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________________ राजस्थानसे प्राप्त सतियोंका सबसे प्राचीन लेख सं० १०६का पुष्करसे मिला हुआ लेख था। इस लेखका उल्लेख श्री हरबिलासजी शारदाने किया था। यह लेख अब अज्ञात है । सम्भवतः ओझाजीने भी इसे नहीं देखा है अतएव इस सम्बन्धमें कुछ निश्चित तथ्यात्मक बात नहीं कही जा सकती है। अब तक ज्ञात लेखोंमें सं० ७४३, ७४५ और ७४९ के छोटी खाटूके लेख उल्लेखनीय हैं। इन लेखोंको डी० आर० भण्डारकर महोदयने प्रथम बार देखा था और सारांश प्रकाशित कराया था। ये तीनों लेख लघु लेख हैं । सं० ७४३ के लेखमें "उवरक पत्नी गद्धिणी देवी उपगता'' वणित है। धोलपुरके चण्डमहासेनके विस्तृत लेखमें इसुकके पुत्र महिषरामकी स्त्री कण्डुला, जो सती हुई थी, की मृत्युका उल्लेख है । ओसियाँसे सं० ८९५, घटियालेसे सं० ९४३, ९४७ और १०४२ के सतीके लेख मिले हैं। बीकानेरके खीदसरके कुँएके पाससे सं० १०२० का सतीका लेख मिला है। इन प्रारम्भिक सतीके लेखोंमें पति और पत्नीकी मृत्युका उल्लेख मात्र है। सं० ९४५ के घटियालेके प्रतिहार राणकके लेखमें पतिकी मृत्युका लेख अलग है और पत्नीकी मृत्युका अलग। ऐसा लगता है कि दोनोंके लिए अलग-अलग देवलियाँ बनायी गयी थीं । बेरासर बीकानेर) के सं० ११६१ के लेखमें "सुहागु राषसण" शब्द अंकित है। इससे स्पष्ट है कि पतिकी मृत्युके बाद वैधव्य दु.खसे पीड़ित न होकर पतिके साथ ही सती होने का संकेत है। घडाव (जोधपुरके समीप) सं० ११८० के ३ शिलालेख मिले हैं जिनमें गुहिल वंशी हुरजाकी मृत्युका उल्लेख है एवं कई स्त्रियोंके सती होनेका अलगअलग लेखोंमें उल्लेख है। इसी समयके वि० सं० १२१२के मंडोरके लेखमें एक लेख में कई स्त्रियोंके सती होनेका उल्लेख है। अतएव इस सम्बन्धमें कोई निश्चित नीति नहीं अपनायी गयी प्रतीत होती है। १३वीं शताब्दीसे "देवली बनाने" का उल्लेख भी शिलालेखोंमें किया जाता रहा है। वि० सं० १२३९ के केचल्लदेवीके गढ़ (अलवर) के लेखमें राणी केचलदेवीकी मूर्ति बनानेका उल्लेख है। सामान्यतः उस समयतक लेखोंमें सती शब्दके साथ "काष्टारोहण' करना उल्लेखित किया गया है। केवलसरके वि० सं० ५३२८ के लेखमें सांखला कमलसीके साथ उसकी पत्नी पूनमदेका काष्टारोहण करना वणित है। वि० सं० १३४८ के छापरके लेखमें भी उल्लेख किया है। वि० सं० १३३० का बीठका लेख महत्त्वपूर्ण है। इसमें मारवाड़में राठौड राज्यके संस्थापक राव सीहाकी मृत्यु और उसकी स्त्री सोलंकिनी पार्वतीका सहगमन करना वर्णित है। जैसलमेर । लेख श्री अगरचंदजी नाहटाने पड़े परिश्रमसे इकट्ठ किये हैं। इन लेखोंमें भट्टिक संवत् का प्रयोग हो रहा है । वि० सं० १४१८ और भट्टिक सं० ७३८ के घडसिंहके लेखमें उसकी राणियोंके सहगमन करनेका ही उल्लेख है। १६वीं शताब्दीसे वहाँके लेखोंमें भी सती शब्दका उल्लेख हुआ है। सं० १६८०के महारावल कल्याणदासकी मृत्युपर २ सतियाँ होने का उल्लेख किया गया है। इन लेखोंमें देवलीके लिए लोहटी शब्दका भी प्रयोग हुआ है। सं० १४१८ के रावल घडसिंहके एक लेखमें लोहटी (देवली) को महारावल केसरी द्वारा प्रतिष्ठापित करानेका उल्लेख है। सं० १३०९ के चुरू जिलेके हुडेरा ग्रामसे प्राप्त एक लेखमें “सत चढ़ना" लिखा है। यह लेख श्री गोविन्द अग्रवालने संगृहीत किया है । कुंभासरके सं० १६६९ के लेखमें माँ का पुत्रके साथ सती होना वर्णित है । इसी प्रकारके बीकानेर क्षेत्रसे और भी लेख मिले हैं। इनसे प्रतीत होता है कि माँ पुत्रके स्नेहके कारण उसकी मृत्युके बाद सती १. वरदा वर्ष अप्रैल ६३ में प्रकाशित श्री रत्नचन्द्र अग्रवालका लेख पृ० ६८ से ७९ । २. मरु भारती वर्ष १३ अंक २ पृ०७२ । ३. रेऊ-मारवाड़का इतिहास भाग १ पृ० ४० । १२४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012043
Book TitleAgarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages384
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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