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________________ परिषद् के उत्साह और सक्रियता को देखते हुए अल्प समय में भारी प्रगति होगी ऐसी आशा है। सायला वर्षों से युवक प्रतीक्षा कर रहे थे, ऐसे शक्तिशाली संगठन की जो समाजोत्थान के महायज्ञ का सूत्रधार बन सके। इच्छा शक्ति ने संवत् २०३० में तृप्ति ग्रहण की । पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज ने विहार करते हुए सायला (जिला-जालोर, राजस्थान) की भू-स्पर्शना की । उन्हीं के शुभाशीर्वाद से परिषद् शाखा का जन्म हुआ । प्रारम्भिक शिथिलता के पश्चात् युवकों ने आगे आने का संकल्प किया । भाद्र शुक्ला पंचमी विक्रम संवत् २०३१ को राजेन्द्र भवन में जिला मंत्री श्री उगमसीजी मोदी की अध्यक्षता में परिषद् कार्यालय के उद्घाटन के साथ परिषद् शाखा का पुनर्जागरण हुआ । इसी दिन सायला में गुरु मंदिर की स्थापना भी हुई । सायला निवासी गुरुदर्शन के लिए उमड़ पड़े। परिषद् शाखा कोष में समाज की ओर से लगभग दो हजार रुपए का सहयोग प्राप्त हुआ। परिषद् शाखा ने गतिविधियों को सजीव करना प्रारम्भ किया (१) भगवान महावीर का २५०० वा निर्वाण महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। उपरोक्त कार्यक्रम में कई दिन बड़ी पूजा, संगीत, कार्यक्रम व भक्तिभावना आदि रखे गये । मंदिरों को विद्युत्-दीपों से सुसज्जित किया गया एवं कार्तिक पूर्णिमा के दिन विशेष कार्यक्रम रखे गये, जैसे-आम सभा का आयोजन जिसमें कई वक्ताओं ने भगवान महावीर के जीवन चरित्र पर प्रकाश डाला। रात को विशेष संगीत कार्यक्रम में धीनमाल की श्री राजेन्द्र जैन पाठशाला के संगीत मंडल ने भाग लिया। पर्युषण पर्व, महावीर-जयन्ति एवं अन्य धार्मिक पर्वो पर बड़ी पूजा, अंगी रचना एवं संगीतमय भक्ति भावना आदि कार्यक्रम किये जाते हैं। कई महीनों से बन्द श्री राजेन्द्र वाचनालय जो कि सार्वजनिक वाचनालय एवं पुस्तकालय के स्तर पर था फिर से शुरू किया गया। केन्द्रीय कार्यालय द्वारा वितरित सहायता निधि पेटियां कार्यकर्ता एवं अन्य सज्जनों के यहां लगी हुई हैं। साथ ही परिषद् की स्थापना के पश्चात् उत्साहित कार्यकर्ताओं ने समाज सुधार के कार्यक्रम का शुभारम्भ किया जिसमें दहेज प्रथा एवं मृत्यु भोज का बहिष्कार उल्लेखनीय है। दहेज प्रथा को बन्द करने के लिए कई सदस्य आगे आये और उन्होंने शपथ ली कि वे दहेज-डोरा-कोल आदि नहीं लेंगे। जिसमें कई बुजुर्गों ने भी साथ दिया। परिषद् ने एक नारा बुलन्द किया'दो किन्तु लो मत'। जब लेने वाले नहीं रहेंगे तो देने वाले अपने आप मिट जायेंगे। ___ गांवों में मृत्यु भोज में रोटियों को घी से भर कर परोसा जाता है जो आज के युग में तो क्या पहले भी अनुचित था । उसके लिए परिषद् कार्यकर्ताओं ने शपथ ली कि मृत्यु या उससे संबंधित भोज में साधारण चुपड़ी हुई रोटी ही लेंगे एवं शोकाकुल घर में पापड़, चाय आदि नहीं