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________________ तपस्वियों के ताज साध्वी श्री पानकुमारी (हूंगरगढ़) काकासा केसरीमलजी सुराणा ने अपने जीवन में तपस्या को भी बहुत महत्त्व दिया है । निरन्तर एक टाइम खाना, नियमित द्रव्यों में रहना, रात्रि भोजन नहीं करना, उपवास आदि भी करते रहते हैं सबसे बड़ी तपस्या तो ब्रह्मचर्य की साधना आपके जीवन में उतरी हुई है। जैसे भगवान ने बताया कि "तवे सु उत्तमं बंभचेरं" Jain Education International स्वामी भीखणजी के शासन को प्रारम्भ हुए शताब्दियों से ऊपर हो गया। इस गण में तपस्वी, सेवाभावी, सरलमना, गुरु आज्ञा के उपासक अनेक साधुसाध्वियों है, जो आज भी पूर्व आचार्यों के साथ ही स्मरणीय हैं। न जाने संघ की शुरुआत किस शुभ मूहूर्त में हुई कि जिसने भी गण का सहारा लिया उसने संघ के नाम को उज्ज्वल किया है। इसमें साधु-साध्वियों ही नहीं धावकों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। श्री केसरीमलजी सुराणा उनमें से एक हैं। उन्होंने अपना सारा वैभव, तन और मन भी एक ऐसी संस्था के लिए लगा दिया है, जहाँ बाल्यकाल से ही अध्यात्म-संस्कार बालक और बालिकाओं में आये। अपने जीवन को भूलकर दूसरों को उपदेश, व्यवस्था देने वाले फिर भी सुलभ हैं किन्तु जिनका मन इतना एकाग्र और संयमित हो कि संसार में रहते हुए भी नितान्त निस्पृह और अनासक्त रहें ऐसे व्यक्तियों के लिए भी लोग सोच जीवन की जागती मशाल साध्वी श्री कमलक्षी आशीर्वचन तपस्या में उत्तम तपस्या ब्रह्मचर्य है। सुराणाजी उसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं, वे तपस्वियों के ताज हैं । दान आपके जीवन की चमकती हुई मशाल है। स्वयं ज्ञानाराधना करते हुए दूसरों के जीवन में ज्ञान और विद्या का विकास देखने के लिए आपने बहुत बड़ी प्रयोगशालाएँ बना रखी हैं। आपकी जीवन जड़ी है ६३ लेते हैं कि क्या उन्हें आत्मा के अतिरिक्त अन्य किसी चीज का भान रहता है पर केसरीमलजी सुराणा को मैंने ऐसा ही देखा । उनकी 'योग' साधना बहुत ही सफल है अपने अध्यात्म-प्रयोगों में तो है ही अत्यन्त व्यस्त रहते हुए भी सारे दिनरात वे स्व-पर-कल्याण में लगे रहते हैं । एक क्षण भी विश्राम का तो काम ही क्या ? दो बोडिंगों को दो टाइम सँभालने की अतिसूक्ष्म उनको पकड़ वस्तुतः 'योग' का ही फलित है । For Private & Personal Use Only बालकों के लिए बनाये गये भोजन का सलक्ष्य परीक्षण, बालक-बालिकाओं के स्वास्थ्य एवं दवा के बारे में प्रतिदिन का समय कर्मचारियों गृहपति गृहमाताओं और अध्यापकों की जिम्मेदारियों का सूक्ष्म निरीक्षण तथा उनकी अच्छी सेवालों के लिए पुरस्कार तथा गैरजिम्मेदारी के लिए यथोचित उलाहना आदि उनके जीवन की जागृत मशाल का प्रतीक है। 666 O www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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