SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ष तक वे पहाड़ोंकी गुफाओंमें रहे और इनके जबरा और जैसंग नामक दो पुत्र हुए। एक दिन ओढा जाम अपने दोनों पुत्रों के साथ प्रस्तर-शिलापर बैठा था, तब किसी मोरने अपनी गरदनको तीन बार हिला-हिलाकर ध्वनि की । जबराने मोरपर पत्थरसे घाव कर दिया। उस समय ओढा जामने जबरासे कहा : यह मोर, विस्मृत सगे-सम्बन्धियोंकी स्मृतिको ताजी करा रहा है। अतः इसे मारना नहीं चाहिए। इसी समय ओढाको अपना प्रिय स्वदेश, प्यारे परिजन आदि याद आ गये और यह उदास हो गया। उसी समय होथल वहाँ आ पहुँची और ओढा जामको उदास देखकर जब इसका कारण पूछा तो ओढा जामने कहा कि, स्वदेशका स्मरण हो आनेके कारण उदासी आ गई है। अब तो सगे-सम्बन्धियोंका विछोह खटक रहा है। इस सम्बन्धमें दोनोंके मध्य लम्बा वार्तालाप हुआ और अन्त में यही निश्चय किया गया कि ओढ़ा जामके देशमें जाया जाय अवश्य किन्तु, वहाँ होथलसे कोई स्त्री पुरुष नहीं मिलेगा और ओढ़ा जाम द्वारा होथलके सम्बन्धमें कोई बात नहीं कही जावेगी। ये अपने देशमें गये। होथीने अपने छोटे भाईके कथनको स्वीकार कर लिया। उसकी पत्नी मीणावतीका देहान्त हो गया था। इससे ओढाके कष्टका अब कोई कारण नहीं था। होथीने शासन-सत्ता ओढाको सौंप दी । ओढा जाम अपने पूर्व भवनमें होथलके साथ रहने लगा । यहाँ होथल किसीसे मिलती नहीं थी । अतः इसके सम्बन्धमें सगे-सम्बन्धियों द्वारा समय-समय पर ओढासे पूछा भी जाता रहा । किन्तु, उसके सम्बन्धमें वह अपने मुखसे एक भी शब्द नहीं कहता था। परिणामस्वरूप यह एक लोकचर्चाका विषय बन गया कि ओढा जामने किसी अनजान महिलाको रखेल स्वरूप रख लिया है। अत: इन दोनों (ओढा जाम और होथल) की यह निन्दा होने लगी कि नामालूम यह हलके वंशकी स्त्री कौन है ? एक बार ओढा जाम नशेमें मदमस्त था। उस समय उसके और उसकी स्त्री होथलके सम्बन्धमें लोग निन्दा करने लगे। तब ओढाने कह दिया कि मेरे घरमें अनेक सिद्धियों को प्राप्त हई स्वर्गकी देवांगना है-और बाँभणसारके घडला सोढाके विरुद्ध डाका डालनेवाली प्रसिद्ध सांगण निगामराकी पालित-पुत्री है और हम परस्पर लग्न-ग्रन्थि द्वारा जुड़े हुए हैं। इस प्रकारसे इस गुप्त बातको ओढा जामने प्रकाशित कर दिया। जब यह समाचार होथल के कानोंपर पड़े तो उसने तुरन्त ही पृथक्-पृथक् निम्न चार पत्र लिखे । १. आपने, अपने द्वारा स्वीकार की गई शर्तोंका भंग किया है । अतः मैं आपको त्याग रही हूँ। २. मैं सदैव आपको देखती रहूँगी, किन्तु आप मझे नहीं देख सकेंगे। ३. मैं आपकी एवं आपके दोनों पुत्रोंकी रक्षा अंतरिक्षमें रहते हुए भी करती रहेंगी। ४. अपने दोनों पुत्रोंके विवाह संस्कारके अवसरोंपर वैवाहिक-विधानानुसार मेरी आवश्यकताकी पूर्ति हेतु (पौखनेकी क्रियार्थ) उपस्थित रहूँगी। होथल इन चिट्टियोंको देकर रवाना हो गई। ओढाको जिस समय यह सूचना मिली तो यह वियोगके कारण पागल-सा बनकर दिवस व्यतीत करने लगा। जब ओढा जामके पुत्र वयस्क हो गये तो थलके दो सोढा सरदारों की सुन्दर कन्याओंके साथ इन दोनोंका वाग्दान (सगाई) हआ और विवाह भी हो गया। जिस समय ये दोनों विवाहकर वापस घर आये, उस समय होथल वैवाहिक-क्रियानुसार अपने दायित्वको पूर्ण करने हेतु उपस्थित हो गई। बड़ी बहूने साससे एक नवलखा हार मांगा जो इसने उसे दे दिया, किन्तु छोटी बहने अपनी सासकी देख-रेखमें रहना और इसका निरन्तर सामीप्य माँगा। ३१४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy