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________________ श्रद्धा-सुमन ७१ " - . -. -. -. -. -. नर श्रेष्ठ योगी डा० दयालसिंह गहलौत, ब्यावर यह योगी आगे बढ़ना ही जानता है, पीछे हटना अनोखी परिणति हम हमारे चरित्र नायक में पाते नही । जो निश्चय कर लेता है उसे पूरा करके ही छोड़ता हैं। इतना बड़ा कार्य वे किसके लिए कर रहे हैं ? उनकी है, पहले नहीं । दूसरों को दीखने वाला बाधा-बहुल मार्ग इसमें कोई रुचि नहीं है कि उनके इस कार्य से उनके भी इसके लिए, पुष्प पराग वेष्टित ऐसा सरल मार्ग बन अपने परिवार को क्या मिलेगा। वह तो यथाशकति पानी जाता है जो अन्यों के लिए ईर्ष्या का विषय बन जाता भी संस्था का नहीं पीना चाहते । बालकों से उनकी है। इसी से यह धारणा बन जाना स्वाभाविक सी है कि एक ही आशा रहती है कि वे चरित्रवान बनें और देश, इस नरपुंगव के हाथ डाल देते ही चाहे जैसे असम्भव जाति व धर्म के उद्धार से भी अधिक अपना उद्धार करें। दीखने वाले कार्य आधे तो सम्पन्न हो ही गए समझो। उनको बड़ी बातें बनाने में विश्वास नहीं है वह तो जो उनकी पूर्णता प्रायः पूर्णरूप से निश्चित सी है । राणावास करना है उसे कर डालना ही कर्तव्य मानते हैं । की विद्या नगरी इसका एक जीता-जागता ज्वलंत जौहर ऐसे नरश्रेष्ठ योगी को प्राप्त करना हमारे सौभाग्य है जो मुख्य रूप से अकेले ही की देन कहा जाय तो की बात है। हमारी कामना है कि यह महामानव अत्युक्ति नहीं है । निःस्वार्थ सेवा, जिसे गीता की भाषा में चिरायु हो जिससे विश्व में चरित्र निर्माण की भावना का निष्काम कर्म की संज्ञा दी जा सकती है, की भी कितनी अधिकाधिक प्रसार हो । 00 तेरापंथ जगत् के प्रथम मालवीय 0 श्री देवेन्द्रकुमार कर्णावट, राजसमन्द न सिर्फ शिक्षा-जगत् वरन भारत की लोक आस्था के तम शिक्षण संस्थान खड़ा कर दिया है, जो उनके जीवन का प्रतीक महामना पं. मदनमोहन मालवीय को कितने सर्ग- बोलता हुआ इतिहास है। आज इस संस्थान में प्राथमिक उपसर्ग में से गुजरना पड़ा, जिससे कि वाराणसी के शिक्षा से लेकर महाविद्यालय तक का ऐसा जाज्वल्यमान सुप्रसिद्ध "हिन्दू विश्वविद्यालय" का निर्माण हुआ। वह प्रारूप निर्मित हो चला है, जिसका उदाहरण तेरापंथ भी ब्रिटिश साम्राज्य की दासता एवं पराधीनता के युग में समाज में तो क्या जैन जगत् में भी कहीं-कहीं देखने को जबकि भारतीय गौरव-गरिमा को लेकर विशालतम मिलता है । इतिहास साक्षी है कि तेरापंथ में शिक्षाशिक्षण संस्थान का संस्थापन एवं संचालन सर्वथा कठिन दान की प्रवृत्ति नहीं के समान थी। उसमें बृहत् रूप से था लेकिन भीषणतम संधर्षों एवं कठिनाइयों से गुजरकर सामाजिक जागृति एवं विसर्जन की भावना जाग्रत कर भी मालवीयजी ने एक महानतम एवं स्वतन्त्र शिक्षण जहाँ संस्था के लिए लाखों की राशि एकत्रित की, वहाँ संस्थान का जो आदर्श उपस्थित किया है, वह भारतीय स्वावलम्बनता से सुदृढ़ कर संस्था को सुयोजित दिशा इतिहास का एक ऐसा अविस्मरणीय उदाहरण है, जिसके दी। तेरापंथ समाज में शैक्षणिक प्रवृत्ति के सुसंचालन और समक्ष न सिर्फ भारतीय जनता नतमस्तक है वरन् उससे छात्रों के नैतिक अनुशासन का यह एक ऐसा भव्य संस्थान भारतीय स्वाधीनता भी प्रकाशमान है। है, जिससे सारा समाज चकाचौंध हो उठा है। निःसंदेह ठीक उसी तरह श्री केसरीमलजी सुराणा तेरापंथ की यह सुराणाजी के त्याग और बलिदान की ही नहीं वरन् शिक्षा-जगत के प्रथम मालवीय हैं, जिन्होंने तेरापंथ की उनके कर्मयोग की जीवित कहानी है। परम्परागत जटिलताओं, रूढ़ियों और संघर्षों को सहकर राणावास की परिधि को देखें तो एक छोटा-सा "सुमति शिक्षा सदन" और उसके इर्द-गिर्द ऐसा विशाल- नगर और आधुनिकतम सुविधाओं से दूर, जहाँ केवल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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