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________________ प्रसंगतः अमर्ष संचारी भाव विभावसे संयुक्त होकर रोषके आवेगके साथ वीर रसका स्फुरण कर रहा है। इसी प्रकार अन्य रसोंसे युक्त होने पर भी रचना शान्तरस की है। आलोच्यमान काव्यमें कई सुन्दर वर्णन है । प्रस्तुत है मगध देशका वर्णन--जहाँ पर सरोवर कमलनालोंसे सुशोभित हैं, श्रेष्ठ हाथी जहाँ पर संचार करते हैं और राजहंश उड़ानें भरते हैं । जहाँ पर क्रीड़ागिरि रति-रसका निधान है और देव-मिथुन जहाँ पर लता-मण्डपोंमें क्रीड़ाएं किया करते हैं। जलवाहिनी सरिता जहाँ पर अतिशय जल-प्रवाहके साथ बहती है मानो कामिनी-कुल पतियों के साथ विचरण करता हो । जहाँ पर नन्दन-वन फल-फूलोंसे भरित है मानो भू-कामिनी घने यौवनसे सुशोभित हो रही हो। जहाँके गो-कुलोंमें गायोंके स्तनोंसे दुग्ध झर रहा है और चपल बछड़े अपनी पूंछ उठाकर दुग्ध-पान कर रहे हैं। कविके शब्दोंमें-- तहु मज्झि सुरम्मउ मगहदेसु, महिकामिणि किउ णं दिव्ववेसु । जहि सरवर सोहहि सारणाल, गयवर डोहिय उड्डिय मराल । जहि कीलागिरि रइरस आणिहण, लइमंडवि कीलिर देवमिहुण । जलवाहिणि गणु जलु वहलु वहइ, णं कामिणिउलु पइसंगु गहइ । जहि णंदणवण फुल्लिय फल्लाइं, णं भूकामिणि जुन्वणु घणाइ । जहि गोउलि गोहणु पय खिरंति, करि पुच्छ चवल वच्छा पिवंति । (१,७) इसी प्रकार स्वयंवर-मण्डपमें सुलोचनाके द्वारा मेघेश्वरके कण्ठमें जयमाला निक्षिप्त करने पर अर्ककीर्ति रोषके साथ उठ खड़ा होता है, मेघेश्वर भी दर्पके साथ युद्ध के लिए उठ बैठता है। घमासान युद्ध होता है । युद्धका चित्र है अक्ककित्तिमणु दुवणह चालिउ, दुवणु वि कत्थण चंगउ भालिउ । तियरयण समाणी एह कण्ण, सामिहि सुउ मुइ कुलेइ अण्ण । ता जाइउ संगरु अइ रउद्दु, उट्ठिउ मेहेसरु वेरि मदु । बहु णरवर तज्जिय वाणसंधि, रवि कित्ति लयउ जीवंतु वंधि । (२,१९) वस्तुतः उक्त पंक्तियोंमें युद्धका वर्णन न होकर उसकी तैयारीका उल्लेख मात्र है। पढने पर यह लगता है कि अब जम कर युद्ध होगा, किन्तु कवि कुछ ही पंक्तियों में युद्धोत्तर स्थितिका वर्णन भी साथमें कर देता है। इसका कारण यही है कि कथानकमें गतिशीलता नहीं है। बहुत ही बँधी हुई बातें कविके सामने हैं, जिनका साहित्यके रूपमें प्रस्तुतीकरण करना कविका उद्देश्य प्रतीत होता है। अतएव वस्तुगत विविध आयामोंका भली-भाँति चित्रण नहीं हो सका है। किन्तु इसका यह भी अर्थ नहीं है कि रचनामें मार्मिक स्थल नहीं हैं; परन्तु कम अवश्य हैं। काव्यके वर्णनोंमें जहाँ-तहाँ लोक-तत्त्वोंका सहज स्फुरण परिलक्षित होता है। उदाहरणके लिए-- जहाँ पर नदियाँ कुलटा नारीके समान वक्र गतिसे बहनेवाली है, निकटके गाँव इतने पास हैं कि मुर्गा उड़कर एक गांवसे दूसरे गाँवमें सरलतासे पहुँच सकता है। जहाँके सरोवरोंमें विशाल नेत्रोंकी समता करनेवाले बड़े-पत्तोंसे युक्त कमल विकसित थे । जहाँ पर गोधन, गोरस आदिसे समृद्धि-सम्पन्न हैं । और जहाँ पर विख्यात उद्यान-वन आदि है। जहाँका क्षेत्र अन्न-जल आदिसे परिपूर्ण होने के कारण सदा सुखदायक है। कविके ही शब्दों में इतिहास और पुरातत्त्व : १६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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