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________________ जाएगा। परन्तु बादशाहके सामने भेद खुल जाता है कि सोढ मीणोंके राजाका पुत्र न होकर कछवाहा राजपूत है। वहाँ बादशाह सोढको सैनिक सहायता देता है और फिर वह मीणोंको मारकर खोहपर अपना अधिकार स्थापित कर लेता है । इस प्रकार सोढ अपने शरणदाताका ही घातक बनता है।' (३) मारू सूघारीकी बातमें फूल की मृत्यु के बाद लाखा राजा बनता है और ठाकुर तथा भोमिये उससे मिलने के लिए आते हैं । वीरण राठौड़ भी वहां पहुंचता है। लाखा प्रसन्न होकर उसको अपनी बहिन विवाहमें देने के लिए कह देता है। परन्तु यह बहिन उसकी संगी न होकर विमाता बलोचणी रानीकी बेटी है। इस सम्बन्धसे रानी नाराज होती है परन्तु उसका कोई वश नहीं चलता। वीरण विवाहके लिए आता है, उस समय उसकी बहली (गाड़ी)के तेज दौड़नेवाले रोझ (पशु) देखकर लाखा उनको मांग लेता है। ये रोझ वीरणके नहीं थे, धारा सूंघारके थे, जो वहीं साथमें था। अतः तय हुआ कि धारापर कोई दोष लगा कर उसके रोम छीन लिए जावें । उसका डेरा बलोचणी रानीकी कोटड़ी (निवासस्थान)में किया गया । फिर दोनोंको पकड़नेका षड्यन्त्र था। बलोचणीको इसकी सूचना मिल जाती है और वह धाराको खबर देती है कि यदि वह उसे लेकर भाग छुटे तो प्राण बच सकते हैं। धारा मंजूर कर लेता है और वे दोनों चुपचाप बहलीमें बैठकर भाग जाते हैं। इसपर लाखा बड़ा क्रोधित होता है क्योंकि बलोचणी रानी आखिर उसकी विमाता तो थी ही। वह वीरणके साथ अपनी बहिन (बलोचणी की पुत्री)का विवाह करके उसे ससुरालके लिए विदा करते समय समझा देता है कि किसी प्रकार वह ससुरालके गांव में जाकर अपनी माता (बलोचणी रानी)को जरूर समाप्त कर डाले। वह इसके लिए तैयार हो जाती है और अपनी ससुरालमें माताको बुलवा कर कपटपूर्वक भोजन में विष दे देती है। इस प्रकार बेचारी बलोचणी रानीकी जीवन-लीला समाप्त होती है। हकी बातमें एक सेठ ठकुरेके घरसे निकले हुए पुत्रसे अपना काम निकालकर उसे धोखेसे समुद्र में डाल देता है। किसी तरह लड़का बच जाता है और एक नगरमें राजाके यहाँ 'जगाली'के रूपमें नौकरी करने लगता है। समय पाकर उसे समुद्र में डालनेवाला सेठ वहाँ आता है और जगात (चुंगी) चुकानेसे पूर्व यह पता लगवा लेता है कि वहां जगाती कौन है । सेठको सूचना मिलती है कि वहाँ वही पक्ति जगाती है, जो समद्रमें फेंका गया था। अब सेठ राजाके 'ओलग' (गानेवाले, ड्रम) लोगोंको दस मोहर देकर कहता है कि वहाँका जगाती उसका 'गोला' (दास) है, यह खबर राजाके पास किसी तरह पहुंचाई जावे । डूम लोग तैयार हो जाते हैं और गाते समय चतुराईसे राजाके सामने जगातीके बारेमें कह देते हैं कि वह तो उनका 'भांडणी' (भांड जातिकी स्त्री)के पेटसे पैदा हुआ भाई है। राजा इस सूचनासे बड़ा क्रोधित होता है कि जगातीने अपनी जाति छिपाई। जब जगाती को बुलवा कर पूछताछ की जाती है तो सारा भेद खुल जाता है। इस समय डूम (गवैये) तत्काल सेठसे प्राप्त दस मोहर निकाल कर राजाके सामने रख देते हैं कि सारा काम उन मोहरोंने करवाया है, जो उन्हें सेठसे मिली है। ऊपर केवल चार बातोंमें-से उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं। इस प्रकारका यथार्थरूप राजस्थानी बातोंमें अनेकशः देखा जाता है । १. कछवाहै री बात (हस्तप्रति, अ० ज० ग्रन्थालय, बीकानेर)। २. वरदा (७।१)। ३. ठकुरै साह री बात (वातां रो झूमखो, दूजों)। भाषा और साहित्य : २५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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