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________________ IN þ0+0+0+0+ Jain Education International 0.0 जैन धर्म और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान - आधार प्रदान करती है जिससे शारीरिक रूप से क्षीण व्यक्ति को भी बल मिलता है। कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति का मनोबल अत्यन्त ऊँचा है । इस मनोबल का आधार मनुष्य की अन्तर्निहित आत्मशक्ति ही है । अत: चाहे इसे मनुष्य का नैतिक बल कहा जाय, चाहे इसे आत्मशक्ति या आध्यात्मिक शक्ति कहा जाय – सब एक ही है । आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भले ही भौतिकवाद से प्रेरित हो, वह मनुष्य को विपरीत आचरण या कदाचरण की प्रेरणा कदापि नहीं दे सकता । वह नहीं कहता कि मनुष्य असत्य का आचरण करे, वह नहीं कहता कि स्त्रीप्रसंग आदि विषयों में अधिकतापूर्वक रमण करता हुआ मनुष्य उसके दुष्प्रभाव से अपने स्वास्थ्य का ह्रास करे या परस्त्रीगमन आदि कुआचरण करे, जिन वस्तुओं--गांजा, भांग, अफीम आदि के सेवन से मानव स्वास्थ्य प्रभावित होता है, उनके सेवन का निर्देश आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में नहीं है। मनुष्य में पाशविक वृत्ति का उद्भव करने वाले आहार का निषेध आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी किया है । यही आचरण की शुद्धता है । जैन धर्म में इन बातों के अतिरिक्त कुछ अन्य बातों पर भी विशेष जोर दिया गया है। इस प्रकार मौलिक रूप से भिन्न होते हुए भी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अनेक विषयों में जैन धर्म के निकट है । OoOO १८५ For Private & Personal Use Only B+++ www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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