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________________ श्रद्धा-सुमन ६७. है । आदर्श निकेतन के आदर्श युवक बने । वे देश में सर्वत्र अपनी रचनात्मक भावना का प्रतीक मानता है। सब ही बिखरे हैं जो राणावास की संस्था की गौरव-गरिमा को भागों से बालक इस संस्था में आकर शिक्षा ग्रहण करने की बढ़ाते हैं। इस माने में श्री सुराणा जी युगद्रष्टा हैं, एक रुचि रखते हैं क्योंकि छात्रावास में अतिनियमित व्यवस्था युग-सर्जक और युग-गौरव हैं। विद्यमान है। ऐसे उदाहरण कहीं-कहीं पर ही मिलते हैं। ___ शिक्षा का कार्य पाठ्यक्रम को पढ़ाकर परीक्षा में उत्तीर्ण विभिन्न परिवारों से राणावास का एक सीधा सम्बन्ध हो कराना ही नहीं है अपितु छात्रों के जीवन मूल्यों को गया है। शृगारित करना है । अतः आश्रम की भांति भोर से रात्रि श्री केसरोमलजी सुराणा जिनको 'काका साहव' के तक विद्यार्थियों का जीवन क्रम-बद्ध ढले, उनका सदा नाम से पुकारते हैं, वे एक त्याग मूर्ति हैं, उनकी वेश-भूषा प्रयास रहा है और वह पूर्णतया सफल रहा है । धार्मिक भी वैसी ही है। आज भी उनकी सामायिक उपासना कई जीवन की उपासना, आराधना एवं गण और गणि के प्रति घण्टों तक नियमित चलती है। भोजन में वस्तुएँ सीमित आस्था का सदा विशेष ध्यान रखा गया है। तेरापंथ में लेते हैं । आपकी कल्पना है कि जीवनपर्यन्त शिक्षा गुरु-भक्ति सर्वोत्तम है। साधना में कार्यरत रहें। आप दीर्घायु हों और समाज देश के किसी भी भाग में निवास तथा प्रवास करने को अपने ही क्षेत्र में अमूल्य सेवायें प्रदान करें। वाला तेरापंथ-अनुयायी राणावास की शिक्षण संस्था को 00 पुरुषार्थ की प्रतिमति - श्री राणमल जोरावला, कोपल जब मैं राणावास के ज्ञानमन्दिर में प्रवेश करता हूँ तो करने के लिए हजारों माता-पिता अपनी सन्तानों को राणामैं वहाँ एक ऐसी दिव्य-ज्योति का आलोक विकीर्ण पाता वास विद्यामन्दिर में जीवन निर्माणकारी शिक्षा प्राप्त हूँ, जिसने हजारों अबोध बालक-बालिकाओं को प्रकाश करने हेतु भेजने को लालायित रहते हैं। निःस्वार्थभाव से देकर सन्मार्ग की ओर उन्मुख किया है। जब मैं संस्थान के ४० वर्षों से निरन्तर आपने समाज को अपनी अमूल्य चारों ओर फैले भवनों की ओर दृष्टिपात करता हैं तो सेवाएं अर्पित की हैं, जिसे समाज कभी भूल नहीं सकेगा। सुनता हूं उनकी दीवारों और कोनों से निकलती हुई उस आपके व्यक्तित्व में एक अनूठा जादू है जिसके प्रभाव कर्मनिष्ठ कलाकार के अनूठे कौशल की गुणगाथाएँ । से आपके पास जो भी आया, प्रभावित हुआ और आपका ज्योंही आगे बढ़ता हूँ मुझे दर्शन होते हैं अध्यात्म-रस में बन गया। आपने अपने हाथों से अनेक कार्यकर्ताओं का लीन, लोक-कल्याण की मंगल भावना को संजोये एक निर्माण किया है। समाज की उभरती युवापीढ़ी को युगीन विराट् व्यक्तित्व के जो अपना तन, मन और धन संस्थान परिस्थितियों के अनुसार ढालने की आपकी कला अनुपम को समर्पित कर निस्पृह भाव से उसी की सेवा में साधनारत और अनुकरणीय है। आप तेरापंथ धर्मसंघ के लब्धप्रतिष्ठ है । दृढ़ आस्था और संकल्प का धनी, वह महापुरुष है- श्रावक हैं । आपमें संघ व संघपति के प्रति अटूट श्रद्धा सम्माननीय श्री केसरीमलजी सुराणा । आपके महान् त्याग है। गुरुदृष्टि का आराधन करना ही आपके जीवन का व बलिदान का प्रतिफल है-राणावास का स्कूल, महाविद्या- परम लक्ष्य है। इस अनन्यभाव के कारण ही आचार्य श्री लय, बालिका विद्यालय, छात्रावास आदि संस्थाएँ। के दिल में आपका विशिष्ट स्थान है । कहा जाता है कि आपने अपने श्रम-सीकरों से राणावास की धरती को सफलता की प्रथम सोपान है-संघर्षों का शुभागमन । सिंचित कर सरस और उर्वर बनाया, उसमें शिक्षा के बीज दुनियां का कोई ऐसा महापुरुष नहीं है जिसने संघर्षों का बोये, जो बीज कर्त्तव्यनिष्ठा और सतत जागरूकता का स्वागत किये बिना महानता उपलब्ध की हो । श्रीमान् खाद-पानी पाकर अंकुरित, पल्लवित, पुष्पित और फलित सुराणाजी का जीवन भी जीता-जागता संघर्षों का उदाहरण होकर आज लहलहा रहे हैं जिसके फलों का रसास्वादन है। मैंने अपनी आँखों से देखा है और मेरा निजी अनुभव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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