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________________ नागौर के मैन मन्दिर और दादावाड़ी ४६ . सतरहवीं शताब्दी में कवि विशाल सुन्दर के शिष्य ने जिन सात मन्दिरों का वर्णन किया है, वे इस प्रकार हैं-१. शान्तिनाथ-पित्तलमय प्रतिमा, समवशरण, २. आदिनाथ, ३. पित्तलमय महावीर स्वामी ४-५. ऋषभदेव, ६. पार्श्वनाथ और ७. महावीर जिनालय (प्राचीन नारायण वसही)। सं० १६६३ में रचित अंजना चौपाई में कवि विमलचारित्र ने नागौर के सात मन्दिर आदिनाथ, शांतिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी के लिखे हैं । इसके पन्द्रह वर्ष पश्चात् कवि पुण्यरुचिकृत स्तवन में, जो सं० १६७८ में रचित है, नागौर में नौ मन्दियों का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार हैं--१. ऋषभदेव, २, मुनिसुव्रत, ३. शान्तिनाथ, ४. आदिनाथ (हीरावाड़ी), ५. वीरजिन, ६. आदिनाथ, ७. आदिनाथ, ८. पार्श्वनाथ. ६. वीरजिनेश्वर। इन नो मन्दिरों में मुनिसुव्रत और आदिनाथ दो नव निर्मित हुए हों, ऐसा संभव है। महावीर स्वामी के चार मन्दिरों में सतरहवीं शताब्दी में दो रह जाते हैं और आदिनाथ भगवान के दो बढ़ जाते हैं। चौदहवीं शती के पश्चात् किसी समय शान्तिनाथ जिनालय का निर्माण हुआ प्रतीत होता है क्योंकि हम नाहर-विहार के शान्तिनाथ को अवान्तर में ले चुके हैं। जो भी हो, नागौर के मन्दिरों का ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन होना आवश्यक है। सतरहवीं शताब्दी के मन्दिरों का वर्णन वर्तमान स्थिति से मेल खाना कठिन है। श्री आनंदजी कल्याणजी की पेढ़ी से प्रकाशित 'जैन तीर्थ सर्वसंग्रह' भाग १ में नागौर के मन्दिरों का वर्णन इस प्रकार किया गया है आज भी नागौर में सात मन्दिर ये हैं- १. ग्रामबाहर गुंबज वाले मन्दिर में मूलनायक सुमतिनाथ स्वामी की प्रतिमा है । इसमें सुन्दर चित्रकारी की हुई है। सं० १९३२ में यतिवर्य रूपचंदजी ने इस मन्दिर का निमार्ण कराया था, इसमें प्राचीन पुस्तक भण्डार है। २. घोड़ावतों की पोल में गुंबजबद्ध श्री शांतिनाथ भगवान का मन्दिर है जिसे सं० १५१५ में घोड़ावत आसकरण ने बनवाया है। इसमें सं० १२१६ की प्राचीन धातु प्रतिमा है और ४४ इंच का धातुमय समवशरण भी दर्शनीय है। ३. दफ्तरियों की गली में आदिनाथ भगवान का शिखरबद्ध जिनालय है जिसे सं० १६७४ में सुराणा रायसिंह ने बनवाया था, मूलनायक प्रतिमा पर सं० १६७४ का लेख है । ४. इसी गली में सुराणा रायसिंह द्वारा निर्मापित आदिनाथ भगवान का गुंबज वाला जिनालय है। ५. हीरावाड़ी में आदिनाथ भगवान का गुंबजवाला मन्दिर सं० १५६६ के श्रीसंघ ने निर्माण कराया था, इसी संवत् का लेख प्रतिमा पर है। ६. बड़ा मन्दिर नाम के स्थान में आदिनाथ भगवान का सोलहवीं शताब्दी का जिनालय है, इसमें काँच का सुन्दर काम किया हुआ है और धातु व पाषाणमय सुन्दर प्रतिमाएँ हैं। ७. स्टेशन के पास श्री चन्द्रप्रभ भगवान का शिखरबद्ध जिनालय जैनधर्मशाला में है। सं० १९६३ में श्रीकानमलजी समदड़िया ने बनवाया है । मूलनायक प्रतिमा पर इस संवत् का लेख है। उपर्युक्त उल्लेख में हीरावाड़ी का मन्दिर सं० १५६६ का लिखा है पर मैंने इस मन्दिर के गर्भगृह पर बारहवीं शताब्दी का एक चूने में दबा हुआ लेख लगभग ३५ वर्ष पढ़ा था। संभवत: जीर्णोद्धार के समय मूलनायक १५९६ के विराजमान किये गये थे। सं० १५६३ में नागौर में उपकेशगच्छीय श्री सिद्धसूरिजी ने प्रतिष्ठा कराई थी। मिती आषाढ़ सुदि ४ को प्रतिष्ठित प्रतिमा देशणोक के मन्दिर में है। इसी प्रकार सं० १५५६ मिगसर बदि ५ प्रतिष्ठित (श्री देवगुप्तसूरि द्वारा) हनुमान के मन्दिर में है एवं इसी संवत् की हेमविमलसूरि प्रतिष्ठित सुविधिनाथ प्रतिमा का लेख नाहर ले० ५८० में प्रकाशित है। सं० १५३४ में शीतलनाथ प्रतिमा हीरावाड़ी नागौर के आदिनाथ मन्दिर में है तथा सं० १४८३ में देवलवाड़ा-मेवाड़ के आदिनाथ जिनालय में नागौर वालों ने देवकुलिका बनवाई थी (नाहर लेखांक १९८६)। सं० १८४१ अक्षयतृतीया के दिन श्री सुन्दर शि० स्वरूपचन्द्र द्वारा प्रतिष्ठित सिद्धचक्र यंत्र केशरियाजी के मन्दिर, जोधपुर में है। नाहरजी ने अपने जैनलेख संग्रह दूसरे भाग के लेखांक १२३३ से १३२६ तक नागौर के चार मन्दिरों के लेख प्रकाशित किये हैं। प्रभावकचरित्रगत वीराचार्य प्रबन्ध से नागौर में धर्मप्रभावना करने का तथा श्री वादिदेवसूरि प्रबन्ध से बहाँ दिगम्बर गुणचन्द्र को वाद में पराजित करने तथा फिर एक बार नागौर पधारने पर आल्हादन नरेश्वर के वन्दनाथ आने और भागवताचार्य देवबोध के साथ आकर अभिनन्दित करने का उल्लेख है। .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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