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________________ काव्यांजलि ११५ . - . - . - . - . -. - . - . - . - . -.. ..........-.-.-.-.-. -.-. -.-.-.-.-.-. -.-.-. -.-. ऋषि केशरी 0 साध्वी श्री जयश्री (नोहर) (तर्ज-तेजो) निरभिमानता सेवा भावना, श्रावक जी री अद्भुत हो कर्मठ गुणग्राही जीवन आपरो॥७॥ भौतिक युग में जीवन ने थे दियो मोड़ उत्कर्ष हो पायो इण तन रो सच्चो सार है ॥१॥ छोटी वय में शील व्रत स्वीकारयो मन वैराग हो मिलसी थांस्यूं दूजां ने प्रेरणा ॥२॥ नहीं करणो जल स्नान बिल्कुल, स्वाद विजय है अनूठो हो जागृतिमय क्षण-क्षण सारी जा रही ॥३॥ दोय बार भोजन प्रति दिन में जल दो बार ही लेणो हो मुश्किल लागे सबने आ साधना ॥४॥ साधु वृत्ति सम बण गई सारी जीवन री दिनचर्या हो सत्रह सामायिक करणी रोज री ॥५।। भिक्षु प्रतिमा ग्यारहवीं में करयो देव उपसर्ग हो किंचित् विचलित नहीं हआ रोंगटा ॥६।। स्वावलम्बी है जीवन थांरो, निश्छल सद्व्यवहारी हो करणो प्रति दिन आलोचन पापरो ॥७॥ राणावास री भूमि मानों ज्यों वाराणसी बणगी हो स्कूलां कालेजां खुलगी सांतरी ॥८॥ श्रावकजी रो कठिन परिश्रम आज बण्यो शतशाखी हो ज्ञान री अद्भुत सरिता बह रही ॥६॥ शासनसेवी ऋषि केसरी, श्री तुलसी रा भक्त हो आंरे जिसा श्रावक विरला मिले ॥१०॥ "साध्वी जयश्री" जी रो कहणो संयम तप जप धारो हो मानव जीवन रो ओ शृंगार है ॥१२॥ निरभिमान गुरु-भक्ति में, रहते हरदम लीन । श्रावक केसरीमलजी, समता में तल्लीन ॥१॥ त्याग तपस्या में सजग, साधुव्रत दिन रात । श्रावक केसरीमलजी, देख्या मैं साक्षात् ।।२।। संघ संघपति धर्म में, आस्थावान प्रवीण । नवयुवक सो हृदय में, है उत्साह नवीन ।।३।। सुन्दरदेवी सी मिली, सहयोगी अनुकूल । सावचेत हर कार्य में, करे न कब ही भूल ॥४॥ दाम्पत्य जीवन में खिल्यो, ब्रह्मचर्य को रंग। संयम, समता, सादगी, व्यापी उनके अंग ॥५॥ O साध्वी श्री जतनकुमारी (राजगढ़) आस्थावान श्रावक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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