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________________ ... (६) अरजन हमीर भीमोतकी बातमें-मुर्गोंकी लड़ाई करवाते समय हमीर दृढ़तापूर्वक प्रकट करता है कि गर्दन कटनेपर भी शूरवीर अपने शत्रुको समाप्त कर सकता है। उसका ऐसा कहना आश्चर्यजनक प्रतीत होता है परन्तु जब सोमैया महादेवपर शाही-सेना आती है तो हमीर युद्ध में अपना सिर कटनेके बाद भी मारने वाले शत्रुको समाप्त कर देता है । इस प्रकार हमीर 'जूझार'का कार्य करता है । वह एक साथ ही धर्मवीर और युद्धवीर दोनोंका आदर्श है ।' (७) कवलसी सांखल और भरमलकी--बातमें कवलसीका यह नियम है कि वह किसी कन्याकी सगाईके लिए उसके पास आया हुआ नारियल वापिस नहीं लौटाता। सांखला-वंश और खरल-वंशका बैर है। खरल किसी प्रकार बदला लेने की चिन्तामें है। वे अपनी अंधी लड़की भरमलकी सगाईका नारियल कवलसीके पास भेजते हैं और विवाहके समय उसे मार डालनेका षड़यंत्र रचते हैं। कवलसीका पिता यह नारियल अस्वीकार कर देता है परन्तु जब जङ्गलमें शिकारके लिए कवलसीको यह नारियल दिया जाता है तो वह इसे ग्रहण कर लेता है। फिर विवाहके लिए बारात जाती है। फेरोंमें ग्रंथिबंधन होते ही पतिके सत्याचरणके प्रभावसे भरमलके नेत्रोंमें ज्योति आ जाती है और वह उसे षड्यंत्रका संकेत कर देती है, जिससे कवलसी बचकर निकल जाता है। फिर वह अपनी ससुरालके प्रदेशमें भरमलके पास अकेला ही हिम्मत करके आता है। वहीं उसे छिपाकर ६ मास तक महलमें रख लिया जाता है। अंतमें वह चतुराईसे भरमलको साथ लेकर विदा हो जाता है। इस प्रकार कवलसी सत्यपरायणता और साहसका आदर्श उपस्थित करता है। ऊपर सात आदर्श पात्रोंके चरित्रकी चर्चा की गई है। ये सभी पुरुष-पात्र हैं। इसी प्रकार राजस्थानो बातोंमें आदर्श नारीपात्रोंका चरित्र भी द्रष्टव्य है। (१) जसमा ओडणीकी बातमें-जसमा ओड जातिकी स्त्री है, जो मिट्टी खोदनेका धंधा करती है। उसके रूप-सौन्दर्यपर मुग्ध होकर राजा उसे अनेक प्रकारसे प्रलोभन देता है परन्तु वह सर्वथा अस्वीकार कर देती है। अंतमें ओड लोग डर कर एक रात भाग छुटते हैं। राजा सेना भेजकर उनको मरवा देता है । जसमा सती हो जाती है । इस प्रकार जसमा ओडणी दृढ़ता एवं सतीत्वका आदर्श प्रकट करती है।' (२) वीरमदे सलखावतकी बात-में शाही सेना वीरमदेका पीछा करती है और वह भाग कर जांगलूकी धरती में पहुँचता है । वहाँके राजा ऊदा मूंजावतसे वह सारी स्थिति बतला कर शरण देनेकी प्रार्थना करता है। ऊदा अपनी माताके सामने समस्या प्रस्तुत करता है। उसकी माता उसे कहती है कि वीरमदेको शरण अवश्य दी जावे। तदनुसार वीरमदेको जांगलूके कोटमें रख लिया जाता है । पीछे लगी हई शाही सेना भी वहां आ पहुँचती है। ऊदा उसके प्रधानको समझाकर बाहर ही एक रात भर डेरोंमें रोक देता है और इसी बीच वीरमदेको जोईयोंकी धरतीमें भेज दिया जाता है। दूसरे दिन कोटमें वीरमदेके न मिलनेपर शाहीसेनापति ऊदाको पकड़ता है और पैरोंकी ओरसे उसकी खाल बैंचनेकी तैयारी होती है। उसकी माता कोटकी दीवारसे यह दृश्य देखकर जोरसे आवाज देती है कि वीरमदे ऊदाके पैरों में नहीं है, वह उसकी खोपरीमें हैं, अतः खोपरीकी खाल उतारी जावें । वृद्धाके इस वचनसे प्रसन्न होकर सेनापति ऊदाको छोड़ देता है और वहाँसे १. साधना, अंक ७। २. बात कवलसी सांखलैरी (हस्तप्रति, अभय जैन पुस्तकालय, बीकानेर) ३. राजस्थानी वातां, भाग १ (श्री नरोत्तमदास स्वामी) २४८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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