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________________ पूज्य श्रीगुरुदेव एवं समाधि स्थान श्री मोहनखेड़ा शान्तिलाल डूंगरवाल श्रीत्रिस्तुति के श्वेताम्बर जैन समाज के संवाहक सन्मार्ग दर्शक श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी के द्वारा संस्थापित श्री मोहनखेड़ा तीर्थ मध्यप्रदेश के धार जिले में स्थित राजगढ़ से एक मील दूर ही अपनी गौरव-गरिमा का जयनाद कर रहा है। संस्कृति, सभ्यता और सूजन के त्रिवेणी संगम के प्रतिरूप मध्यप्रदेश के इस पवित्र तीर्थस्थल पर हर पौष शुक्ला सप्तमी को श्रीमद् राजेन्द्र सूरिजी की जन्मतिथि एवं पुण्य तिथि मनाने हेतु हजारों से भी अधिक संख्या में नर-नारी इस पवित्र स्थान पर आकर अपने आपको कृतज्ञ करते हैं। इस पवित्र-स्थान की स्थापना श्री गुरुदेव के उपदेश से प्रभावित हो श्री संघवी लूणाजी ने इस तीर्थ की स्थापना का महत्व प्राप्त कर सं. १९३६ में निर्माण कार्य प्रारम्भ किया तथा सं. १९४० में इस तीर्थ की प्रतिष्ठा गुरुदेव श्री के हाथों हुई। वि. सं १९६३ में आप श्री ने पौष शुक्ल सप्तमी गुरुवार को अपने इस नश्वर शरीर को चार दिन पूर्व अनशन एवं समाधि लेकर त्याग दिया और इस स्थान को मालव भूमि पर पवित्र कर दिया। पूज्य श्री के पार्थिवशरीर का दाह संस्कार इसी स्थान पर किया गया। सं. १९८० में आपके समाधि स्थल पर निर्मित मंदिर में बड़े उत्साहपूर्वक प्रतिष्ठा हुई। बाद में श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरिजी ने इस तीर्थ पर अपने शेष जीवन काल को ब्यतीत किया तथा आपके स्वर्गवास पश्चात् आपका भी समाधि-स्थल पर मंदिर का निर्माण हुआ एवं प्रतिष्ठा हई। वर्तमानाचार्य श्री हैं श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरिजी। इस पवित्र तीर्थ स्थल पर समय समय पर अनेक महोत्सव एवं कार्यक्रम हए और हो रहे हैं। जिसमें सं. २०१४ को मनाया गया पंच-दिवसीय कार्यक्रम श्रीमद् राजेन्द्र सूरिजी अर्द्ध शताब्दि महोत्सव अपने आप में एक अनूठा एवं निराला कार्यक्रम था। इस अवसर पर अनेकानेक विविध कार्यक्रमों के साथ 'श्रीमद् राजेन्द्र सूरी स्मारक' ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ तथा सारे कार्यक्रम को फिल्माया भी गया। श्री मोहनखेड़ा तीर्थस्थल में श्री आदिनाथजी प्रभु का जिनालय भी अपनी शोभा बढ़ा रहा है। इस जिनालय को वर्तमान समय में नवीन रूप दिया जा रहा है जिसका बहुत सारा निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। यह समस्त कार्य वर्तमानाचार्य श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी के सान्निध्य में सम्पन्न हो रहा है। देव, गुरु और सच्ची प्रभावना के स्वरूप का यह तीर्थ मालवा में अपना अनूठा स्थान रखता है। निर्माण कार्य के बाद प्रतिष्ठा महोत्सव की घोषणा माघ शुक्ला १३, २० फरवरी ७८ की जा चुकी है। पूज्य श्री राजेन्द्र सूरीजी का जन्म सं. १८८३ की पौष शुक्ल सप्तमी गुरुवार को शुभ मंगलमय मुहूर्त में भरतपुर (राज.) में हुआ था। पिता श्री ऋषभदासजी तथा माता श्री केशरदेवी के इस रत्न का नाम बचपन में श्री रत्नराज था प्रारम्भिक जीवन आपने व्यापार व्यवसाय में जरूर बिताया परन्तु सांसारिक असारता से आप श्री का मन शीघ्र ही वैराग्य की ओर बढ़ने लगा और इसी क्रम में सं. १९०४ में यतिदीक्षा ग्रहण कर, सं. १९०९ में बड़ी दीक्षा ली एवं यति श्री रत्न विजयजी के नाम से उद्घोषित हुए। साहित्य अध्ययन में आपने काफी निपुणता ग्रहण कर ली। यति समुदाय में फैले शिथिलाचार को त्याग कर अपने पूज्य गुरुदेव श्री के पास आ गए। सर्वगुण सम्पन्न देखकर आप श्री के गुरुवर ने आपको सं. १९२३ में आहोर (राज.) में संघ की सहमति से आचार्य पदवी दी तथा आप श्री का नामांकरण श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीजी हुआ । तथा एक वर्ष पश्चात् सं. १९२४ में श्री जावरा (म. प्र.) में क्रियोद्वार किया । त्रिस्तुतिक संघ को आपने काफी मजबूत एवं सुदृढ़ बनाया। आप श्री ने अपने जीवन काल में एक लाख से भी अधिक श्रावक बनाए तथा महावीर के इस शासन को सूचारु रूप से चलाया। (शेष पृष्ठ ४६ पर) राजेन्द्र-ज्योति ४४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education Intemational
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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