SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हो सका। वर्तमान में मन्दिर के तीनों ओर विशालकाय धर्मशाला यह तीर्थ बहुत प्राचीन माना जाता है । सं. १९१६ में एक बनी हुई है। मन्दिर में मूलनायकजी के दोनों ओर की सब भिलाले के खेत से श्री अ दिनाथ बिम्ब आदि २५ प्रतिमाएँ प्राप्त हुई, प्रतिमाजी श्रीमद् राजेन्द्रसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित हैं। जिन्हें समीपस्थ कुक्षी नगर के जैन श्रीसंघ ने विशाल सौधशिखरी ३. श्री स्वर्णगिरि तीर्थ, जालोर । जिनालय बनवाकर विराजमान की। प्रतिमाओं की बनावट से ज्ञात यह प्राचीन तीर्थ जोधपुर से राणीवाड़ा जाने वाली रेल्वे के होता है कि ये प्रतिमाएं लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन हैं। जालोर स्टेशन के समीप स्वर्णगिरि नामक प्रख्यात पर्वत पर स्थित यहां दो मन्दिर हैं । सौधशिखरी जिनालय के पास ही श्री है। नीचे नगर में प्राचीन-अर्वाचीन १३ मन्दिर हैं । पर्वत पर किले गौड़ी पार्श्वनाथ का मन्दिर है । इस प्रतिमा को सं. १९५० में में तीन प्राचीन और दो नूतन भव्य जिन मन्दिर हैं। प्राचीन महोत्सवपूर्वक श्रीमद् राजेन्द्रसूरि ने प्रतिष्ठित की। चैत्य यक्षवसति (श्री महावीर मन्दिर), अष्टापदावतार (चौमुख) ५. श्री मोहनखेड़ा तीर्थ और कुमार विहार (पार्श्वनाथ चैत्य हैं ।) कालान्तर में इन धार से पश्चिम में १४ कोस दूर माही नदी के दाहिने तट पर सब मन्दिरों में राजकीय कर्मचारियों ने राजकीय युद्ध-सामग्री राजगढ़ नगर है, यहां से ठीक एक मील दूर पश्चिम में श्री मोहनखेड़ा आदि भर कर इनके चारों ओर कांटे लगा दिये थे । विहार करते तीर्थ है । यह तीर्थ सिद्धाचल शिव-बन्दनार्थ संस्थापित किया गया हए श्रीमद् राजेन्द्रसूरि वि. सं. १९३२ के उत्तरार्ध में जालोर पधारे है। भगवान आदिनाथ के विशाल जिनालय की प्रतिष्ठा सं. १९४० थे। उनसे इन जिनालयों की दुर्दशा नहीं देखी गयी। सं. १९२३ में श्रीमद् राजेद्रसूरि द्वारा महोत्सवपूर्वक की गई । इस मन्दिर का वर्षाकाल भी जालोर में करने का निश्चय किया गया। श्रीमद् के मूलनायक की प्रतिमा श्री आदिनाथ भगवान की है, जो सवा राजेन्द्रसूरि के दृढ़ निश्चय, दीर्घकालीन तपस्या और तत्परता के हाथ बड़ी श्वेत वर्ण की है। परिणामस्वरूप तत्कालीन राजा ने स्वर्णगिरि के मन्दिर जैनों को यहीं श्रीमद् राजेन्द्रसूरि की समाधि है, जिसमें उनकी प्रतिमा सौंप दिए। श्रीमद् राजेन्द्रसूरि ने इन मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया स्थापित की गई है । मन्दिर की भित्तियों पर उनका संपूर्ण जीवन और सं. १९३३ में महामहोत्सवपूर्वक प्रतिष्ठा-कार्य भी सम्पन्न उत्कीर्ण करने की योजना भी है। किया । इस तीर्थ के मुख्य मन्दिर का पुननिर्माण करने की योजना ४. तालनपुर तीर्थ वर्तमानाचार्य श्रीमद् विजयविद्याचन्द्रसूरि की प्रेरणा से तैयार की इस स्थल के तुगीयापुर, तुंगीयापत्तन और तारन (तालन) गई है, जिसके अनुसार लगभग २५ लाख रु. व्यय किये जायेंगे। पुर--ये तीन नाम हैं। यह तीर्थ अलीराजपुर से कुक्षी (धार) जाने शिलान्यास विधिवत् १९ जून, ७५ को श्रीमद् विजयविद्याचन्द्र सूरि वाली सड़क की दाहिनी ओर स्थित है। ने संपन्न किया । (पूज्य श्री गुरुदेव एवं समाधि... .