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________________ मेवाड़ के शासक एवं जैनधर्म ३५ . दूसरे को छोड़कर तीसरे पर जाते रहे एवं 'मारो और भागो' की नीति अपनाई । इस संघर्षमय जीवन में भी इनका धर्मप्रेम बहुत प्रबल था। जगतगुरु आचार्य हीरविजयसूरि एवं उनके शिष्यों के लिये अत्यधिक मान था। जब कभी तपागच्छ के पट्टधर साधुओं का आना होता था तो सामने लेने जाते थे। यह मर्यादा बराबर कायम रही और जबजब तपागच्छ के पट्टधर (शीतलनाथजी के उपासरे के श्रीपूज्यजी) का आवागमन उदयपुर में होता तब-तब तेलियों की सराय (वर्तमान भूपाल नोबल्स कालेज) तक उदयपुर के महाराणा अगवाई के लिये जाते थे। मन्दिर एवं उपासरे की मर्यादा बराबर कायम रखते । इसकी पुष्टि राणा प्रताप के निम्न पत्र से होती है जो हीरविजयसूरि को सं० १६३५ में मेवाड़ में पधारने हेतु निमन्त्रण स्वरूप लिखा गया ___'स्व स्ति श्री मुसुदु (मेवाड़ का ग्राम) महाशुभस्थाने सरब ओपमा लायक भट्टारक महाराज श्री हीरविजेसूरि जी चरण कमलायणे स्वस्त श्री बजेकटक चावंडेरा (चामुडेरी) सुथाने महाराजाधिराज श्री राणा प्रतापसिंघजी ली. पगे लागणों बंचसी, अठारा समाचार भला है, आपरा सदा भला छाईजे, आप बड़ा है, पूजणीक है, सदा करपा राखे जी सू ससह (श्रेष्ठ) रखावेगा, अप्रं अपारो पत्र अणा दना म्हे आया नहीं सो करपा कर लगावेगा । श्री बड़ा हजर री वगत पदारवो हुवो जी में अठारौँ पाछा पदारता पातसा अकब्रजी ने जेनाबाद म्हें ग्रानरा (ज्ञानरा) प्रतिबोध दी दो, जीरो चमत्कार मोटो बताया जीव हंसा (जीवहिंसा) छरकली (चिड़िया) तथा नाम पंषेरु (पक्षी) ने तीसो माफ कराई, जीरो मोटो उपकार कीदो सो श्री जेनरा ध्रम रो आप असाहीज अदोतकारी (उद्योतकारी) अबार कीसे (समय) देखता आप जू फेर वे न्ही आवी, पूरब हिदस्थान अत्रवेद सुदा चारू (४) दसा म्हे धरम रो बड़ो अदोतकार देखाणो, जठा पछे आपरो पदारणो हुवोन्ही सो कारण कहीवेगा पदारसी आगे सू पटा प्रवाना कारण रा दस्तूर माफक आप्रे है जी माफक तोल मुरजाद सामो आवारी कसर पड़ी सुणी जो काम कारण लेखे भूल रही वेगा, जीरो अदेसो न्ही जाणेगा, आगे सु श्री हेमाआचारजी ने श्री राज म्हे मान्यता है, जी रो पटो कर देवाणो जी माफक अरो पगरा भटारख गादी प्र आवेगा तो पटा माफक मान्या जावेगा श्री हेमाचारजी पेला श्री बड़गच्छ रा भटारख जी बड़ा कारण सुश्री राज म्हे मान्या जी माफक आपने आपरा पगरा गादी प्रपाट हवी तपागच्छ राने मान्या जावेगारी "सुवाये देस म्हें आपरे गच्छ रो देवरो तथा उपासरो वेगा, जी रो मुरजाद श्री राज सू वा दूजा गच्छ रा भटारख आवेगा सो रहेगा," श्री समरण ध्यान . देवाजात्रा जठे याद करावसी भूलसी नहीं ने वेगा पदारसी, प्रवानगी पंचोली गोरो समत् १६३५ रा वर्ष आसोज सु. ५ गुरुवार'।' राणा प्रताप के समय में उनके दीवान भामाशाह कावड़िया ने वि०सं० १६४३ माह सुदी १३ को केशरियाजी (धुलेव) मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया। महाराणा अमरसिंह (वि० सं० १६५३ से १६७६) एवं जगतसिंह (वि०सं० १६८४ से १७०९) राणा अमरसिंह ने तपागच्छ के भट्टारक विजयरत्नसूरि के उपदेश से पर्युषण पर्व के दिनों में हिंसा नहीं करने (अगता पलाने) का पट्टा जारी किया। खुर्रम ने अपने पिता शहंशाह जहाँगीर के हुक्म से राणा अमरसिंह के विरुद्ध मेवाड़ पर चढ़ाई की। उस समय वि०सं० १६७० में शाही फौजों ने राणकपुर के प्रसिद्ध मन्दिर की खराबी करना शुरू किया तब राणा ने चित्तौड़ के युद्ध में जान देने वाले विख्यात योद्धा जयमल्ल के पुत्र मुकुन्दास को मुकाबले के लिये भेजा । मन्दिर की खराबी करने वाली शाही फौज का मुकुन्ददास ने डटकर मुकाबला किया और अपनी जान दी। राणा जगतसिंह ने आचार्य विजयदेवसूरि एवं विजयसिंहमूरि के उपदेश से वरकाणा (गोड़वाड़) तीर्थ पर पार्श्वनाथ भगवान के जन्मदिवस पर होने वाले मेले में आने-जाने वाले यात्रियों से कर लेना बन्द कर दिया एवं भविष्य में ऐसा कर नहीं लिया जावे इस हेतु इस आज्ञा को शिला पर खुदवा कर मन्दिर के दरवाजे पर लगवा दिया। राणा जगतसिंह १. राजपूताने के जैन वीर, अयोध्याप्रसाद गोयल, पृ० ३४१, ३४२. २. मेवाड़ के महाराणा एवं शहंशाह अकबर, राजेन्द्र शंकर भट्ट, पृ० ३६५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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