SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1046
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SHO हरिवंशपुराण की पुष्पिका' में मिलता है पूर्व श्रीमदवन्तिभूभूति नृपे वत्सराजे -- शक संवत् ७०० (७७० ई०) की समाप्ति के एक दिन पहले जाबालिपुर ( वर्तमान जालोर) में उद्योतन सूरि द्वारा रचित 'कुवलयमाला कथा' में भी वत्सराज का उल्लेख हुआ है।" धाराव ध्रुवराज के शक संवत् ७०२ (७८०ई०) के और राज्य संग्रहालय के ताम्रपत्र अभिलेख ", गोविन्द तृतीय के राधनपुर तथा वनी अभिलेखों, 3 कर्कराज के बड़ोदा ताम्रलेखों तथा हरिवंश पुराण के उल्लेख के संयुक्त साध्य से पता चलता है कि वत्सराज का वर्धमानपुर (वर्तमान वर्धवान) तथा जाबालिपुर (जालोर) से ७८० तथा ७८३ ईस्वी में किसी समय शासन समाप्त हुआ । अतः स्पष्ट है कि ओसियां का महावीर मन्दिर भी ७८० ई० से पूर्व इस नरेश के शासनकाल में बन चुका था और उस समय ओसियां एक समृद्ध नगर रहा होगा। ओसियां के हरिहर मन्दिर तथा बावड़ी भी आठवीं शताब्दी में बने प्रतीत होते हैं और उस समय नगर की समृद्धि के परिचायक हैं । कुछ समय पूर्व हरिहर मन्दिर नं० २ के आंगन में सुरक्षित संवत् ८०३, ८१२ आदि के स्मारक लेख मिले हैं जो ओसियां की प्राचीनता को आठवीं शताब्दी के पूर्वाद्धं तक ले जाते हैं। अतः तथाकथित इतिहासकारों का का मत कि विक्रमी संवत् ६०० से पूर्व ओसियां का अस्तित्व न था, भ्रान्त है । स्पष्ट है कि आठवीं शताब्दी के मध्य में ओसियां एक वैभवशाली नगर था । ८. ई. ओसियां की प्राचीनता ओसियां की स्थापना के सम्बन्ध में सभी पश्चकालीन परम्पराएँ एक स्वर से परमार राजकुमार उपलदेव को नगर की स्थापना का श्रेय देती हैं। इस परमार राजकुमार की पहिचान सन्दिग्ध है । उपलदेव ने मण्डोर के प्रतिहार शासक का आश्रय तथा साहाय्य प्राप्त किया था। यह प्रतिहार शासक कौन था, यह भी निश्चित नहीं । बाऊक के जोधपुर के विक्रम संवत् ८९४ (८३७ ई०) तथा कक्कुक के विक्रम संवत् ६१८ (५६१ ई०) के घटियाला अभिलेख से मण्डोर के प्रतिहारों की उत्पत्ति ब्राह्मण हरिश्चन्द्र की अविया पत्नी भद्रा से वर्णित की गई है।" बाऊक तथा कक्कुक एवं प्रथम शासक हरिश्चन्द्र में ग्यारह पीढ़ियों का अन्तर था । अतः मण्डोर पर प्रतिहार शासन का प्रारम्भ सातवीं शताब्दी में किसी समय हुआ प्रतीत होता है। इस तरह इन परम्पराओं के आधार पर भी ओसियां की प्राचीनता सातवीं शताब्दी के कुछ समय पश्चात् सम्भवतया आठवीं शताब्दी तक ही है। यदि परमार राजकुमार उपलदेव की पहिचान मालवा के वाक्पति मंजु (उत्पन्न) से की जाए तो ओसियां की स्थापना ६७४ से ६८६ ई० के बीच जा बैठती है जो कि इस शासक के राज्यकाल को ज्ञात तिथियाँ हैं । इससे पहले उपलदेव नामक किसी परमार राजकुमार का पता नहीं । १५ १. परभभिगो पीयन रोहिणी कला चन्दो । सिरि बच्छराय नामो नरहत्थी पत्थीवोजइया || २. Indian Antiquary XIV, pp. 156ff. वही, VI, p. 248. ३. Y. Indian Antiquary, XIV, pp. 156 ff. ५. Dr. Gulab Chandra Choudhary, Political History of Northern India from Jain Sources, Amritsar, 1963, p. 41. ६. Bhandarkar, op. cit, pp. 101 ff. Noticed by Dr. K. V. Ramesh, Superintending Epigraphist, Archaeological Survey of India, Mysore vide a typed copy ( received through the courtesy of Sh. R. C. Agrawal, Director, Archaeology & Museums Department, Rajasthan, Jaipur) of Inscriptions on Stone and other Materials, 1972-73, Nos. 214-15. Dr. Dasharatha Sharma, Rajasthan Through the Ages, Vol. 1, 1966, Bikaner, p. 541. Ibid., p. 549. Jain Education International For Private & Personal Use Only ... www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy