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________________ ६४४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड संस्कृत साहित्य के उत्थान में अन्य महिलाओं के साथ जैन महिलाओं का योगदान भी महत्त्वपूर्ण है (विशेष अध्ययनार्थ द्रष्टव्य-संस्कृत साहित्य में महिलाओं का दान : लेखक डा० यतीन्द्र विमल चौधरी, प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ पृ० ६७६)। इसी प्रकार धर्म सेविकाओं के रूप में जैन-नारियों ने जो ख्याति प्राप्त की है, वह सर्वदा अनुकरणीय रही है। प्राचीन शिलालेखों एवं चित्रों से पता चलता है कि जैन श्राविकाओं का प्रभाव तत्कालीन समाज पर था। इन धर्मसेविकाओं ने अपने त्याग से जैन समाज में प्रभावशाली स्थान बना लिया था। उस समय की अनेक जैन देवियों ने अपनी उदारता एवं आत्मोत्सर्ग द्वारा जैन धर्म की पर्याप्त सेवा की है। इस सन्दर्भ में इक्ष्वाकुवंशीय महाराज पद्म की पत्नी धनवती, मौर्यवंशीय चन्द्रगुप्त की पत्नी सुषमा, एवं सिद्धसेन की धर्मपत्नी सुप्रभा के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।" जैन कथा-ग्रन्थों की संक्षिप्त तालिका प्रथमानुयोग के अन्तर्गत जो भी जैन साहित्यिक सामग्री ग्राह्य है, वह सब जैन कथात्मक है। मैं तो यह मानती हूँ कि यह प्रथमानुयोग, अन्य तीन अनुयोगों से (चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग, करणानुयोग) से बृहत्तर है। तीर्थकरों की जीवन गाथाएँ, त्रेसठशलाकापुरुषों का जीवन-चरित्र, चरितकाव्य (पद्यात्मक एवं गद्यात्मक), कथा कोश आदि की तालिका बहुत बड़ी है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं प्रदेशीय विभिन्न भाषाओं में रचित जैन कथा-साहित्य प्रचुर है । डा. वासुदेवशरण अग्रवाल 'लोक-कथाएँ और उनका संग्रह कार्य' शीर्षक निबन्ध में लिखते हैं-बौद्धों ने प्राचीन जातकों की शैली के अतिरिक्त अवदान नामक नये कथा-साहित्य की रचना की जिसके कई संग्रह (अवदान शतक, दिव्यावदान आदि) उपलब्ध हैं। परन्तु इस क्षेत्र में जैसा संग्रह जैन लेखकों ने किया वह विस्तार, विविधता और बहुभाषाओं के माध्यम की दृष्टि से भारतीय साहित्य में अद्वितीय है। विक्रम संवत् के आरम्भ से लेकर उन्नीसवीं शती तक जैन साहित्य में कथाग्रन्थों की अविच्छिन्न धारा पायी जाती है। यह कथा-साहित्य इतना विशाल है कि इसके समुचित सम्पादन और प्रकाशन के लिए पचास वर्षों से कम समय की अपेक्षा नहीं होगी। डॉ० शंकरलाल यादव, अपने शोध-ग्रन्थ-'हरियाणा प्रदेश का लोक-साहित्य' में जैन-कथा-साहित्य के विस्तार के सम्बन्ध में अपने विचार इस प्रकार प्रकट करते हैं-कथा-साहित्य सरिता की बहुमुखी धारा के वेग को क्षिप्रगामी बनाने में जैन कथाओं का योगदान उल्लेखनीय है। जैनों के मूल आगमों में द्वादशांगी प्रधान और प्रख्यात है। उनमें नायाधम्मकहा, उवासगदसाओ, अन्तगड, अनुत्तरौपपातिक, विपाकसूत्र आदि समग्र रूप में कथात्मक हैं। इनके अतिरिक्त सूयगडंग, भगवती, ठाणांग आदि में अनेक रूपक एवं कथाएँ हैं जो अतीव भावपूर्ण एवं प्रभावजनक हैं। तरंगवती, समराइच्चकहा तथा कुवलयमाला आदि अनेकानेक स्वतन्त्र कथा ग्रन्थ तथा विश्व की सर्वोत्तम कथा-विभूति हैं । यदि इनका अध्ययन विधिवत् तथा इतिहास क्रम से किया जाय तो कई नवीन तथ्य प्रकाश में आवेंगे और जैन कथा साहित्य की प्राचीनता वैदिक कथाओं से भी अधिक पुरानी परिलक्षित होगी। जैनों का पुरातन साहित्य तो कथाओं से पूर्णत: परिवेष्टित है। कतिपय कथा कोश निम्नस्थ हैं (१) कथाकोश अथवा कथाकोशप्रकरणम् – इसके रचयिता श्रीवर्धमानसूरि के शिष्य जिनेश्वरसुरि हैं। प्राकृत के इस ग्रन्थ में २३६ गाथाएँ हैं। ०० १. विशेष अध्ययनार्थ देखिए-ब्रचंदाबाई जैन-धर्मसेविका प्राचीन जैन देवियाँ, प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ पृ० ६८४ २. आजकल-लोक-कथा अंक, पृ० ११ ३. हरियाणा प्रदेश का लोक साहित्य, पृ० ३३०-४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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