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________________ Joyo ५४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड धर्म और कर्म के संगम D मुनि श्री सुमेरमल (लाडनूं) प्रायः देखा जाता है जिनमें सामाजिक कार्य की रुचि होती है, वे अधिकतर उसमें ही रचे-पचे रहते हैं, वे लोग धार्मिक उपासना का समय कम ही निकाल पाते हैं, रुचि भी प्रायः कम देखने में आती है, इस सन्दर्भ में कभी-कभी ऐसा भी सुनने को मिल जाता है-"हम कार्यकर्ता हैं, श्रावक नहीं हैं ।" किन्तु श्रावक केसरीमलजी Jain Education International अमेरिका के लिंकन ने समाज की नींव को सुदृढ़ बनाने हेतु अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था। वैसे ही श्रीवीर भिक्षु की जन्मस्थली कांठा प्रदेश में विद्या का विस्तार करने हेतु श्री सुराणाजी ने अपना तन-मन-धन समाज हितकारी प्रवृत्तियों में समर्पित कर श्रावक समाज में त्याग का एक नवीन आदर्श उपस्थित किया है। छात्रछात्राओं को शिक्षा के साथ-साथ सद्संस्कारी बनाने में जो अपना योगदान दे रहे हैं, यह भी समाज हितकारी प्रवृत्तियों के अन्तर्गत ही आ जाता है। किसी कवि ने कहा है आदर्श त्याग का नवीन आव [1] साध्वी श्री रमाकुमारी (नोहर ) सुराणा में यह अद्भुत संयोग देखने में आया, वे सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता हैं, उनके द्वारा समाज को जो रचनात्मक देन मिली है, उसे समाज कभी भूल नहीं सकता। साथ ही साथ वे वरिष्ठतम श्रावक भी हैं। श्रावक की चर्या बहुत ही सजगता से निभा रहे हैं । 1 इस अवनीतल पर प्रतिदिन प्रतिक्षण अनेक प्राणी जन्म लेते हैं और सदा के लिए मृत्यु की गोद में सो जाते हैं । वे कौन थे ? कब जन्मे ? कहाँ और कब मरे ? जन्म और मरण के मध्यकाल में कहाँ रहे? कैसे रहे? इतिहास के पृष्ठों पर इसका कोई लेखा-जोखा नहीं रहता। उनकी कोई स्मृतियाँ शेष नहीं रहतीं और रह भी नहीं सकतीं । उन्हें चिन्ता है, फिकर है, तो केवल अपने सुख की, अपने हित की और अपने स्वार्थ की वे केवल अपनी ही कारा में बन्द हैं। दूसरों के दुःख-सुख को उन्हें कोई चिन्ता नहीं । इसलिए किसी के मन पर उनकी स्मृतियों के चिह्न शेष नहीं रहते । "अयोग्यः पुरुषो नास्ति, योजकस्तत्र दुर्लभः" कोई भी व्यक्ति अयोग्य नहीं होता, उसे सही दिशादर्शन देने वाला अगर कोई मिल जाता है, तो उसके भविष्य का सही निर्माण हो जाता है । ये छात्र ही समाज के भावी कर्णधार बनेंगे। राणावास की भूमि को तो उन्होंने मानी वाराणसी का ही रूप दे दिया है। श्रम से व्यक्ति क्या नहीं प्राप्त कर सकता, सब कुछ पा सकता है। इनका जीवन कर्मठ एवं धमशील है। जितनी शिक्षा जीवन से मिल सकती है, उतनी पुस्तकों से नहीं । धर्म भी इनके कण-कण में समाहित हो रहा है। 00 प्रकाश के अन्वेषक साध्वी श्री मोहनकुमारी (तारानगर) इसके विपरीत कुछ महान् आत्माएँ ऐसी आती है, जो इस भौतिक जीवन के समाप्त होने के बाद भी नहीं मरतीं । काल का गहरा परदा भी उनकी जीवन-गाथाओं को धुंधला नहीं बना सकता। वे आते हैं, इसलिए कि दुनिया को प्रकाश दे सकें। वे प्रकाश के अन्वेषक हैं । वे अन्धकार से लड़ते हैं और अन्धकार से लड़ना ही उनका कार्य है । तिल-तिल जलना और समाज की अनवरत सेवा करना ही उनके जीवन का मुख्य लक्ष्य होता है। श्री केसरीमलजी सुराणा भी इसी प्रकार के व्यक्ति हैं। वे तेरापंथी जैन समाज की एक विशिष्ट विभूति हैं। उनके व्यक्तित्व का आकर्षण अदभुत है। 00 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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