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________________ माण्ड के जावड़ शाह मूल लेखक : डॉ० सी० क्राउझे अनुवादक: डॉ सत्यव्रत संस्कृत विभाग, राजकीय महाविद्यालय, श्रीगंगानगर (राजस्थान) १४६८-६९ ई० में, जब मालव प्रदेश पर गयासुद्दीन खल्जी का शासन था, उसकी राजधानी मण्डुपदुर्ग (आधुनिक माण्डु) में एक भव्य उत्सव का आयोजन किया गया था। यह उद्यापन पर्व था। जैन समाज, कुछ व्रतों की पूर्णाहूति-पारणा पर अब भी ऐसा उत्सव मनाता है। इस अवसर पर धार्मिक ज्ञान, विश्वास तथा आचरण के उन्नयन के लिये समुचित उपहार दिए जाते हैं । इस उद्यापन का विशेष महत्त्व था। उस समय पवित्र जैन महिला 'कुमरी' ने खरतरगच्छीय जैन यति वाचनाचार्य 'सोमध्वज' को कल्पसूत्र की एक स्वर्णाक्षरी सचित्र प्रति भेंट की थी, जो उसने प्रचुर धन व्यय करके तैयार करवायी थी। संवत् १५५५ में लिखित यह उत्कृष्ट हस्तप्रति आज भी उपलब्ध है। कल्पसूत्र के अर्धमागधी पाठ के अतिरिक्त इसमें अत्यन्त अलंकृत काव्य-शैली में निबद्ध ६१ संस्कृत-पद्यों की एक प्रशस्ति है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत उपयोगी है। इस प्रशस्ति की रचना सोमध्वज के प्रशिष्य के शिष्य मुनि शिवसुन्दर ने उक्त संवत् में की थी और उसी वर्ष इसकी प्रतिलिपि की गयी थी।' कल्प-प्रशस्ति में लेखक ने केवल उपहार का ही विस्तृत वर्णन नहीं किया है, अपितु मण्डुप के जैन-व्यापारी जसधीर के वंश के सम्पूर्ण इतिहास का भी निरूपण किया है। कल्पसूत्र की भेंटकी 'कुमरी', जसधीर की चार पत्नियों में से दूसरी थी। प्रशस्तिकार ने अपना विवरण परिवार के सातवें पूर्वज से प्रारम्भ किया है, जो दिल्ली का प्रतिष्ठित व्यापारी था। यह परिवार तब तक दिल्ली में रहता रहा, जब तक इसका चतुर्थ पूर्वज माण्डू में स्थानान्तरित न हुआ। माण्डू में इस परिवार की एक लघु शाखा बस गयी थी। जसधीर इसी शाखा से सम्बन्धित था। श्रीमाली कुल का बहकट गोत्रीय यह परिवार खरतरगच्छ का अनुयायी था। वंशपरम्परा के अनुरूप जसधीर तत्कालीन गच्छधर आचार्य जिनसमुद्रसूरि का श्रद्धालु शिष्य था । उसने 'संघपति' की स्पृहणीय उपाधि प्राप्त की थी तथा अपनी दानशीलता एवं धार्मिक विचारधारा के कारण सुविख्यात था। इसीलिये प्रशस्ति में उसकी मुक्त प्रशंसा की गयी है। यही प्रशंसा उसके उन पूर्वजों को प्राप्त हुई है, जिन्होंने अपने सत्कृत्यों के कारण विशिष्ट पद प्राप्त किये थे। अन्य पूर्वजों का प्रशस्ति में केवल नामोल्लेख है। इन गौरवशाली पुरुषों के समुदाय में, सीधे वंशवृक्ष से कुछ हटकर, दो ऐसे व्यक्ति थे, जिनका नाम संयोगवश जावड़ था । वे दोनों माण्डू के वासी तथा समसामयिक थे। १. खरतरगच्छीय जावड़-जावड़ नामधारी इन दो व्यक्तियों में से कम महत्त्वपूर्ण जावड़, जसधीर का जामाता था। उसे कुमरी की सौत झषक की बड़ी पुत्री, सरस्वती, विवाहित थी । उसके विषय में कल्पसूत्रप्रशस्ति १. इस प्रशस्ति की प्रतिलिपि मुझे श्री अगरचन्द नाहटा के सौजन्य से प्राप्त हुई थी। २. कल्पप्रशस्ति, २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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