SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -0 Jain Education International १२० 10 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड (३) खलां सीस खीजीया, धार बाढ़ण खंडारी । छात राड़ि छाजीया, भला बाजीया भण्डारी ॥ भूरती दलो मुलयान री चौल खाग रत चंपीयी करतौ विरूप किलमाणं घणां राड बीच धनरूपीयौ || धरम स्यांम धारीया सरम वींटीयां सिघाले । विहां भाया मेलीया बेड वैरीयां विचान ॥ झिले वीर भैरवां वीर किलकिले भवानी । गिरै तुरां ऊपरां खवा बाढीया खवानी ॥ मधुकरी अनै गोपालमल सदा जिकै गढ़ साररा । कलीयांणदास वाला किले, मुंहता जूटा मारका ॥ +0+0+0+0+0+8 भण्डारी मनरूप भण्डारी मनरूप अपने समय का बड़ा प्रभावशाली दीवान था । यह पोमसी भण्डारी का ज्येष्ठ पुत्र था। वि० सं० १७८२ में इसे मेह का हाकिम नियुक्त किया गया जब १७८२ में मराठों ने मेड़ते पर हमला किया तो भण्डारी मनरूप ने इस अवसर पर बड़ी बहादुरी बताई । वि० सं० १५०४ में इसे जोधपुर के दीवान पद पर आसीन किया गया। महाराजा रामसिंह और बख्तसिंह के वैमनस्य के समय यह रामसिंह के साथ अन्तिम समय तक रहा। वि० सं० १८०७ में इसका देहान्त हुआ। प्रसिद्ध चारण कवि करणीदान कविया ने मनरूप भण्डारी के व्यक्तित्व का चित्रण एक गीत में इस प्रकार किया है गोत मनरूप भण्डारो रो लावा ईरान रान तरां आमुराद जीनां औगांन भयांन चखां आसंगै न आन । लागा सीस आसमान मसतांन खूना लायो, मल्हार अमान हाथी डाकदार मान ॥ मलीदां निवालां चहु चकां जी मालां, भालां दोनूसला लि कपाटां भंजार | जिको लागी दोनों कालीपटा मेघ आणी जाणे, आंण फील दिखखणी चाबकी अस्सवार || चंबेली कछूबातां मारो सनीदे काला चीता, आखतां बराला झालां लोमणां अबीह । मैमता आवियो डांटा बाद झाटमार, साटमार लावियो पोमसी तणौ सीह ॥ रासाहरै आणियो सतारा तणां गाढ़ेराव, नीमरैन छूटा पट्टा बीमल नाग । जटी नैनां बसी अमी हुकम्मा ऊचारं जठी, विधूस नांखसी वैरीहरां तणां बाग ॥ यह महाराजा विजयसिंह का समकालीन या यह बड़ा रणकुशल व बहादुर था। इसने सिंघवी भीमराज बक्षी के पद पर नियुक्त किया कार्यों से प्रसन्न होकर महाराजो ने इसे चार गाँव इनायत किये । वि० सं० १८३७ में जब मरहठों की फौजें जयपुर पर चढ़ आई थीं, उस समय इसने जोधपुर की ओर से जयपुर की रक्षा में बहुत योगदान दिया। इसके पराक्रम सम्बन्धी निम्न गीत उल्लेखनीय है :-- For Private & Personal Use Only - करणीदान कविया इसे वि० सं० १८२४ में महाराजा ने फौजअनेक लड़ाइयां लड़ीं। इसके वीरतापूर्ण www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy