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________________ १६० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड सिन्धु-सभ्यता से प्रारम्भ होता है। भारतीय जैन वास्तुकला का प्रवाह समय की गति और शक्ति के अनुरूप बहता गया । समय-समय पर कलाविदों ने इसमें नवीन तत्वों को प्रविष्ट कराया । वास्तु-निवेश व मानोन्मान सम्बन्धी अपनी परम्पराओं में जैन कला, जैन धर्म की त्रैलोक्य सम्बन्धी मान्यताओं से प्रभावित हुई पाई जाती है । जैन कला के विद्यमान दृष्टान्त उत्कृष्ट कला के प्रतीक हैं। जैन गुफायें भारत की सबसे प्राचीन व प्रसिद्ध जैन गुफायें बाराबर और नागार्जुन पहाड़ियों पर स्थित हैं । बाराबर पहाड़ी (गया से उत्तर में १३ मील) में ४ एवं नागार्जन पहाड़ी (बाराबर के उत्तर-पूर्व में लगभग १ मील) में तीन गुफायें हैं । बाराबर पहाड़ी की लोमस ऋषि एवं सुदामा तथा नागार्जुन पहाड़ी की गोपी गुफा दर्शनीय हैं। इन गुफाओं का निर्माण मौर्य सम्राट अशोक एवं उसके पौत्र दशरथ ने आजीविक सम्प्रदाय के साधुओं के लिए कराया था। आजीविक यद्यपि मौर्यकाल में एक पथक् सम्प्रदाय था तथापि ऐतिहासिक प्रमाणों से उसकी उत्पत्ति व विलय जैन सम्प्रदाय में ही हुआ सिद्ध होता है। अत: इन गुफाओं का जैन ऐतिहासिक परम्परा में ही उल्लेख किया जाता है। उड़ीसा में भुवनेश्वर से ५ मील उत्तर पश्चिम में खण्डगिरि-उदयगिरि की पहाड़ियाँ हैं। वहाँ अधिकांश शैलगृहों का निर्माण साधुओं के निवास के लिए किया गया है । इन गुफाओं का निर्माण ई० पू० दूसरी सदी में हुआ था। उदयगिरि की हाथीगुफा नामक गुहा में ई० पू० दूसरी शती का एक लेख है। उसमें कलिंग के जैन शासक खारवेल का जीवन चरित व उपलब्धियाँ विस्तार से वणित हैं। लेख का आरम्भ अर्हतों के एवं सर्वसिद्धों के प्रति नमस्कार के साथ प्रारम्भ हुआ है । उदयगिरि की पहाड़ी में १६ एवं खण्डगिरि में १६ गुफायें हैं। उक्त गुफाओं में से अनेक का निर्माण जैन साधुओं के निवास के लिए, खारवेल के काल में हुआ था। इसकी रानी (अग्रमहिषी) ने मंचपुरी गुहा की उपरली मंजिल का निर्माण कराया था। राजगिरि की पहाड़ी में स्थित सोनमंडार नामक गुहा है, जिसका काल सम्भवतः ई० पू० प्रथम शती के लगभग है। प्रयाग तथा प्राचीन कौशाम्बी (कोसम) के निकट स्थित पभोसा में दो जैन गुफायें हैं । लेख से ज्ञात होता है कि इनका निर्माण अहिन्त्र के आषाटसेन ने काश्यपीय अर्हन्तों के लिए (ई० पू० दूसरी सदी) में कराया था। जूनागढ़ (काठियावाड़) के बाबा प्यारामठ के निकट कुछ गुफायें हैं । कतिपय गुफाओं में जैन चिह्न पाये जाये हैं । इनका निर्माण काल क्षत्रप राजाओं (ई. द्वितीय शती) के समय में हुआ था। इन्हीं के काल की कुछ गुफायें ढंक नामक स्थान पर भी विद्यमान हैं। मध्यप्रदेश में विदिशा के निकट, बेसनगर से दो मील दक्षिण-पश्चिम तथा सांची से ५ मील पर स्थित लगभग डेढ़ मील लम्बी पर्वत श्रृंखला है। इसी पर्वत श्रृंखला पर उदयगिरि की २० गुहायें एवं मन्दिर हैं । इनमें से दो गफायें जैन धर्म से सम्बन्धित हैं। इनमें से एक गुफा में गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय एवं दूसरी में कुमारगप्त प्रथम का लेख है। ऐतिहासिक परम्परानुसार दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रवेश ई० पू० चौथी शती में हुआ था। कर्नाटक प्रदेश के हसन जिला में स्थित चन्द्रगिरि पहाड़ी पर एक छोटी भद्रबाहु नामक गुफा है। दक्षिण भारत में यही सबसे प्राचीन गुफा है । मद्रास में तंजोर के निकट सित्तनवासल नामक स्थान में एक जैन गुफा है। बम्बई के ऐहोल नामक स्थान के पास बादामी की जैन गुफा उल्लेखनीय है। इसका निर्माण काल लगभग ६५० ई० है । बीजापुर जिले में स्थित ऐहोल के समीप पूर्व एवं उत्तर की ओर गुहायें हैं, जिनमें भी जैन मूर्तियां स्थापित हैं। गुफाओं से पूर्व में मेधरी १ जैन वास्तुकला-संक्षिप्त विवेचन, शिवकुमार नामदेव, श्रमण, दिसम्बर, ७६. २ भारत में प्राचीन जैन गुफायें-शिवकुमार नामदेव, श्रमण, अक्टूबर, ७६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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