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________________ +-+-+0+0+0+0 वैशाली - गणतन्त्र का इतिहास श्री राजमल जैन सहायक निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, (वेस्ट ब्लाक ७, रामकृष्णपुरम्, नई दिल्ली ११००२२) वैशाली गणतन्त्र के वर्णन के बिना जैन राजशास्त्र का इतिहास अपूर्ण ही रहेगा। वैशाली गणतन्त्र के निर्वाचित राष्ट्रपति ('राजा' शब्द से प्रसिद्ध बेटक की पुत्री विमला भगवान् महावीर की पूज्य माता भी (श्वेताम्बरपरम्परा के अनुसार त्रिशला चेटक की बहन थी ) । भगवान् महावीर के पिता सिद्धार्थ वैशाली के एक उपनगर 'कुण्डग्राम' के शासक थे। अतः महावीर भी 'वैतालिक' अथवा 'वैशाली' के नाम से प्रसिद्ध वे भगवान् महावीर ने संसारत्याग के पश्चात् ४२ चातुर्मासों में से छ: चातुर्मास वैशाली में किये थे बारह चातुर्मास वैशाली में व्यतीत किये थे।" । कल्पसूत्र (१२२ ) के अनुसार महावीर ने +8+8+8+8 महात्मा बुद्ध एवं वैशाली इसका यह तात्पर्य नहीं कि केवल महावीर को ही वैशाली प्रिय थी। इस गणतन्त्र तथा नगर के प्रति महात्मा बुद्ध का भी अधिक स्नेह था। उन्होंने कई बार वैशाली में बिहार किया था तथा चातुर्मास बिताए। निर्वाण से पूर्व वैशाली पर दृष्टिपात किया और अपने शिष्य आनन्द से कहा, "आनन्द ! इस नगर में यह मेरी अन्तिम यात्रा होगी ।" यहीं पर उन्होंने सर्वप्रथम भिक्षुणी संघ की स्थापना की तथा आनन्द के अनुरोध पर गौतमी को अपने संघ में प्रविष्ट किया। एक अवसर पर जब बुद्ध को लिच्छवियों द्वारा निमन्त्रण दिया गया तो उन्होंने कहा- "हे भिक्षुओ ! देव-सभा के समान सुन्दर इस लिच्छवि परिषद् को देखो।" महात्मा बुद्ध ने वैशाली - गणतन्त्र के आदर्श पर भिक्षु संघ की स्थापना की । “भिक्षु संघ के छन्द ( मत- दान ) तथा दूसरे प्रबन्ध के ढंगों में लिच्छवि (वैशाली) गणतन्त्र का अनुकरण किया गया है।' (राहुल सांकृत्यायनपुरातत्व- निबन्धावली, पृ० १२) । यद्यपि बुद्ध शाक्य - गणतन्त्र से सम्बद्ध थे ( जिसके अध्यक्ष बुद्ध के पिता शुद्धोदन थे), १. मुनि नथमल ( युवाचार्य महाप्रज्ञ), श्रमण महावीर, पृ० ३०३. २. इदं पच्छिमकं आनन्द ! तथागतस्स बेसालिदस्सनं भविस्सति । ३. Jain Education International उपाध्याय श्री मुनि विद्यानन्दकृत तीर्थकर वर्धमान से उड़त } J यस भिभिनवनं देवा तावनिया अदिट्ठा अलोव भिक्खये! लिच्छवनी परिसं अपलोनेथ भिक्यये ! लिच्छवी परिसरं ! उपसंहरथ भिक्खवे लिन्छने लिन्छवी परिसर तापनिसा सदरान्ति || I For Private & Personal Use Only ---- www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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