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________________ ·零令零零零零零零 प्राक्कथन Jain Education International आचार्य विनोबा के शब्दों में- "ज्ञान ही कर्म और कर्म ही भक्ति है ।" भगवद्गीता का साम्ययोग प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ की मूल भित्ति है । जीवन की सफलता एक साधारण कसौटी है । कतिपय बिरले ही होते हैं जो जीवन की वास्तविक उपादेयता की और सोचते हैं और सोचकर ऐसे मार्ग की और अग्रसर होते हैं जिसका मूल्यांकन सदा-सर्वदा स्थायित्व लिये होता है । भारतीय संस्कृति में महापुरुषों का मार्ग कंटकाकीर्ण रहा है और उसी में उत्तीर्ण होकर जन-जन को पथ-प्रदर्शन किया है। इसी मार्ग के अनुगामी हम सबके श्रद्धेय कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा हैं । आपके जीवन की कहानी एक खुली पुस्तक है । किस परिवार और कहाँ जन्म लेकर एक निर्जन स्थान, राणावास को देश के मानचित्र पर लाकर रख दिया, यह एक अद्वितीय कार्य है जो निस्सन्देह सत्य है। शिक्षा जगत की महान उपलब्धि के पीछे मानवी शक्ति की पराकाष्ठा परिलक्षित होती है। न तो इस प्रकार का पारिवारिक वातावरण, न आप विशेष शिक्षित, व्यवसाय आपका मुख्य जीवनयापन होते हुए, तथापि आपकी अन्तरआत्मा की आवाज ने जीवन को सच्ची व सही दिशा की और प्रेरित किया । वह प्रेरणा उत्तरोतर वृद्धि के साथ आपकी चिर संगिनी बन गई । आप दृढ़ आत्म-संकल्प के साथ शिक्षा सेवा में जुट पड़े । पाँच बच्चों की प्राथमिक शिक्षा से महाविद्यालय स्तर में परिणित कर देना आपकी सतत कर्मठ साधना का प्रतिफल है । आपके लिये कल्पनातीत था, पर मार्गस्वयं प्रशस्त नहीं होता, असीम सत्यनिष्ठा सेवा मार्ग को आगे की ओर प्रशस्त करती रहती है । यह आपके जीवन के लिये भी चरितार्थ होता है । सफलता ऐसे व्यक्तियों के ही चरण चूमती है जो अपने लक्षित मार्ग से किन्हीं परिस्थितियों में विचलित नहीं होते हैं। एक युग की त्याग-तपस्या युगों-युगों तक फल प्रदान करती रहती है । राणावास का जैन श्वेताम्बर तेरापन्थ मानव हितकारी संघ की ३८ वर्ष पूर्व स्थापना और उसके सुयोग्य तत्वावधान में देश-व्यापी सहयोग द्वारा संस्थान का वर्तमान स्वरूप हमारे चरित्रनायक के अलौकिक मानवीय गुणों का अवलोकन कराता है। उसी दृष्टि से यह ग्रन्थ सार्वजनिक परिप्रेक्ष्य से रचित किया गया है ताकि आपके गुणों को उजागर किया जा सके। हम सबका यह प्रयास श्रद्धय सुराणा जी का हार्दिक अभिनन्दन है | For Private Personal Use Only 煱 *零零零零零公 www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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