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________________ विजयका वर्णन है। तीसरा हरबा लेख ५५४ ई० गौड़ों द्वारा स्थापित उस नो-परम्पराका वर्णन करता है जिसे बादमें पाल एवं सेन नरेशोंने अपनाया था। सेन कालमें सम्राट विजयसेन (१०९६-११५८ ई०)ने गंगा नदी तक विस्तृत जल-क्षेत्र पर अधिकार कर लिया था। दक्षिण-भारतीय जलयानोंका विश्वसनीय सूत्र तामिल साहित्य है । इनमें चोलकालीन प्रकाश स्तम्भ, उनकी निर्माणकला एवं उनमेंसे निकलनेवाले मार्ग दर्शक प्रकाशका सुन्दर विवरण है। चोलकालीन जहाज केवल तटों तक सीमित न रहे वरन उन्होंने बंगालकी खाडीको भी पार किया। १०वीं शतीके अन्त तक तो सारे दक्षिण भारतमें चोल नरेशोंकी धाक जम गई। राजेन्द्र महानने तो अपनी विजय शृंखलाका प्रारम्भ ही ९५० ई०में चेर नौबेड़ेको हराकर किया था। उसके पुत्र राजेन्द्र चोलदेव (९७४-१०१३ ई०)ने अनेकों प्रायद्वीपोंपर अधिकार किया था। श्री लंका भी तब उसके साम्राज्यमें सम्मिलित था । तिरुमलाई लेखके अनुसार राजेन्द्र चोलदेवने कदरम नरेशके जहाजोंको महासागर में डुबोकर उसपर विजय प्राप्त की थी। सिंध प्रदेशने मध्यकालीन युगमें अपनी नौसैनिक प्रभुता खो दी थी। यहाँके शासक ब्राह्मण छाचके पास बहुत ही कमजोर बेड़ा था। यही कारण था कि उसके राज्यमें हमेशा समुद्री डाकुओंका भय बना रहता था। अरबोंने भारत आक्रमणके समय अपना नौबेड़ाका भी प्रयोग किया था। ७१२ ई० में मुहम्मद बिन कासिमने थानाके निकट देवलके बन्दरगाहमें प्रवेश किया और नेरुनको रौंद डाला। तत्पश्चात् उसने नावोंका पुल बनाकर सिंध नदीको पार किया एवं अन्ततोगत्वा सम्पूर्ण सिंध प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया। ग्यारहवीं शतीमें सूल्तान महमदने अपना १७वां एवं अन्तिम हमला जाटोंके विरुद्ध किया था। यह एक प्रसिद्ध जल-युद्ध था। इस समय सुल्तान महमूद गजनबीने १४०० जंगी नावोंका निर्माण कराया था जिनमें प्रत्येकके आगे लोहेकी भारी कीलें लगी हुई थीं। जाटोंने ४,००० नावोंसे सुल्तानका मुकाबला किया पर सुल्तानके नावोंके समक्ष जानेवाली हर जाट नाव लोहेकी कीलोंसे टकराकर नष्ट हो गई। जाटोंकी बड़ी भयंकर पराजय हुई। तेरहवीं शतीकी महत्त्वपूर्ण -जलघटना गुलाम वंशके सुल्तान बल्बन (१२६६-८६ ई०)का बंगालके तत्कालीन गवर्नर तुगरिल खां पर किया गया आक्रमण है। एक बड़ी भारी फौजके साथ सुल्तानने सरयू नदी पार की। तुगरिलकी हत्या कर दी गई, उसके बेड़ेको नष्ट कर दिया गया एवं उसके सैनिकोंको लखनौतीके बाजार में सामूहिक रूपसे फांसी दे दी गई । यह घटना 'लखनौती का हत्या कांड' के नामसे प्रसिद्ध है । चौदहवीं शतीके भारतमें जहाजोंकी मरम्मत, निर्माण, रखरखाव आदिका कार्य जोरोंपर था । मार्कोपोलोने इस कलामें भारतीय कारीगरोंकी कुशलताकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उसने यहाँ पर उस समय प्रचलित जहाजोंके प्रकारोंका भी उल्लेख किया है । सन १३५३ एवं १३६० में सुल्तान फिरोजशाहने लखनौती पर आक्रमण किया था। उसका तीसरा जल-युद्ध १३७२में थट्टाके विरुद्ध हुआ। इसी शतीमें मंगोल हमलावर तैमर लंगने १३८८में सिंध नदीको नाबोंके पल द्वारा ही पार किया था। उसे गंगा नदीपर अनेक बार देशी राजाओंसे युद्ध करना पड़ा था। ___नौ-सेनाके इतिहासमें गुजरातका भी प्रमुख योग रहा। अति प्राचीन कालसे यह सामुद्रिक व्यापारके लिये अच्छे बन्दरगाह प्रदान करता आया है। सन् १५२१ ई० में गुजरात नरेशके एडमिरलने पुर्तगाली जहाजोंपर आक्रमण किया था और उसके एक जहाजको जल-समाधि दिला दी थी। पर इस दिशामें सबसे अधिक सामर्थ्यवान नरेश महमूद बर्घारा (१४५९-१५११) था। उसका नौ बेड़ा पूर्ण रूपेण अस्त्र शस्त्रोंसे सज्जित था। इतिहास और पुरातत्त्व : ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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