पृष्ठ ४४ का शेष) पूज्य गुरुदेव ने साहित्य साधना में देश में ही नहीं अपितु विदेशों आपसे कुछ ही दूरी पर वन्दना पूर्वक बैठ गया व कुछ समय पश्चात् में भी अपना एक लोकप्रिय स्थान बनाया । आप श्री ने लगभग चुपचाप चला गया । ठीक इसी प्रकार मोदरा के जंगलों में आपकी ६१ ग्रन्थों की रचना कर जैन समाज एवं समस्त पाठकों के सामने ध्यानावस्था के समय ही शिकारी ने आप पर तीर छोड़े पर आश्चर्य उच्चतम कोटि की ज्ञान ज्योति को प्रज्ज्वलित किया है। इन समस्त ...एक भी नहीं लगा। पता लगने पर कि आप मनिराज हैं तो ग्रन्थों में प्रमुख संस्कृति-प्राकृत-भाषामय ग्रन्थ का नाम है 'अभिधान चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। जिस प्रकार आप श्री की अनेक राजेन्द्र प्राकृत महाकोष' जो कि सात भागों में विभक्त है। इस घटनाएं आश्चर्यचकित कर देती हैं, वहीं दूसरी तरफ आपके द्वारा महाग्रंथराज को पूर्ण करने में लगभग चौदह वर्ष लग गए । आज की गई भविष्यवाणियां भी सत्य निकली। एक समय कहा था कि यह संमार के सभी विश्वविद्यालय में अपनी शोभा बढ़ा रहा है। आजसे १९ वें रोज कुक्षी (म.प्र.) में अग्नि प्रकोप होगा, जो कि सत्य इस महाकोष में उन समस्त बातों का उल्लेख है, जो कि जैनागमों घटित हुई। ठीक इसी प्रकार आपने आहोर संघ को प्रतिष्ठा में मिलती हैं। इस संस्कृत महाकोष का प्रथम हिन्दी भाग जो कि एक वर्ष पूर्व करवाने को कहा था क्योंकि आने वाले वर्ष अर्थात् 'अ' से प्रारंभ होता है, का प्रकाशन हो गया है इसके लेखक हैं मुनि सं. १९५६ को भयंकर अकाल पड़ने की बात कही थी। यह घटना श्री जयन्त विजयजी 'मधुकर' । ताकि समस्त जन इसका लाभ उठा भी सत्य निकली। उपरोक्त घटनाओं को आज भी इससे संबंधित सके । आचार्य श्री राजेन्द्र मुरीजी एक उच्चतम कोटि के लोकप्रिय व्यक्ति जानते हैं। कवि भी रह चुके हैं। जन्म तिथि एवं पुण्य तिथि एक ही दिन व एक ही तिथि को पूज्यनीय आचार्य श्री की योग साधना काफी प्रबल एवं कठोर घटित होना अपने आप में एक विशिष्ट महत्व रखता है। श्री मोहन थी। आप एक सफल भविष्य वक्ता एवं चमत्कृत युग पुरुप रह खेड़ा तीर्थ भविष्य में आप श्री की याद को अमर करता रहेगा । चुके हैं। इसके कई उदाहरण हैं जो कि आप श्री के जीवन की घटना युग बदलेगा, इतिहास की धारा बदलेगी, परन्तु गुरुदेव श्री का नाम बन चुकी है, मबको आश्चर्यचकित कर देती है। एक समय जालोर अन्य पुण्यात्मा के साथ लिया जाता रहेगा । के पहाड़ों में आप श्री की ध्यानावस्था के समय एक भयानक शेर राजेन्द्र-ज्योति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy