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________________ समाजमें बहु-विवाहकी प्रथाको मान्यता प्राप्त थी। जिसके जितनी अधिक पत्नियां होती थीं उसको उतना ही ऐश्वर्यशाली एवं भाग्यवान समझा जाता था। भविष्यदत्तके पिता दो विवाह करते हैं । जिनदत्तने चार विवाह किये । श्रीपालने भी चारसे अधिक विवाह किये थे। पदुम्न जहाँ-जहाँ भी जाते हैं उन्हें उपहारमें वधू मिलती है। इसी तरह जीवन्धरके जीवनमें भी विवाहोंकी भीड़ लग जाती है। विलासवईकहाके नायक विलासवती इन्द्रावती एवं पहुपावतीके साथ विबाह करते हैं। पुत्रजन्मपर आजके ही समान पहिले भी खूब खुशियां मनायी जाती थीं। गरीबों, अनाथों और अपाहिजोंको उस अवसरपर खूब दान दिया जाता था। जिनदत्तके जन्मोत्सवपर उसके पिताने दो करोड़का दान दिया था। देहि तंबोलत फोफल पाण, दीने चीर पटोले पान । पूत बधावा नाहीं खोरि, दीने सेठि दान कुइ कोडि ।। ज्योतिषियोंकी समाजमें काफी प्रतिष्ठा थी । भविष्यवाणियोंपर खुब विश्वास किया जाता था । राजा राजा भी कभी-कभी इन्हीं भयिष्यवाणियों के आधारपर अपनी कन्याओंका विवाह करते थे। जिनदत्तका श्रृंगारमतीके साथ, श्रीपालका गुणमाला एवं मदनमंजरीके साथ विवाहका आधार ये ही भविष्यवाणियाँ थीं। इसी तरह सहस्रकूट चैत्यालयके किवाड़ खोलने, समुद्र पार करने एवं तैरते हुए विद्याधरोंके देशमें पहुँचनेपर भी विवाह सम्पन्न हो जाते थे। श्रीपालने एक स्थानपर नैमित्तिककी भी भविष्यवाणीपर अपना पूरा विश्वास व्यक्त किया है। णिमित्तउ जे कहइ णरेसरु, मो किस सव्वु होइ परमेसरु । शृंगार एवं आभूषणोंमें स्त्रियोंकी स्वाभाविक रुचि थी। सिरिपालकहामें गुण सुन्दरी अपनेको सोनेके आभूषणोंसे सजाती है। सोनेका हार वक्षस्थलपर धारण करती है। जिणदत्तकी प्रथम पत्नी बिमलमतीकी कंचुकी ही ९ करोड़में बिकी थी वह कंचुकी मोती, माणिक एवं हीरोंसे जड़ी हुई थी। माणिक रतन पदारथ जड़ी, विचि विच हीरा सोने घड़ी। ठए पासि मुत्ताहल जोड़ि, लइ हइ मोलि सु णम धन कोड़ि । धार्मिक जीवन सभी स्त्री-पुरुष धार्मिक जीवन व्यतीत करते थे। भगवान्की अष्टमंगल द्रव्यसे पूजा की जाती थी। श्रीपालका कृष्ट रोग तीर्थकरकी प्रतिमाके अभिषेकके जलसे दूर हुआ था। गुणमालाके विवाहके पूर्व वह सहस्रकूट चैत्यालयके दर्शन करने गया था। जिनदत्त विमान द्वारा अकृत्रिम चैत्यालयोंकी एवं कैलासपर स्थित जिनेन्द्रदेवकी वन्दना करने गया था। जिनदत्तका पिता भी प्रतिदिन भगवान्की वन्दना-पूजा करता था। श्रीपाल, जीवन्धर, भविष्यदत्त, जिनदत्त, आदि सभी नायक जीवनके अन्तिम वर्षो में साधु-जीवन ग्रहण करते हैं और अन्तमें तपस्या करके मक्ति अथवा स्वर्ग-लाभ लेते हैं। भविसयत्तकहाका मूल आधार श्रुतपंचमीके माहात्म्यको बतलाना है। इसी तरह श्रीपालकी जीवन-कथा अष्टाह्निका व्रतका आधार है। पुण्णासवकहा एवं सत्तवसणकहाका प्रमुख उद्देश्य पाठकोंके जीवनमें धर्मके प्रति अथवा सत् कार्योंके प्रति रागभाव उत्पन्न करना है। सात व्यसनोंसे दूर रखने के लिए सत्तवसणकहाकी रचना की गयी। इन कथा-काव्योंके आधार मयके राजनैतिक जीवनकी कोई अच्छी तस्वीर हमारे सामने उपस्थित नहीं होती है। देशमें छोटेछोटे शासक ये और वे एक-दूसरेसे लड़ा करते थे। जिनदत्तचरितमें ऐसे कितने हीका उल्लेख आता है। जिनदत्त जब अतुल सम्पत्तिके साथ अपने नगरमें वापस लौटता है तो वहाँका राजा उसे अपने आधा इतिहास और पुरातत्त्व : १५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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