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________________ हमें गन्तव्य पर पहुँचना है फकीरचन्द जैन भारत देश ऋषि-मुनियों का देश है। इसके कण-कण में व्याप्त महावीरों की वीरवाणी कल-कल करती हुई सरिताओं की निर्मल धारा के समान बहने वाली गुरुवाणी से मन के क्लेशों को दूर करने वाली इस पुण्य भारत भूमि की गरिमा को साकार कर रही है परन्तु आज की विषम परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए मनुष्य आध्यात्मिकता को छोड़कर भौतिकवाद की ओर मुड़ गया । ईश्वर क्या है इसकी ओर से बिल्कुल विमुख हो चुका है। विमुख होने का एक ही कारण नजर आता है कि मनुष्य आधुनिक वातावरण के फैशन के चक्कर में पड़ जाने से आध्यात्मिकता को छोड़कर भौतिक साधनों में फंस जाने के कारण ईश्वर को मानने से इंकार करता है और कहता है कि ईश्वर कहां है ? क्योंकि ऐसा कहने वालों को सत्संग का वातावरण नहीं मिला या यों कहें कि उन्हें ऐसे संस्कार नहीं मिले ऐसा कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ___सर्वप्रथम हमें अपने घर के संस्कार ही उस धार्मिक प्रवृत्ति की ओर ले जाते हैं जिस ओर ईश्वर की आराधना होती है, दूसराअपने गुरुओं के बताए सन्मार्ग पर गुरु के सत्संग में रहकर हम .आध्यात्मिकता की ओर बढ़कर ईश्वर क्या है जान सकते हैं । इसको जानने के लिये ही हमारे गुरुओं ने देवस्थानों की रचना की है। महज इसलिये कि मनुष्य अपने दैनिक व्यस्त कार्यकलापों का अवलोकन करते हुए कि मैंने दिन भर में क्या-क्या कार्य किये हैं उनको ध्यान में रखते हुए कुछ समय अपने आराध्य देव का स्मरण करते हुए मंदिरों में प्रार्थना करेगा। क्योंकि हमारे सामने एक लक्ष्य रहेगा। जिस तरह एकलव्य ने अपने गुरु की मूर्ति को अपना लक्ष्य बनाकर उनके समक्ष तीर कमान चलाना सीखा, उसी तरह बिना लक्ष्य बनाये हम ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकते हैं अतः मंदिरों की स्थापना की गई कि मनुष्य अपने दैनिक कार्यों में से कुछ समय निकालकर अपने आराध्य देव का लक्ष्य बनाकर गुरु के बताये हुए सन्मार्ग पर चल कर अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर सकते हैं । इसी तारतम्य में परम श्रद्धेय विश्व पूज्यनीय प्रभ श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी के शिष्य श्री यतीन्द्र सूरीश्वरजी के द्वारा एक अखिल भारतीय राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद की स्थापना की गई है। - आज का नवयवक भौतिकवाद के चक्कर में पड़कर अपने लक्ष्य से कोसों दूरच ला जा रहा है । नवयुवकों को सही मार्गदर्शन के अभाव में अपने माता-पिता, गरुवर आदि के आदर का पात्र नहीं बन पाते हैं । इसलिये हमें सही मार्ग दर्शन की अत्यन्त आवश्यकता है । सही मार्ग दर्शन प्राप्त करने के लिये हमें परिषद जैसे माध्यम की अत्यन्त आवश्यकता है। दूसरा-अपने गरु पर आस्था, विश्वास व उनके बताये मार्ग पर चलने से हमें सुख शान्ति व अपने लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है जहां सुख-शांति है । वहीं ईश्वर का वास है। परन्तु आज का नवयुवक सुख-शांति को पाने के लिये दौड़ लगा रहा है । भौतिक साधनों में उलझा यवक बिना लक्ष्य के सुख-शांति भी नहीं प्राप्त कर सकता और हम अपने गन्तव्य स्थान पर नहीं पहुंच सकते । अतः हमें अपने गन्तव्य स्थान प्राप्त करना है तो हमें अपने माता-पिता व गुरु के बताये मार्ग पर चलना होगा तभी हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं । हम अखिल भारतीय श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद के माध्यम से अपने समाज का व देश का उत्थान कर सकेंगे। बिना माध्यम के हम अपने गन्तव्य स्थान पर नहीं पहुंच पायेंगे और न ही समाज की व देश की उन्नति कर पायेंगे और इसी माध्यम से जो हम भौतिकवाद की ओर दौड़ रहे हैं, उस ओर नहीं दौड़ते हुए हम आध्यात्मिकवाद की ओर बढ़ते हुए अपने लक्ष्य को परिषद के माध्यम से प्राप्त करते हुए हम अपने मनुष्य जीवन को सफल बनाने में समर्थ हो सकेंगे। - वी.नि. सं. २५०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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