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________________ में-"देश का भविष्य बच्चों के सही विकास में है। केवल गरीबी दूर करके देश को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता अपितु प्राचीन संस्कृति देशवासियों के लिये अमूल्य निधि है। उन मूल्यों की स्थापना तथा अभिवृद्धि समाज के मूल तत्वों के पतन को रोकने में समर्थ हो सकेगी।" हर युग में ज्ञान-विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में आदर्श व्यवहार में समन्वय बनाकर एक निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये मर्यादायें बनती हैं। संचालन में मूल दृष्टि कोण विकास मूलक रहा । युग की धारा में संघ आगे बढ़ता रहा । सुधार मूलक प्रवृत्तियों में संघ की प्रत्यक्ष भूमिका बनी रही। नारी समाज नानारूढ़ियों व बन्धनों से मुक्ति की ओर अग्रसर रहा। संस्कृति मानव की निधि है, आत्मा एक है, विविधता में भारतीय दर्शन की समरूपता है, भाषा, आचार-विचार में एकता है। महावीर वाणी-"जीओ और जीने दो" सम्पूर्ण संस्था निर्माण व संचालन में शिक्षा व संस्कृति का सामंजस्य उपस्थित कर इस आदर्श का निर्वाह किया है। __ आप सदा आत्मविश्वास व साहस के अदम्य प्रतिमूर्ति बने रहे। विविध संघर्षों और विवादास्पद परि-. स्थितियों में कभी मानसिक संतुलन नहीं खोया। गान्धीजी द्वारा प्रदत्त "ट्रस्टीशिप” मान्यता को सही रूप में निभाया। मानवीय दृष्टिकोण और निश्छल सेवावृत्ति आपके अन्तर्मन को अद्भुत आनन्द का प्रतिक्षण दिग्दर्शन कराती है। इसलिये आपके मुख पर व वाणी में ओज है। संस्था का स्वस्थ नियमन व अभूतपूर्व संचालन ने कई प्रतिभाओं को पल्लवित व पोषित किया है । यही संस्था को परिणति और स्थायित्व में फलित हुई है। 李个个穿个个本空空空空空空 李李李个卒卒中李李李李李李李李李李李李李李寧个个 अभिनन्दन ग्रन्थ का चिन्तन व आंशिक प्रयास विगत कुछ वर्षों से था। उसी क्रम में संघ की कार्यकारिणी तथा साधारण सभा ने जनवरी १९७८ में विधिवत इस कार्य को ठोस रूप दिया। जिसका दिग्दर्शन ग्रन्थ से प्रकटित है । अब अभिनन्दन ग्रन्थ अणुव्रत अनुशास्ता युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी के श्री चरणों में सादर भेंट हैं तथा समाज व देश के सम्मुख प्रस्तुत है। जिन-जिन महानुभावों का इस विशाल कार्य में सक्रिय सहयोग मिला उनके नाम यथा स्थान उल्लखित है । उच्च परामर्शक मण्डल की गरिमा, मूधय॑ साहित्यकार डा० नथमलजी टाटिया का सुप्रवर्चस्व उदीयमान लेखक, डा० देव कोठारी का विद्वतापूर्ण सम्पादन, योग्य एवं अनुभवी शिक्षाविद प्रो० एस० सी० तेला की सतत् निष्ठा एवं प्रो० डी० सी० भण्डारी के हार्दिक सहयोग का इस ग्रन्थ में विशिष्ट स्थान है, जिन्होंने मेरे संवेदनशील संयोजन कार्य में निरन्तर सामंजस्य बनाये रखा। ये अपने-अपने कार्य में कार्यरत रहते हुए अपने समय व शक्ति की सीमा के साथ यथासम्भव गति प्रदान करते रहे । तथापि धीमी गति के लिये अवश्य ही उसके लिये हम सब विद्वानों लेखकों व ग्रन्थ के ग्राहकों के प्रति विनम्र क्षमा प्रार्थी है। 本中李李李李李李李李李李李李李李李李李李李李李 किसी भी महापुरुष की कीर्ति को स्थायी बनाये रखने के लिये अभिनन्दन ग्रन्थ एक उपयोगी और श्रेष्ठ, माध्यम है। प्रस्तुत ग्रन्थ धार्मिक, सामाजिक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक जगत में अनुपम स्थान बनाये, ऐसी कृति है। अभिनन्दन ग्रन्थ जहाँ गणों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करता है वहाँ जन-जीवन को एक नई प्रेरणा देता है। गुणों की * पूजा ही गुणों में वृद्धि करती है। काँठा प्रदेश बहुरत्न प्रसविनी है। जिस प्रकार सिद्धसेन दिवाकर ने जैनधर्म को लोकधर्म के रूप में प्रस्तुत किया उसी प्रकार तेरापन्थ धर्मसंघ की पृष्ठभूमि पर रचनात्मक प्रवृत्ति द्वारा आपने लोक चेतना जाग्रत की। अणुव्रत अनुशास्ता युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी का पावन संदेश 'निज पर शासन फिर अनुशासन' को साक्षात चरितार्थ किया। कर्मयोगी श्री सुराणा जी ने जिस इतिहास का सृजन किया, वह स्वर्णाक्षरों में सदा अंकित रहेगा। मानव-पीड़ा की अनुभूति नये प्रयोग की प्रेरक शक्ति बन गई। जो इनके रास्ते में काँटे बने वे आज फूल बनकर मुस्करा उठे हैं। आप एक निर्भीक, निर्लेप, कर्मठ तथा रचनात्मक कार्यकर्ता व साधक सदा बने रहे। कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा । आपने कल का ही नहीं, युगों का चिन्तन किया। अपनी जीवन रश्मियों को समस्त समाज में बिखेर दी। जिसके आलोक से प्रदेश का न सिर्फ लोक जीवन वरन् खेत और खलिहान भी प्रकाशमान है । आप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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