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________________ बलिदान और शौर्य की विभूति भामाशाह ११३ पैदा करके अपने दरबार में उच्च पद, मनसब आदि का प्रलोभन देता था। इतना ही नहीं, वह राजपूत राज्यों के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारियों को भी मुगल दरबार में प्रतिष्ठा और पद देने का प्रलोभन देकर अपनी ओर मिलाने का प्रयत्न करता था । जब अकबर की महाराणा प्रताप को परास्त करने की सभी कोशिशें नाकामयाब हुई तो उसने प्रताप के प्रधान भामाशाह को अपनी ओर मिलाने का प्रयास किया। इस उद्देश्य से अकबर ने अपने चतुर कूटनीतिज्ञ सेनापति अब्दुर रहीम खानखाना को भामाशाह से मुलाकात करने का आदेश दिया । खानखाना की भामाशाह से यह भेंट मालवे में हुई जहाँ भामाशाह उस समय मौजूद था। खानखाना द्वारा दिये गये प्रलोभनों का वीरवर बलिदानी भामाशाह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यह प्रलोभन उस समय दिया गया जबकि महाराणा प्रताप और उनके सहयोगी भीषण आर्थिक संकट और सैनिक दबाव के बीच जीवन और मृत्यु का संघर्ष कर रहे थे। ऐश्वर्यपूर्ण जीवन के प्रलोभन को ठुकराकर भामाशाह ने स्वतन्त्रता और स्वाभिमान का जीवन जीने के लिए सकटों कठिनाइयों और अभावों से जूझते रहने के स्थिति को अपनाना श्रेयस्कर समझा । यह बात ही उनको इतिहास में आदर्श स्थान प्रदान कर देती है। महाराणा प्रताप के समकक्ष भामाशाह ने महाराणा प्रताप तथा उनके बाद महाराणा अमरसिंह के राज्यकाल में जिस वीरता, कार्यकुशलता और राज्यभक्ति के साथ प्रधान का कार्य किया उससे भामाशाह और उसके परिवार को जो प्रतिष्ठा और विश्वास मिला, उसके कारण भामाशाह के बाद उसके परिवार में तीन पीढ़ियों तक मेवाड़ राज्य का प्रधान पद बना रहा । भामाशाह की मृत्यु के बाद महाराणा अमरसिंह ने उसके पुत्र जीवशाह को मेवाड़ का प्रधान बनाया जो बादशाह जहाँगीर के साथ की गई सन्धि के समय कुँवर कर्णसिंह के साथ बादशाह के पास गया था । जीवशाह की बाद उसके पुत्र अक्षयराज को मेवाड़ का प्रधान बनाया गया। भामाशाह और उसके परिजनों द्वारा अर्पित त्यागपूर्ण सेवाओं के कारण समाज से उनको जो सम्मान मिला, वह बाद के काल में भी कायम रहा । ३ मृत्यु 3 कर्मवीर भामाशाह के कृतित्व एवं देश की प्रशंसा करते हुए सुप्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने लिया है कि भामाशाह का नाम मेवाड़ के उद्धारक के रूप में प्रसिद्ध है।" सुप्रसिद्ध इतिहास ग्रन्थ वीर विनोद के लेखक श्यामलदास ने लिखा है— भामाशाह बड़ी जुअरत का आदमी था। महाराणा प्रतापसिंह के शुरू के समय से महाराणा अमरसिंह के राज्य के २३-३ वर्ष तक प्रधान रहा। इसने बड़ी-बड़ी लड़ाइयों में हजारों आदमियों का खर्चा चलाया। इसने मरने से एक दिन पहले अपनी स्त्री को एक बही अपने हाथ की लिखी हुई दी और कहा कि इसमें मेवाड़ के खजाने का कुल हाल लिखा हुआ है। जिस वक्त तकलीफ हो, यह महाराणा की नत्र करना । इस खैरख्वाह प्रधान की इस बही के लिखे हुए खजाने से महाराणा अमरसिंह का कई वर्षों तक खर्च चलता रहा। जिस तरह वस्तुपाल तेजपाल, जो अन्हिलवाड़े के सोलंकी राजाओं के प्रधान थे और जिन्होंने आबू पर जैन मन्दिर बनवाये, वैसा ही पराक्रमी और नामी भामाशाह को भी जानना चाहिये । प्रसिद्ध इतिहासकार डा० कालिकारंजन कानूनगो ने भामाशाह के सम्बन्ध में लिखा है १. कविराजा श्यामलदास वीर विनोद, भाग २, पृ० १५८ अकबर की भेद नीति का उदाहरण बीकानेर राज्य का प्रधान ओसवाल जाति का बच्छावत कर्मचन्द है, जिसको मुगल दरबार में बैठक देकर उसने अपना प्रयोजन पूरा किया था । २. श्यामलदास : वीर विनोद, भाग २, पृ० २५१. के ३. महाराणा स्वरूपसिंह के राज्यकाल (१८४२ १८६१ ) में मेवाड़ में एक विवाद उठ खड़ा हुआ कि ओसवालों की न्यात में प्रथम तिलक किसको दिया जावे ? इस पर महाराणा ने वि०सं० १९१२ ज्येष्ठ शुक्ला १५ को एक पट्टा लिखा कर भामाशाह के परिवार वालों को यह प्रतिष्ठा देने का आदेश दिया । Y. James Tod: Annals and Antiquities of Rajasthan, Vol. I. p. 275 ५. कविराजा श्यामलदास : वीर विनोद, भाग २, पृष्ठ २५१-२५२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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