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________________ -. -.-.-.-.-.-.-.-.-. -.-.-. -.-.-.-.-.-. -.-.-.-. -. -. -. -.-. -.-.-. -.-.-.-.-. -.. हिन्दी जन गीतकाव्य में कर्म-सिद्धांत 0 (स्व०) प्रो० श्रीचन्द्र जैन मोहन निवास, कोठी रोड, उज्जैन (म० प्र०) जैन दर्शन में कर्म-सिद्धान्त का जो गहन विवेचन किया गया है वह वैज्ञानिक है तथा साथ ही साथ तात्त्विक भी। जैनाचार्यों ने निष्पक्षभाव से कर्म-मीमांसा को इस प्रकार निरूपित किया है कि यह सामान्य जन को भी ग्राह्य है और मनीषियों के लिए भी बुद्धि-संगत है। __ यह तो स्पष्ट ही है कि आत्मा के सहज स्वरूप को कलुषित करने वाले कर्म ही हैं। यदि साधना की आग में कर्म दग्ध कर दिये जायं तो निष्कलंक बनकर आत्मा अलौकिक दिव्य आभा से शीघ्र ही प्रकाशित हो उठती है एवं अपने लक्ष्य की पूर्ति में सफल हो जाती है। लेकिन कर्म-पाश में आबद्ध यह जीव स्वलक्ष्य को भूलकर रागद्वेष के कर्दम में पतित होता है एवं अपनी प्रतिभा को कलंकित करता रहता है। महाकवि दौलतराम ने जीव की इस दूषित प्रवृत्ति का चित्रण इस प्रकार किया है जीव तू अनादि ही तै भूल्यो शिव गैलवा ।। मोहमदवारि पियौ, स्वपद विसार दियो। पर अपनाय लियो, इन्द्रिय सुख में रचियो । भवत न भियौ न तजियो मन-मैलवा । जीव तू अनादि ही तै भूल्यो शिव गैलवा ॥ मिथ्या ज्ञान आचरन धरिकर कुमरन । तीन लोक की धरन तामैं किया है फिरन ॥ पायौ न सरन, न लहायौ सुख-शैलवा । जीव तू अनादि ही तै भूल्यो शिव-गैलवा ।। अब नरभव पायौ, सुथल सुकुल आयौ । जिन उपदेस भायौ, दौल झट झिटकायो॥ पर परनति दुखदायिनी चुरैलवा। जीव तू अनादि ही तै भूल्यो शिव गैलवा ॥ कर्मों के वशीभूत होकर इस प्राणी ने स्व-पर विवेक को भुलाया, जिनेन्द्र भगवान की भक्ति की ओर आकृष्ट न हुआ, विषय-सुख में उल्लसित होकर उसने ऐसे दुष्कृत्य किये जो उसकी नैसर्गिक प्रगति के लिए घातक सिद्ध हुए तथा भोगों में निमग्न रहकर वह अपना ही विद्रोही बना। भगवन्त-भजन क्यों भूला रे? यह संसार रैन का सुपना, तन धन वारि बबूला रे ! भगवन्त-भजन क्यों भूला रे? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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