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________________ अभिनन्दनों का आलोक १४१ . ................................................-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-... प्रशंसनीय ही नहीं अपितु अनुकरणीय उदाहरण है। आपकी दिनचर्या सम्पूर्ण रूप से एक साधक की दिनचर्या है तथा दिन-रात के २४ घन्टों में अधिकतम समय स्वाध्याय, मौन एवं चिंतन में व्यतीत होता है। कुशल प्रशासक व शिल्पी ! __जहाँ आपने संस्कार युक्त चरित्र का निर्माण किया है वहाँ आपने अपनी संस्था के विशाल क्षेत्र में अपनी कल्पना एवं शिक्षा की गरिमा के अनुरूप सुन्दर भवनों का निर्माण भी किया है, जिससे जिज्ञासु एवं शिक्षा-प्रेमी छात्र आपके मार्गदर्शन में विद्यालाभ ही नहीं अपितु जीवन का निर्माण कर रहे हैं। इतनी बड़ी संस्था को जो कि अपने आप में सम्पूर्ण है आप जैसे व्यक्ति ही उसको संचालित कर सकते हैं । अर्थ का इतना बड़ा संकलन और समुचित उपयोग कोई साधारण कार्य नहीं है । अनासक्त कर्मवीर ! आप अपने लिये नहीं जिये अपितु आपका जीवन दूसरों के लिए है। कर्मफल की साध आपने कभी नहीं की। आपके लिये कर्म ही इति है तथा आपके जीवन में त्याग, तप व कर्म की त्रिवेणी के दर्शन होते हैं । अतः आपको 'नर केसरी' से विभूषित किया जाना सर्वथा आपकी गरिमा के अनुरूप है। अन्त में हम आपके दीर्घ एवं शतायु जीवन की परमपिता प्रभु से कामना करते हैं और आशा करते हैं कि आपका स्नेह पूरित मार्गदर्शन हमें सदैव मिलता रहेगा। रामसिंह का गुड़ा जिला-पाली (राजस्थान) १ फरवरी, १९८० हम हैं आपके रामसिंह का गुड़ा के निवासी - 0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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