लेंगे। उपरोक्त कार्यक्रमों को देखकर कुछ भाइयों ने युवकों की आलोचना शुरू कर दी और वे तन, मन से विरोध प्रचार करने लगे हैं । बुरे व्यक्ति भले के रास्ते में कांटे बिछाते हैं तो वे भी फूलों की सेज बन जाते हैं। उक्त सार्थक हुई । आलोचकों की आलोचना से अच्छा प्रचार हुआ। सायला के आस-पास के कई ग्रामों के नवयुवक भी अपने-अपने ग्राम में परिषद् की शाखा स्थापना करने के लिए मार्ग दर्शन का आग्रह करने लगे। उपयुक्त समय देख कर शाखा के केन्द्रीय प्रतिनिधि श्री चम्पालालजी गांधी मुथा ने धाणसा में परिषद् शाखा की स्थापना की। वहां भी कई भाइयों ने मृत्यु भोज के बहिष्कार की शपथ ली। परिषद् की अन्य उपलब्धियां भी उल्लेखनीय हैं:-- (१) गुरु-मंदिर की स्थापना। (२) सायला में पशु बलि बन्द करना:-सायला में देवी के मंदिर में कई वर्षों से पशु बलि बन्द थी लेकिन वह फिर शुरू हो गई थी और यह बलि रात को चोरी छिपे चढ़ाई जाती थी। लेकिन जब परिषद् के कार्यकर्ताओं ने अचानक देवी के मंदिर में एक मूक प्राणी की बलि चढ़ी हुई देखी तो उनसे सहा नहीं गया और उन्होंने कानून को हाथ में लेने के बजाये तुरन्त कानून की सहायता ली । स्थानीय पुलिस थाने में इसकी रिपोर्ट दर्ज करायी और लगातार तीन रात-दिनों के अथक परिश्रम के बाद स्थानीय पुलिस थाने में थानेदार श्री प्रेमसिंह की अध्यक्षता में हत्यारों ने परिषद् के कार्यकर्ताओं से क्षमा मांगी। परिषद् के सदस्यों द्वारा दिया गया साधारण किंतु अमिट दंड स्वीकार किया। उन्होंने परिषद् को लिख कर दिया कि भविष्य में हमें या हमारे समाज वाले कभी कोई पशु-बलि नहीं चढ़ाएगा। ऐसा करने पर परिषद् द्वारा दिया जाने वाला कठोरतम दंड भी हमें मान्य होगा। इस तरह कार्यकर्ताओं में परिश्रम से सायला में बलि चढ़ने वाले मक प्राणियों का वध रुक गया। (३) निर्दोष पक्षी-कबूतरों की सुरक्षाः--ग्राम में चबूतरे की ऊंचाई कम होने के कारण कुत्ते ऊपर चढ़ कर कबूतर व अन्य प्राणियों की हत्या कर उनका भक्षण करते थे। इस हत्या को रोकने के लिए परिषद् ने लगभग ३०००/- (तीन हजार) रुपयों से भी ज्यादा धन खर्च कर लगभग तीन फुट ऊंची मय दरवाजे के आधुनिक डिजाइन की मजबूत जाली बनवाई । इस तरह कई पक्षियों का भक्षण भी रुक गया। परिषद् के भावी कार्यक्रम एवं सुझाव निम्नानुसार हैं: (१) श्री राजेन्द्र जैन वाचनालय एवं पुस्तकालयः-जिसमें जैन धर्म से संबंधित कई ग्रंथों का संग्रह होगा एवं धार्मिक पत्र-पत्रिकाओं की व्यवस्था की जाएगी। (२) श्री राजेन्द्र जैन धामिक पाठशाला:-योग्य अध्यापक एवं अध्यापिका मिलते ही इसका शुभारम्भ कर दिया जाएगा। (३) श्री राजेन्द्र जैन बुक बैंक एवं सहायता फंड योजना:इस योजना के अन्त त गरीब छात्रों की जो कि शाखा के प्रधानाचार्य वी. नि.सं. २५०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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