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________________ १. आदिनाथ–ओं संवत् १४५० बैशाख सुदी १२ गुरौ श्री चाहुवाणवंश कुशेशयमार्तण्ड सारवै विक्रमन्य श्रीमत स्वरूप भूपान्वय झुंडदेवात्मजस्य शुक्लस्य श्रीसुवानृपतेः राज्ये प्रवर्तमान श्रीमूलसंघे भ० श्रीप्रभाचन्द्र देव तत्पट्टे श्रीपद्मनन्दिदेव तदुपदेशे गोलाराडान्वपे ...। -(भट्टारक सम्प्रदाय ८९२) २. अरहंत-हरितवर्ण, कृष्णमूर्ति-सं० १४६३ वर्षे माघसुदी १३ शुक्ले श्रीमूलसंधे पट्टाचार्य श्रीपद्मनन्दिदेवा गोलाराडान्वये साधु नागदेव सुत"..."। -(इटावाके जैनमूर्ति लेख-प्राचीन जैनलेख सं० पृ० ३८) ऐतिहासिक घटना भ० पद्मनन्दीके सानिध्यमें दिल्लीका एक संघ गिरनारजीकी यात्राको गया था। उसी समय श्वेताम्बर सम्प्रदायका भी एक संघ उक्त तीर्थकी यात्रार्थ वहाँ आया हुआ था। उस समय दोनों संघोंमें यह विवाद छिड़ गया कि पहले कौन वन्दना करे, जब विवादने तूल पकड़ लिया और कुछ भी निर्णय नहीं हो सका, तब उसके शमनार्थ यह युक्ति सोची गई कि जो संघ सरस्वतीसे अपनेको 'आद्य' कहलायेगा, वही संघ पहले यात्राको जा सकेगा। अतः भ० पद्मनन्दीने पाषाणकी सरस्वती देवीके मुखसे 'आद्य दिगम्बर' शब्द कहला दिया। परिणामस्वरूप दिगम्बरोंने पहले यात्रा की, और भगवान् नेमिनाथकी भक्तिपूर्वक पूजा की। उसके वाद श्वेताम्बर सम्प्रदायने की। उसी समयसे बलात्कारगणकी प्रसिद्धि मानी जाती है। वे पद्य इस प्रकार है पद्मनन्दिगुरुर्जातो बलात्कारगणाग्रणी। पाषाणघटिता येन वादिता श्रीसरस्वती ।। ऊर्जयन्तगिरौ तेन गच्छः सारस्वतोऽभवत् । अतस्तस्मै मुनीन्द्राय नमः श्रीपद्मनन्दिने । यह ऐतिहासिक घटना प्रस्तुत पद्मनन्दीके जीवनके साथ घटित हुई थी। पदमनन्दी नाम साम्यके कारण कुछ विद्वानोंने इस घटनाका सम्बन्ध आचार्य प्रवर कुन्दकुन्दके साथ जोड़ दिया। वह ठीक नहीं है क्योंकि कुन्दकुन्दाचार्य मूलसंघके प्रवर्तक प्राचीन मुनिपुंगव हैं और घटनाक्रम अर्वाचीन है। ऐसी स्थितिमें यह घटना आ० कुन्दकुन्दके समयकी नहीं है । इसका सम्बन्ध तो भट्टारक पद्मनन्दीसे है। रचनाएँ पद्मनन्दीकी अनेक रचनाएँ हैं। जिनमें देव-शास्त्र-गुरु पूजन संस्कृत, सिद्धपूजा संस्कृत, पद्मनन्दिश्रावकाचार सारोद्धार, वर्धमान काव्य, जीरापल्लि पार्श्वनाथ स्तोत्र और भावना चतुर्विशति प्रधान है। इनके अतिरिक्त वीतरागस्तोत्र, शान्तिनाथस्तोत्र भी पद्मनन्दीकृत हैं। पर दोनों स्तोत्रों, देव-शास्त्र-गुरुपूजा, तथा सिद्धपूजाम पद्मनन्दिका नामोल्लेख तो मिलता है । जबकि अन्य रचनाओंमें भ० प्रभाचन्द्रका स्पष्ट उल्लेख है, इसलिये उन रचनाओंको बिना किसी ठोस आधारके प्रस्तुत पद्मनन्दीकी ही रचनाएँ नहीं कहा जा सकता। हो सकता है वे भी इन्हींको कृति रही हों। श्रावकाचार सारोद्धार संस्कृत भाषाका पद्यबद्ध ग्रन्थ है, उसमें तीन परिच्छेद हैं जिनमें श्रावक धर्मका अच्छा विवेचन किया गया है। इस ग्रन्थके निर्माणमें लंबकंचुक कुलान्वयी (लमेच वंशज) साह वासाधर प्रेरक हैं। प्रशस्तिमें उनके पितामहका भी नामोल्लेख किया है जिन्होंने 'सूपकारसार' नामक ग्रन्थकी रचना की थी। यह ग्रन्थ अभी अनुपलब्ध है। विद्वानोंको उसका अन्वेषण करना चाहिए। इस ग्रन्थको अन्तिम प्रशस्तिमें कर्वाने साहू वासाधरके परिवारका अच्छा परिचय कराया है। और बतलाया है कि गोकर्णके पुत्र १९६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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