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________________ ७८ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड मारवाड़ का गरिमापूर्ण नक्षत्र देवेन्द्र कुमार हिरण, गंगापुर धुन के धनी, मारवाड़ के गरिमापूर्ण नक्षत्र श्री केसरीमलजी सुराणा का नाम सबकी जबान पर है । जिनके मानस में उठी कल्पना, कल्पना नहीं रही, साकार हो गई । अपने द्वारा वपन किया बीज, मारवाड़ की शुष्क भूमि में भी पल्लवित हो गया, पुष्पित हो गया एवं फलित हो गया । स्वयं श्री सुराणाजी के मन में भी यह कल्पना नहीं होगी कि राणावास की यह मरुभूमि एक दिन कर्मभूमि होगी, विद्या-भूमि होगी और प्रेरणा भूमि होगी । Jain Education International माननीय केसरीमलजी सा० सुराणा को कौन नहीं जानता ? वे जैन समाज के उन उज्ज्वल नक्षत्रों में एक हैं जिन पर समाज गौरवान्वित है । अपना सब कुछ समर्पित कर स्वयं समाज के लिए समर्पित हो जाने वाले सुराणाजी जैसे व्यक्ति अन्य दुर्लभ ही होगे । बेसरीमलजी साहब ने समाज में शैक्षणिक प्रगति के लिए उस समय प्रयत्न संजोये जब जैन समाज को शिक्षा की दृष्टि से पोषित किया जाना अत्यावश्यक था। राणावास जो आज विद्यानगर के रूप में उभर रहा है इसके श्रेयोभाक् एक मात्र सुराणाजी हैं । सुराणाजी रचनात्मकता की प्रतिमूर्ति हैं; बातों में उनका विश्वास कम है और कार्य में अधिक है। राणावास में कालेज की बात चली, लोग उसकी सम्भावनाओं-असम्भाव नाओं पर बैठे चर्चा ही कर रहे थे कि कालेज भवन की निसन्देह, मानव हितकारी संघ राणावास का जन्म एक शुभ नक्षत्र में हुआ । शुभ बेला में किये काम पूर्ण सफलता की ओर अग्रसर होते हैं । एक पौधा आज वट वृक्ष के रूप में हमारे सामने विद्यमान है। संस्था का विस्तृत स्वरूप है। सुमति शिक्षा सदन से लेकर आज महाविद्यालय का विराट प्रारूप हमारे समक्ष है । यहाँ का परिणाम राजस्थान में अपना गरिमापूर्ण स्थान रखता है । यहाँ से शिक्षा प्राप्त संकड़ों छात्र गरिमापूर्ण पदों पर हैं । जैन समाज के उज्ज्वल नक्षत्र [] श्री भीकमचन्द कोठारी, 'भ्रमर', टाडगढ़ मंजिलें भी खड़ी हो गईं, यह कोई साधारण बात नहीं । सुराणाजी साधना और सादगी के प्रतीक हैं । प्रतिदिन कुछ घण्टे छोड़कर उनका अधिकांश समय सामायिक चर्या में व्यतीत होता है, वे जैन श्रावकाचार की उच्च भूमिका निभा रहे हैं। आँखों पर एक साधारण चश्मा, धोती और छोटी-सी चद्दर में लिपटा हुआ उनका तन मन जितना कर्मशील है, सोचा नहीं जा सकता । सुराणाजी अकेले ही नहीं उन्होंने अपनी धर्मपत्नी को भी समाजसेविका के रूप में प्रस्तुत कर महान् कार्य किया है, वे भी कुछ संस्थाओं का सुन्दर संचालन करती हैं । अक्सर समाजसेवियों की पत्नियाँ अपने पतियों से खीझी रहती हैं, मगर सुराणाजी इस मामले में जीत में हैं । २००० 000000000 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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