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________________ भोजन कराकर और कपूर युक्त बीड़ा देकर प्रेम-पूर्वक विदा कर देते हैं, और उसके बाद मानसिंहको पता चलता है कि महाराणाने उस स्थानसे रसोईके बर्तन आदि हटाकर उस स्थानका जलसे प्रक्षालन करवाकर पवित्र मिट्टी और गोबरसे सफाई करवायी तथा गंगाजलका छिड़काव किया है-तब वह पूछता है कि यह क्या बात है, और एक वयोवृद्ध सामन्त उसे सारा कारण बताता है। और तभी मानसिंह क्रुद्ध होकर अपमानका बदला लेनेकी प्रतिज्ञा करता हुआ अकबरके पास जाकर सब वृत्तान्त कहता है।' अतः यह मान लेना कि इस घटनाका राजस्थानी और मेवाड़ी काव्योंमें दिया गया विवरण काल्पनिक है-कोई अर्थ नहीं रखता विशेषरूपसे उस समय जबकि संबद्ध दोनों पक्षोंके ऐतिहासिक स्रोत उसकी पुष्टि करते हों। __एक दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रश्न, जो अकबर और प्रतापके ही सम्बन्धोंको लेकर, अबुलफजल द्वारा अकबरनामेमें किये गये उल्लेखकी पुष्टि में पुनः खड़ा किया गया है। वह है महाराणा प्रतापका अकबरके द्वारा भेजी गई खिलअत पहनना और पाटवी कुमार अमरसिंहको मुगल दरबारमें भेजनेसे संबंधित । मेवाड़से विफल लौटे राजदूतोंने अपनी संतुष्टि और अपने स्वामीकी संतुष्टिके लिए जो कुछ भी कहा या विवरण लिखा वह स्वाभाविक था। अकबरनामे में अबुलफज़लका वर्णन भी कुछ ऐसा ही है। आत्मश्लाघाके अतिरिक्त इसे और कुछ नहीं कहा जा सकता । यदि वीरविनोदके लेखक कविराजा श्यामलादास, श्री गौ० ही० ओझा, राजस्थानका इतिहास लिखनेवाले अन्य इतिहासकार या राजस्थानी साहित्यकार अबुलफजलके इस कथनको असंभव और असत्य मानते हैं तो कौनसा अन्याय करते हैं। इस घटनासे संबंधित कोई लिखित प्रमाण मिल पाता अथवा इस घटनाके तुरन्त बाद इसके फलस्वरूप किसी अनुकूल प्रमाणकी झलक भी कहीं दिखाई दे जाती तब तो उन्हें अकबरनामेकी इस सूचनाको सत्य मानने में कोई आपत्ति नहीं होतीपर कोई प्रमाण मिलता तभी न ! यदि महाराणा प्रतापने खिलअत पहन ली होती, अमरसिंहको अकबरके दरबारमें भेज दिया होतातो फिर हल्दीघाटीकी लड़ाई और उसके बाद भी पूरे दो युगों तक मेवाड़ के साथ संघर्ष छेड़े रखनेकी अकबरको क्या आवश्यकता आ पड़ी थी? क्या अपने फर्जन्द मानसिंहकी आत्मतुष्टि के लिए ही यह आवश्यक हो गया था । स्थिति स्पष्ट है, प्रताप आत्माभिमानी था-स्वतन्त्रताके मुल्यको समझता था--और इसीलिए उसने वह सब कृत्य नहीं ही किया जिसका उल्लेख अबुलफजल करता है और यही कारण था मेवाड़पर अकबरके आक्रमण का। यदि अबुलफजलका कथन सत्य है तो जहाँगीरनामे में जहाँगीरको यह लिखने की आवश्यकता क्यों आ पड़ी थी कि "राणा अमरसिंह और उसके बाप-दादोंने घमंड और पहाड़ी मकानोंके भरोसे किसी बादशाहके पास इससे पहले हाजिर होकर ताबेदारी नहीं की है। यह मुआमिला मेरे समयमें बाकी न रह जावे ।'3 इससे पूर्व भी महाराणा अमरसिंहपर परवेजको भेजते समय उसने लिखा है-'राणा तुमसे आकर मिले और अपने बड़े बेटेको हमारे पास भेजे तो सुलह कर लेना । राणाकी उपस्थिति तो सर्वथा असंभव थी ही मगलोंके दरबारमें, पर पाटवी पत्रकी मगलोंके दरबारमें उपस्थितिको भी आत्मसमर्पणका सूचक मान लिया गया था। जहाँगीरनामाके उपयुक्त वाक्योंसे स्पष्ट है कि मुगलबादशाह अपनी इज्जत बचाने के लिए १. अमरकाव्य-पत्र सं० श्लोक सं० (राज० प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान शा० का उदयपुर ग्रंथ सं० ७२०) २. अकबरनामा-बिवरीज द्वारा संपादित-जि० ३ पृ० ८९-९२-९८ ३, जहाँगीरनामा-अनुवादक ब्रजरत्नदास -(नागरी प्रचारिणी सभा) प्रथम संस्करण--पृ० सं ३४१ । विविध : ३२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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