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________________ Jain Education International ८५ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड (२) तपागच्छीय जावड़— दूसरा जावड़ जसधीर की सबसे छोटी बुआ' सुहगू का पुत्र था। जावड़ के पिता का नाम राजमल्ल था । कल्पसूत्रप्रशस्ति में उसके नाम का यद्यपि निर्देश मात्र है किन्तु अन्य स्रोतों से, जिन पर हम आगे विचार करेंगे, विदित होता है कि वह गौरवप्राप्त व्यक्ति था । H जाब तथा उसके परिवार का मुख्य इतिहासकार जैन कवि सर्वविजयगण है, जिसकी मुनि-परम्परा तपागच्छ के पचासमें गच्छनायक आचार्य सोमसुन्दरसूरि तक पहुँचती है वह दो संस्कृत महाकाव्यों-आनन्दसुन्दर तथा सुमतिसम्भव' का प्रणेता है । ये दोनों काव्य हस्तप्रतियों के रूप में सुरक्षित हैं । अभी तक इनका मुद्रण नहीं हुआ है । आनन्दसुन्दर (अपरनाम दशधारित) में जैसा दोनों शीर्षकों से संकेतित है, महावीर के दस प्रमुख वक की कथाएँ वर्णित है, जिनमें आनन्द सर्वप्रथम है। यह उवासगदसाओ (सप्तम अंग ) पर आधारित है तथा इसमें आठ अधिकार हैं। इसकी रचना संवत् १५५१ में लिखित प्राचीनतम प्रतिलिपि से कुछ ही पूर्व हुई होगी क्योंकि इसमें जावड़ द्वारा संवत् १५४७ में कराई गयी प्रतिमा प्रतिष्ठा की घटना का उल्लेख है तथा तपागच्छ के ५४वें गच्छाधिपति, जाब के गुरु आचार्य सुमतिसाधुरि जिसका स्वर्गारोहण संवत् १५५१ में हुआ था के जीवित होने का संकेत है। अनेक छिटपुट उल्लेखों के अतिरिक्त इसमें छठे पूर्वज के बाद से, जावद के परिवार का विस्तृत ऐतिहासिक वृत्त सन्निविष्ट है । सर्वविजय ने काव्य का प्रणयन जावड़ के सुझाव तथा आग्रह से किया था, अतः उसके परिवार का विस्तृत विवरण यहाँ अप्रत्याशित नहीं है। 7 1 सर्व विजय के दूसरे काव्य का शीर्षक आपाततः सुपरिचित प्रतीत होता है, क्योंकि इसमें जैन तीर्थकरों सुमति तथा सम्भव, के नाम ध्वनित हैं; किन्तु वास्तव में उनका काव्य से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसमें पूर्वोक्त आचार्य सुमतिसाधुसूरि का जीवनचरित वर्णित है। काव्य में, संवत् १५४७ में, जावड़ द्वारा कराई गयी प्रतिमा प्रतिष्ठा का वर्णन होने के कारण यह उस वर्ष (संवत् १५४७) तथा इसकी एकमात्र शात हस्तप्रति के प्रतिनिधिकाल संवत् १५५४ के मध्य लिखा गया होगा । अन्तिम भाग के नष्ट हो जाने से यह कहना सम्भव नहीं कि काव्य में नायक के निधन का वर्णन किया गया था या नहीं । किन्तु इसके शीर्षक (सम्भव ) को देखते हुए अधिक सम्भव यही है कि काव्य में यह वर्णन नहीं था । अतः काव्य-रचना की अन्तिम सीमा संवत् १५५१ निश्चित होती है । काव्य के आठ में से पूरे दो सर्गों में ( ७-८ ) जावड़ (नायक के प्रमुख भक्त के रूप में) का वृत्त वर्णित है। किन्तु जानड़ के पूर्वजों में से केवल उसके पितामह गोह तथा पिता राजमल्ल की ही चर्चा हुई है। यह सम्भवतः इस बात का द्योतक है कि इसकी रचना आनन्दसुन्दर के बाद हुई थी, जिसमें पूर्ण वंशावली दी गयी है और कवि ने उसे यहाँ दोहराना आवश्यक नहीं समझा । 1 जावड़ के विषय में कुछ जानकारी, मुख्यतः उसकी सामाजिक तथा धार्मिक सेवाओं के सम्बन्ध में शिवसुन्दर की उपर्युक्त समसामयिक कल्पसूत्रप्रशस्ति से प्राप्त होती है। जावड़ का एक उल्लेख वाचनाचार्य सोमध्वज के शिष्य खेमराज गणि अपरनाम क्षेमराज गणि की गुजराती 'माण्डवगढ़प्रवाडी' में मिलता है। उसके एक अन्य ग्रन्थ (सं० १५४६ में लिखित) के प्रामाण्य के अनुसार वह जावड़ का समकालीन था। एक अन्य स्रोत संवत् १५४१ में रचित सोमचरित For Private & Personal Use Only १. बहिन नहीं, जैसा अगरचन्द नाहटा ने 'विक्रम' १. १ में प्रकाशित अपने लेख में माना है । कल्पप्रशस्ति में स्पष्ट कहा गया है कि सुहगू जसधीर के पितामह जगसिंह की पुत्री थी । २. इसकी एक हस्तप्रति भक्तिविजय भण्डार, आत्मानन्द सभा, भावनगर में सुरक्षित है ( नं० ७०३ ) : ३. तुलना कीजिए भँवरलाल नाहटा "श्रीसुमतिसम्भव नामक ऐतिहासिक काव्य की उपलब्धि," जैन सत्यप्रकाश, २०, २३, पृ० ४४. मेरे उल्लेख तथा उद्धरण एशियाटिक सोसायटी बंगाल, कलकत्ता में सुरक्षित हस्तप्रति (७३०२) की फोटो प्रति के अनुसार हैं । यह प्रति मुझे, परम उदार तथा सदैव सहायताकर्त्ता श्री अगरचन्द नाहटा के सौजन्य से प्राप्त हुई थी। www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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