEPRESS8EBERRENESEB89. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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