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________________ श्रद्धा-सुमन .... ........ ...... .. -. -.-.-. -. -.-.-. -.-.-. -.-.-. संकल्पों के साधक - श्री रतनसिंह सुराणा (बंगलौर) भाई साहब श्रीमान् केसरीमलजी सुराणा का सम्पूर्ण अपनी उम्र के ३५वें वर्ष में प्रवेश होने तक एक अच्छे जीवन ही एक धुनमय माना जा सकता है । आपका वैभवशाली प्रतिष्ठित धनाढ्य सेठों की शृखला में आ ननिहाल राणावास में ही है। आपके मामाजी श्री गये थे। शेषमलजी आच्छा का स्नेह आपके ऊपर अधिक था। यही श्रीमान् सुराणाजी का विवाह हुए अब तक २० वर्ष कारण है कि आप बाल्यावस्था में ननिहाल में अधिक रहे बोत चुके थे किन्तु उन्हें कोई सन्तान प्राप्त नहीं हुई थीथे। आपके समय का पाठ्यक्रम पुस्तकीय ज्ञान नहीं था। सर्वसुखसम्पन्न होते हए भी, पूत्र की कमी निःसन्दह हा मारवाड़ के प्रत्येक क्षेत्र में उन दिनों स्लेट-पाटियों एवं पति-पत्नी के दिल में महान् अशान्ति का विषय बना हुआ लकड़ी की पाटियों पर पाहडे, तमाम प्रकार से गणित था। संयोग की बात थी कि उसी समय में राणावास में विद्या पूर्णरूप से मौखिक कण्ठस्थ कराये जाते थे। श्री स्कूल खोला गया था और श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ शिक्षण सुराणाजी अपने समय के साथी छात्रों में अग्रगण्य विलक्षण संघ की स्थापना की गई थी। श्री सुराणाजी का दिल बुद्धि वाले माने जाते थे। आपके जीवन में इस राजस्थानी यकायक व्यवसाय से उचट गया और तन-मन-धन से पढ़ाई का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा और आप यहाँ से इस शिक्षण संघ की सेवा करने की दिल में ठान ली । अपने पढ़ाई पूर्ण कराकर हैदराबाद चले गये, वहाँ स्कूली शिक्षा लघु भ्राता श्री भंवरलालजी सुराणा बोलारमनिवासी में मैट्रिक तक की परीक्षा पास की। इसी बीच आपका को अपना व्यवसाय सिपुर्द करके एकदम वैराग्य वृत्ति से अल्पायु में ही विवाह हो गया और आपने जब १६ वर्ष की वहाँ से चलकर सपत्नी राणावास में पधार गये । राणावास आयु में प्रवेश किया ही था कि आपको आपके पिताश्री के पधारकर श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी शिक्षण संघ का पूरा वियोग का बहुत बड़ा झटका, सदमा पहुँचा । घर की सारी कार्य आपने संभाला। आपने सवप्रथम संघ का जिम्मेदारियाँ स्वयं पर आ पड़ी थीं। अतः आपने बड़ी स्थिति को मजबूत बनाने का दृढ़ संकल्प लिया था। अतः कुशलता से इस जिम्मेदारी को धैर्यपूर्वक निभाया। अब समस्त मारवाड़-बीकानेर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, आन्ध्र, आपको एकमात्र धुन लग गई थी कि दुनिया में रुपये-पैसे मैसूर, तमिलनाडु इत्यादि प्रान्तों का आपने दौरा करके की पूछ है और बगैर पैसे के आदमी की कोई कदर नहीं संघ की वित्तीय स्थिति को अत्यन्त सुदृढ़ बना दिया । चन्दा होती-अत: आप अपने व्यवसाय में तन्मयता से जुट गये। मंडवाने की कला में सुराणाजी एकदम माहिर माने जाते आपको अपना व्यवसाय वरदान सिद्ध हआ और इसमें हैं। आज श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ आपको दिन-प्रतिदिन अच्छी सफलता मिली। थोड़े समय की स्थिति आपके सामने मौजूद है, वह एकमात्र श्री में ही आपने अपनी धुन के मुताबिक इच्छापूर्ति वाली सुराणाजी के निःस्वार्थ श्रम का ही परिणाम है । वास्तव लक्ष्मी को अपने अनुकूल बना दिया। इतना ही नहीं आप में आप संकल्पों के साधक हैं। 00 जितने कठोर, उतने कोमल 0 श्री कान्ति संघवो "जैन" (बाव) श्री केसरीमलजी सुराणा से मेरा बहुत वर्षों से निकट- छात्र-छात्राओं के सच्चे माता-पिता के रूप में आप सम्मातम सम्बन्ध रहा है, कार्यकर्ताओं के प्रति उनका जो नित हैं। वहाँ अध्ययन करने वाले विभिन्न सम्प्रदायों के अप्रतिम स्नेह एवं वात्सल्य होना चाहिए वह मैंने उनमें पाया जैसे तेरापंथ, स्थानकवासी, मूर्तिपूजक सभी समाज के छात्रहै, उनके आदर्श-जीवन से बहुत प्रेरणा प्राप्त होती है। छात्राएँ हैं, जो अपने-अपने ढंग से वहाँ आते हैं । चंचलमना, राणावास के विभिन्न शिक्षा-प्रतिष्ठानों में अध्ययनरत उन्मादी, व्यसनी व लड़ाकू प्रकृति के छात्र-छात्राओं का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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