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________________ सामना मालपुरेमें किया जायगा और यदि अपने फूफा अकबरके बलपर आया तो मेवाड़में जहाँ कहीं भी उचित स्थान और अवसर मिलेगा उसका यथोचित स्वागत किया जायगा। मानसिंहके साथ हुई इस तकरार में भीमसिंहने यह भी प्रतिज्ञा की थी कि वह स्वयं उस हाथीपर भाला फेंकने में पहल करेगा जिसपर बैठकर मानसिंह आयगा । मानसिंह और भीमसिंहके मध्य हुए इस उग्र संवादका उल्लेख रावल राणाजी री वात', मेवाडकी वंशावलियों और वीरविनोद में स्पष्ट रूपमें लिखा मिलता है। हल्दीघाटीके युद्धस्थलमें भीमसिंह मानसिंहके सामने खड़ा है। उसे आज मानसिंहका स्वागत कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करनेका अवसर प्राप्त हुआ है । वह उदयसागर पर मानसिंहके साथ हुई अपनी तकरार में अपने वचनोंका स्मरणकर मानसिंहका स्वागत कर रहा है। अमरकाव्य के डॉ० पालीवाल द्वारा उद्धृत अंश उसी प्रसंगसे सम्बद्ध हैं। उस अंशके पूर्वके श्लोक निम्न प्रकार हैं, जिन्हें उन्होंने उद्धृत नहीं किया प्रतापसिंहस्य पुरस्सरस्स उद्दण्डसांडावत एव वीरः । स डोडियाजातिभवश्च भीमो भीमप्रभावः समरेषु भीमः ।।७४ सेनावृतं वीक्ष्य स मानसिंह, गजस्थितं संश्रितलोहकोष्ठम् । सिंहप्रकोष्ठं किल लोहकोष्ठं, पूर्वोक्तवाक्यं विवदत्सु इत्ययम् ॥७५ विशिष्टकट्टारकमुत्कटाक्षः चिक्षेप पादे क्षतकारितस्य । एव विधायैव जहारशब्द. स्वस्या जगादेति जगत्प्रसिद्धम् ॥७६ और इससे आगे ही श्री पालीवाल द्वारा उद्धृत अंश है अकब्बरस्य पार्नेऽगाद् अमरेशः कुमारकः । यदा तदा मानसिंहो डोडियाभीममुख्यकैः ॥७७ अमरेशस्य वीरैः सह वार्ता क्रतौ लघुः । कांश्चिद्वार्ताम् अकथयत्तदा भीमोऽवदत् क्रुधा ॥७८ भवांस्तत्र समायातु, मया घोररणे तदा । जुहारस्तत्र कर्तव्यः पूर्वोक्तं वाक्यं इत्यहो ॥७९ और इससे आगेके श्लोकमें महाराणा प्रताप द्वारा मानसिंह पर भालेसे वार करनेका विवरण है । प्रतापसिंहोऽथ परप्रतापः परंपराप्रापितपूर्णतापः । तन्मानसिंहस्थ करीन्द्रकुंभे, चिक्षेप कुंतं च शिवेव शुंभे ।।८० स्थिति सर्वथा स्पष्ट है। यहाँ भीमसिंह अपने पूर्वकथित वचनोंका स्मरणकर मानसिंहका जुहार करना चाह रहा है और वह अपनी विशिष्ट कटार फेंककर मानसिंहके पांवमें घाव करता हुआ उसका पालन करता है । राजप्रशस्तिमें भी यह प्रसंग थोड़ा भिन्न रूपमें पर इन्हीं शब्दोंमें दिया गया है। उसमें भीमसिंहके बजाय अमरसिंह मानसिंहके हाथी पर भालेसे वार करता है । ३ वीर विनोदमें भी भीमसिंह द्वारा मानसिंह पर इन शब्दोंके साथ कि "लो मैं आ गया हूँ" भाला फेंकनेका विवरण दिया है। भीमसिंहकी मानसिंहके साथ तकरार और प्रतिज्ञासे संबद्ध श्लोकोंके साथ श्लोक सं० ७७ में प्रथम चरण "अकबरस्य पार्वेऽगाद् अमरेशः कुमारकः-यदा" ही इस भ्रांतिका मूल कारण है । जिसमें निस्संदेह सीधा सा अर्थ यही निकलता है कि "जब अमरसिंह कूमार अकब्बरके पास गया ।" और अगले चरणोंका १. रावल राणाजी री वात-राज-प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, ग्रंथांक ८७६ पृ० १०४-६ । २. वीरविनोद-(कुँवर मानसिंहसे विरोध)-पृ० १४६. ३. राजप्रशस्ति महाकाव्य--प्रताप विषयक अंश. -श्लोक २४ । ४. वीरविनोद--(कुंवर मानसिंहसे विरोध)--पृ० १४६ । विविध : ३२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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