SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२८) जाड़ा मेहडू-इनका वास्तविक नाम आसकरण था किन्तु शरीर मोटा होनेके कारण लोग इन्हें 'जाडाजी' कहते थे। एक जनश्रुतिके अनुसार मेवाड़ के सामन्तोंने जब गोगुन्दामें जगमालको गद्दीसे उतारकर प्रतापको सिंहासनासीन किया उस समय जगमालने जाड़ाजीको अकबरके पास दिल्ली भेजा था। जाडाजी रास्तेमें अजमेर रुके और अकबरके दरबारी कवि व प्रसिद्ध सेनापति अब्दुल रहीम खानखानाको अपनी कवित्व शक्तिसे प्रभावित किया। इस सम्बन्धमें इनके चार दोहे मिलते हैं ।२ रहीमके माध्यमसे यह अकबरके पास पहुँचा और जगमाल के लिए जहाजपुरका परगना प्राप्त किया। इसपर जगमालने प्रसन्न होकर इन्हें सिरस्या नामक गाँव प्रदान किया । मेवाड़ में मेहडूओंकी शाखा इन्हींके नामसे प्रचलित है, जिसे जाड़ावत' कहते हैं । जाड़ाजीका जीवनकाल वि० सं० १५५५ से १६६२ तक माना जाता है। इनकी फुटकर गीतों के अलावा पंचायणके पौत्र और मालदेव परमारके पुत्र शार्दूल बरमारके पराक्रमसे सम्बन्धित ११२ छन्दोंकी एक लम्बी र नना भी मिलती है। प्रतापसे सम्बन्धित गीत भी मिलते हैं। -ये पूणिमागच्छके वाचक पद्मराजगणिके शिष्य थे। इनका समय अनुमानतः वि० सं० १६१६-१६७३ है। मेवाड़-मारवाड़ सीमापर स्थित सादड़ी नगरमें वि० सं० १६४५ में ये चातुर्मास करनेके निमित्त आये थे। उस समय यहाँ भामाशाहका भाई और महाराणा प्रतापका विश्वासपात्र व हल्दीघाटी युद्धका अग्रणी योद्धा ताराचन्द राज्याधिकारीके रूपमें नियुक्त था। ताराचन्दके कहनेसे हेमरतनने 'गोरा बादल पदमिणी च उपई' बनाकर मगसिर शुक्ला १५ वि. सं. १६४६ में पूर्ण की। इसकी अनेक हस्तलिखित प्रतियाँ मिलती हैं। श्वेताम्बर जैनोंमें इस कृतिका सर्वाधिक प्रचार है। रचनामें अल्लाउद्दीनसे युद्ध, गोरा बादलकी वीरता एवं पद्मिनी के शीलका वर्णन है। हेमरत्नकी कुल ९ रचनाओं के अलावा एक दसवीं रचना 'गणपति छन्द'१० और मिली है । (३०) नरेन्द्रकीति-जैन मतावलम्बी नरेन्द्र कीर्तिने जावरपुर (वर्तमान जावरमाइन्स-उदयपुर जिला) में वि० सं० १६५२ में 'अंजना रास'की रचना की। इस पौराणिक काव्यमें रामभक्त हनुमानकी माता अंजनाके चरित्रका वर्णन है। रचना जैन धर्मसे प्रभावित है। (३१) महाराणा अमरसिंह--महाराणा प्रतापके उत्तराधिकारी महाराणा अमरसिंह (वि० सं० १६५३-१६७६) अपने पिताकी तरह स्वाभिमानी और स्वतंत्रता प्रिय व्यक्ति थे। कविके साथ-साथ ये कवियों एवं विद्वानोंके आश्रयदाता भी थे। ब्राह्मण बालाचार्यके पुत्र धन्वन्तरिने इनकी आज्ञासे 'अमरविनोद' १. डॉ० हीरालाल माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य पृ० ३५३ । २. मायाशंकर याज्ञिक द्वारा सम्पादित रहीम रत्नावली, पृ०६६-७६ । ३. सांवलदान आसिया-कतिपय चारण कवियोंका परिचय, शोधपत्रिका, भाग १२ अंक ४, पृ० ३९ । ४. वही, पृ० ३९ । । ५. प्राचीन राजस्थानी गीत, भाग ३, पृ० ३६ (साहित्य संस्थान प्रकाशन)। ६. प्राचीन राजस्थानी गीत, भाग ११, पृ० १ से ४२ (साहित्य संस्थान प्रकाशन)। ७. जैन गुर्जर कवियो, तृतीय भाग, पृ० ६८०।। ८. मुनि जिनविजयजी द्वारा सम्पादित गोरा बादल पदमिणी चउपई, पृ० ७ । ९. डॉ. पुरुषोत्तमलाल मेनारिया-राजस्थानी साहित्यका इतिहास, पृ० १०९ । १०. 'गणपति छन्द'की हस्तलिखित प्रति डॉ० ब्रजमोहन जावलिया, उदयपुरके निजी संग्रहमें है। भाषा और साहित्य : २३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy